बच्चों का खेल नहीं है पत्रकारिता प्रो. (डॉ.) योगेन्द्र यादव

Update: 2017-02-14 03:26 GMT

आज के युग में पत्रकारिता बच्चों का खेल हो गयी हैऐसा कुछ सतही पत्रकारों का कहना है. पर वास्तव में ऐसा है नहीं. इस प्रकार के पत्रकार परजीवी जानवरों की तरह होते हैं. जिस प्रकार परजीवी जानवर बिना कुछ किये अपना भोजन ग्रहण करता हैऔर पूरे सिस्टम को ख़राब करता हैख़राब है यह भी दर्शाता है. ऐसी ही स्थिति इस प्रकार के पत्रकारों की होती है. जबकि पत्रकारिता एक विशिष्ट कार्य है. इस विशिष्ट कार्य को संपन्न करने के लिए विशिष्ट योग्यता की जरूत होती है. यह विशिष्ट योग्यता आती हैविषय के विशद अध्ययन से. यह विशिष्ट योग्यता आती विषय के ज्ञान को सही तरह से आरोपण की.

इसी प्रकार समाचार संकलन को भी लोग मजाक बताते हैंप्रिंट मीडिया के अधिकांश अखबार तो इलेक्ट्रानिक्स मीडिया द्वारा परोसे गए समाचारों पर ही निर्भर रहते हैं. ऐसे अखबारों को कोई पूछता ही नहीं. एक बार हाथ में उठाता हैथोडा सा उलट-पुलट कर रख देता है. यह हाल हैं इस प्रकार के अखबारों का. इलेक्ट्रानिक मीडिया के वर्चस्व के बावजूद वे अखबारअखबारों की भीड़ में अपनी गरिमा बनाए हुए है. अपनी विश्वसनीयता बनाए रखी है. समाचारों की विश्वसनीयता के लिए आज भी लोग सुबह उठते से इन्ही अखबारों को लोग खोजते हैं. चाय की चुस्कियों के साथ जो खबर समाचार चैनल पर सुनी थीवह पूरी तरह से पढ़ते हैं. उसकी सत्यता जानते हैं. अत: जिन लोगों को सही मायने में पत्रकारिता करनी होवे घटना स्थल पर जाएँउस घटना की पूरी जानकारी निकालेंउसके पीछे के कारणों को ढूढेंऔर उस घटना का प्रभाव समाज पर क्या पड़ा या पड़ेगाइसका भी आकलन करना चाहिए. समाचार संवाददाता को उन ठिकानों पर अपनी गिद्ध दृष्टि गड़ाए रखनी चाहिएजहाँ से समाचार प्राप्त किये जा सकते हैं. उस समाचार के ठिकानों के सभी लोगों या कम से कम कुछ लोगों से बड़े ही मधुर सम्बन्ध बना कर रखना चाहिएतभी समाचार संकलन में सफलता मिल सकती है. इसके अलावा बहुत ढेर समाचार ऐसे क्षेत्रों में भी घटित होते हैंजिनकी प्रकृति और स्थान दोनों अज्ञात होते हैं. इसलिए अपनी हद में उसे यायावरी भी करते रहना चाहिए.

कभी-कभी समाचार संकलन के साथ-साथ उससे सम्बंधित डाटा कलेक्शन की भी जरूरत पड़ती है. मान लीजिये इस समय प्रदेश और देश प्राकृतिक आपदा से गुजर रहा है. यदि इससे सम्बंधित समाचार लिखना है तो पीछे आई आपदाओं और की जानकारी पत्रकारों को अवश्य होनी चाहिएतभी वह अपने समाचार या उससे सम्बंधित लेख से लोगों को आकर्षित कर पायेगाअन्यथा नहीं.

किसी भी समाचार पत्र या इलेक्ट्रानिक मीडिया के लिए संवाददाता उसकी रीढ़ होते हैंजिस समाचार पत्र या इलेक्ट्रानिक्स मीडिया का संवाददाता जितना ज्यादा अपने प्रति ईमानदार होता हैअपने कार्य के प्रति निष्ठावान होता हैजीवन में कुछ करने और बनने की ललक होती हैंवही समाचारपत्र या इलेक्ट्रानिक्स मीडिया लोगों को आकर्षित कर पाती है. क्योंकि उसके समाचार संकलन में वह सभी चीजे होती हैंजिसकी पाठक या श्रोता अपेक्षा करता है. बाकी उसकी शिक्षा दीक्षा का उतना महत्त्व नहीं होता हैपढाई के दौरान जो सैद्धांतिक ज्ञान अर्जित होते हैंवे बातें करनेकिसी प्रश्न का उत्तर देने के लिए तो बहुत उपयोगी हो सकते हैंपर जब बात व्यवहार की आती हैतो उनका कोई बहुत बड़ा मोल कम से कम मुझे तो दिखाई नहीं दियाअपवाद हो सकते हैं. समाचार संकलन की दृष्टि से कार्यालय संवाददातामुख्य संवाददाताविशेष संवाददाताअंशकालिक संवाददाता आदि रूप में इनको पदनाम भी दिए जाते हैं. इन सभी संवादाताओं से यह अपेक्षा की जाती है कि उसे सभी विषयों का साथी ज्ञान होना चाहिए. जिस भाषा में वह समाचार लिखता या बोलता हैउस भाषा पर उसकी जबरदस्त पकड़ होनी चाहिएविशेष कर उसकी बोलियों पर या उन रोजमर्रा के शब्दों पर जो आम जनमानस द्वारा प्रयुक्त किये जाते हैं. भाषा विज्ञान का अध्येता होना इसके लिए जरूरी नहीं है. अपने देश की विविध संस्कृति और धर्मों का भी उसे ज्ञान होना चाहिए. क़ानून का भी व्यावहारिक ज्ञान होना चाहिए. किस धारा के अंतर्गत कौन से अपराध आते हैंइसका भी उसे ज्ञान होना चाहिए.

