शेयर बाजार में कौन लोग हिस्सा लेते हैं और उन्हें रेगुलेट करने की ज़रूरत क्यों है?

Update: 2025-03-26 06:17 GMT


 लेखक: प्रकाश पांडेय

शेयर बाज़ार में भागीदारी:

शेयर बाज़ार में एक व्यक्ति से लेकर बड़ी कंपनियाँ तक निवेश करती हैं। जो भी व्यक्ति या संस्था शेयर खरीद-बिक्री करती है, उन्हें मार्केट पार्टिसिपेंट्स (Market Participants) कहा जाता है। ये पार्टिसिपेंट्स विभिन्न श्रेणियों में बंटे होते हैं:

डोमेस्टिक रिटेल पार्टिसिपेंट्स:

भारतीय मूल के नागरिक जो भारत में रहकर निवेश करते हैं, जैसे आम निवेशक।

NRI’s और OCI:

भारतीय मूल के वे लोग जो विदेशों में बसे हैं, लेकिन भारत में निवेश करते हैं।

घरेलू संस्थागत निवेशक (Domestic Institutional Investors - DII):

इसमें बड़ी भारतीय कंपनियाँ आती हैं, जैसे भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) और अन्य बीमा एवं वित्तीय संस्थाएँ।

घरेलू एसेट मैनेजमेंट कंपनियाँ (Asset Management Companies - AMC):

ये कंपनियाँ म्यूचुअल फंड स्कीम्स चलाती हैं, जैसे SBI म्यूचुअल फंड, HDFC AMC, और ICICI प्रूडेंशियल।

विदेशी संस्थागत निवेशक (Foreign Institutional Investors - FII):

विदेशी कंपनियाँ, हेज फंड्स और विदेशी एसेट मैनेजमेंट फर्म्स जो भारतीय बाज़ार में निवेश करती हैं।

रेगुलेशन की आवश्यकता क्यों?

शेयर बाज़ार में मुनाफा कमाने की होड़ में कई बार निवेशक लालच और डर में गलत कदम उठा लेते हैं। इतिहास में ऐसे कई घोटाले हुए हैं, जैसे हर्षद मेहता घोटाला, जिसने पूरे बाज़ार को हिला दिया था। इसलिए शेयर बाज़ार को एक प्रभावी रेगुलेटरी संस्था की आवश्यकता होती है, जो यह सुनिश्चित करे कि:

सभी प्रतिभागी नियमों का पालन करें।

छोटे निवेशकों के हित सुरक्षित रहें।

कोई भी बड़ी संस्था अपने प्रभाव से बाज़ार में हेर-फेर न कर सके।

पारदर्शिता और निष्पक्षता बनी रहे।

भारत में रेगुलेटर: SEBI का रोल

भारत में शेयर बाज़ार को रेगुलेट करने का काम भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India - SEBI) करता है। इसका मुख्य उद्देश्य:

निवेशकों के हितों की रक्षा करना।

स्टॉक एक्सचेंज का सुचारू संचालन सुनिश्चित करना।

बाज़ार में होने वाली धांधली और हेराफेरी को रोकना।

कंपनियों के लिए उचित और पारदर्शी नियम-कानून बनाना।

SEBI किन-किन एंटिटी को रेगुलेट करता है?

शेयर बाज़ार में कई संस्थाएँ काम करती हैं, जिनके लिए SEBI ने सख्त नियम बनाए हैं:

क्रेडिट रेटिंग एजेंसियाँ (Credit Rating Agencies - CRA):

जैसे CRISIL, ICRA, CARE, जो कंपनियों और सरकार की ऋण चुकाने की क्षमता को रेट करती हैं।

डिबेंचर ट्रस्टीज (Debenture Trustees):

बैंक और वित्तीय संस्थाएँ, जो यह सुनिश्चित करती हैं कि कंपनियाँ निवेशकों को तय ब्याज का भुगतान समय पर करें।

डेपोसिटरीज़ (Depositories):

जैसे NSDL और CDSL, जो निवेशकों की प्रतिभूतियाँ (securities) को सुरक्षित रखती हैं और उनके लेन-देन का रिकॉर्ड रखती हैं।

विदेशी संस्थागत निवेशक (FII):

विदेशी कंपनियाँ और फंड्स, जो भारतीय बाज़ार में निवेश करती हैं और जिनके बड़े लेन-देन का बाज़ार पर असर पड़ता है।

मर्चेंट बैंकर्स:

जैसे एक्सिस बैंक, एडलवाइज़ कैपिटल, जो कंपनियों को IPO (Initial Public Offering) लॉन्च करने में मदद करते हैं।

एसेट मैनेजमेंट कंपनियाँ (AMC):

जैसे HDFC AMC, SBI कैपिटल, जो म्यूचुअल फंड स्कीम्स चलाती हैं और आम लोगों का पैसा निवेश करके उन्हें लाभ पहुँचाने का प्रयास करती हैं।

पोर्टफोलियो मैनेजर्स (Portfolio Management System - PMS):

जैसे रेलिगेयर वेल्थ मैनेजमेंट, जो बड़े निवेशकों के लिए पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सेवाएँ प्रदान करती हैं।

स्टॉक ब्रोकर्स और सब-ब्रोकर:

जैसे Zerodha, शेयरखान, ICICI डायरेक्ट, जो निवेशकों और स्टॉक एक्सचेंज के बीच मध्यस्थ का काम करते हैं।

शेयर बाज़ार में निवेश करना फायदे का सौदा हो सकता है, लेकिन इसके साथ जोखिम भी जुड़े होते हैं। घोटालों और धांधली से बचने के लिए प्रभावी रेगुलेशन आवश्यक है। भारत में SEBI यह भूमिका निभाता है और यह सुनिश्चित करता है कि हर निवेशक को निष्पक्ष अवसर मिले और बाज़ार में पारदर्शिता बनी रहे। सही रेगुलेशन से ही शेयर बाज़ार मजबूत और विश्वसनीय बनता है

Similar News