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व्यंग ही व्यंग

अवध- पूर्वांचल के गाँव

अवध- पूर्वांचल के गाँव
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गांव की पूरी की पूरी युवा आबादी,घोर लंपटई की गिरफ्त में है। पढ़ाई -लिखाई से नाता टूट चुका है।

देश-दुनिया की कुल समझ व्हाट्सएप से बनी है। दिन भर फेक न्यूज़ मे घूमते रहते हैं । दहेज में बाइक मिली है, भले ही तेल महंगा हैं, धान-गेंहू बेच, एक लीटर भरा ही लेते हैं और गांव में एक बार फटफटा चक्कर लगा लेते हैं।

अपने से ज्यादा दूसरे के कामों मे ज्यादा झाँक ताँक करते हैं । हमेशा इसी चक्कर मे रहते हैं कि कैसे दूसरों का नुक़सान कर दें या दूसरे को नीचा दिखा दें , इसी मे अपनी जीत समझते हैं । खुद का परिवार चाहे एक एक रूपये को मोहताज हो , दूसरे मे कमी निकालते रहेंगे।

गंवई माफिया और छुटपुटिये नेता उनका इस्तेमाल करते हैं। उन्हें आखेट कर किसी न किसी जातीय - धार्मिक सेनाओं के पदाधिकारी बना कर, अपनी गिरफ्त में रखते हैं। हर प्रधान और गाँव के रसूखदारों

के पीछे दो-चार चापलूस लगे रहते हैं और कैसे कहाँ गाँव की संपत्ति पर क़ब्ज़ा किया जाये।

हमारे गांव से अक्सर कुछ युवाओं के फ्रेंड रिक्वेस्ट आते हैं। उनकी हिस्ट्री देखिए तो सिर पर रंगीन कपड़ा बांधे ,जयकारा लगाते, किसी जातीय धार्मिक आयोजन में नशा करते फोटो मिलेगी। सुबह गुटका और शाम दारू से गुज़रती हैं ।

यह है नई पीढ़ी!

इसी पर है देश का भविष्य।

एक बीमार समाज।

ऐसी पीढ़ी अपने बच्चों को कहां ले जा रही?जमीन-जायदाद इतनी नहीं कि ठीक से घर चला सकें या बीमारी पर इलाज हो। तो इनके लिए बेहतर जीवन क्या है? ये किसी औघड़ सेना के सचिव हैं, तो किसी धार्मिक संगठनों के मुखिया हैं।

ये पीढियां अब उबरने वाली नहीं। अराजक ही बनेंगे । माता पिता ही संस्कार हीन हैं तो बच्चे को क्या देंगे । जब बाप ने ज़िन्दगीभर गाँववालों की मेड़ काटी है , तो बेटा भी चोरकटई ही करेगा। विरासत मे उसे यही मिला है ।

इन्हें हम जैसों की बातें सबसे ज्यादा बुरी लगती हैं। खाने को दाना नही लेकिन झूठी शान मे भरे पड़े हैं ..और कोई अगर अच्छी राह दिखाये तो उसे महामूर्ख समझते हैं ....

इनका कोई स्वप्न नहीं। झूठा घमण्ड इतना कि IAS , PCS उनकी जेब में होते है लेकिन सच यह है कि गाँव के चौराहे पर डींग मारने के अलावा कुछ नही कर सकते हैं।

एक अपाहिज बाप के जवान बेटे को दिनभर चिलम और नशा करते देख कर टोका था, तो उसकी मां बोली-"हमार बेटवा आटै , जौन मन करै ओकर ,उ करै , केहू से मांग के तो नाहीं पियत बा ?

अब ऐसे मर रहे समाज में जान फूंकना आसान काम नहीं है? लोग पूछते हैं आप कुछ क्यों नही करते। मै नही करता क्योकि संस्कार घर से मिलते हैं । शिक्षा बिना संस्कार के बेकार है।

फिलहाल ये सुधरने से रहे। भगवान भला करे ।

विनोद मल्ल IPS

डीजीपी गुज़रात

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