मेरे अनुसार पत्रकारिता के लिए सबसे प्रमुख गुण यह कि पत्रकार का लोक संपर्क बहुत ही मजबूत होना चाहिए. तभी वह अपने कर्तव्य के प्रति न्याय कर पायेगा. सभी गुण होने के बावजूद जिस पत्रकार का लोक संपर्क अच्छा नहीं होतावह पत्रकारिता के क्षेत्र में बहुत अच्छा नहीं कर पाता हैजब वह कुछ लिखता या पढता हैतो लगता है कि उसका लेखन किताबी ज्यादा हैंलोक से उसका न के बराबर संपर्क है.

प्रकाशन के आधार पर समाचार कई प्रकार के होते हैं. इस सभी प्रकार के समाचार के लिए लेखन की अलग-अलग शैली होती है. अलग-अलग प्रकार के भाषाई शब्दों का उपयोग किया जाता है. जैसे स्थनीय समाचार में स्थानीय शब्दों का उपयोग किया जाता हैप्रादेशिक समाचार में ऐसे शब्दों का चयन किया जाता हैजो क्षेत्रीय न होंपूरे प्रदेश की जनता उसे समझती हो. राष्ट्रीय समाचार में यह सतर्कता और भी बरतनी पड़ती है. विषय के आधार पर समाचारों को राजनीतिकआर्थिकसांस्कृतिकसाहित्यिकखेल सम्बन्धीस्वास्थ्य संबधी,पर्यावरण सम्बन्धी आदि विभागों में बांटा जाता है.

विश्व के सभी ख्यातनाम पत्रकारों ने इस पेशे के लिए अपना पूरा जीवन खपा दियाअपनी सारी खुशियाँ इसमें होम कर दीअपने परिवार और देश के अन्य परिवारों में कोई विभेद नहीं किया. सच के लिए बड़ी से बड़ी कुर्बानियां दी. अनेक ऐसे प्रलोभनों को ठुकरायाजिसके लिए आज के सतही पत्रकार मरे जा रहे हैं. पद और प्रतिष्ठा के प्रलोभन भी उनको उनके मार्ग से विचलित नहीं कर सके. तमाम झंझावातों को सहते हुएझेलते हुएधकेलते हुएवे अपने कर्तव्य पथ पर बढ़ते रहे.  इसी प्रकार के आदमी साहस और त्याग की अपेक्षा इस पेशे में आने वाले लोगों से की जाती है. अपने जीवन में इन सब चीजों का प्रतिशत जितना कोई पत्रकार बढाता जाता हैउतनी ही उसकी पत्रकारिता निखरती जाती है.

इन सभी विषयों का ज्ञान पत्रकारिता और उससे जुड़े लोगों को होनी चाहिए. इस पेशे में जो भी लोग आयेंउन्हें विद्या व्यसनी होना चाहिएहमेशा पढ़ते रहना चाहिए. क्योंकि आज कल की पत्रकारिता में हर पल अपडेट होने की जरूरत पड़ती है. जो लोग इसके साथ नहीं चलतेवे इसके माध्यम से अपनी रोजी- रोटी तो कमा लेते हैंपर ऐसा कुछ नहीं कर पातेतो अनुकरणीय हो.  पत्रकारिता के प्राध्यापक के रूप में मैंने देखा हैअधिकांश छात्र इस पेशे को एक मजाक समझते हैंउनको लगता हैवे जो कुछ लिख देंगेवही समाचार बन जाएगा. पर जब इस क्षेत्र में उतरते हैंतब उन्हें ध्यान आता है कि यह बच्चों का खेल नहीं है.

 

प्रो. (डॉ.) योगेन्द्र यादव

विश्लेषकभाषाविद, वरिष्ठ गांधीवादी-समाजवादी चिंतक व पत्रकार

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