बेटी पैदा होने पर तीन तलाक देकर घर से निकाला, पीड़िता ने कहा- अपना लूंगी हिंदू धर्महमीरपुर नाले में कार सहित बह गए सरकारी डॉक्टर और दोस्त जब गांव वालों ने डीएम को दिया 'बिजली रानी' के शादी का कार्डहत्
उत्तर प्रदेश के झांसी जिले में बेटी पैदा होने पर शादी के 12 साल बाद पत्नी को तीन तलाक देकर घर से निकालने का मामला सामने आया है. न्याय के लिए भटक रही महिला ने शरई अदालत की भी शरण ली, लेकिन वहां भी मदद से इनकार कर दिया गया.
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से संबद्ध इस अदालत के काजी (जज) ने कहा कि एक साथ तीन तलाक दिया गया है. तरीका तो गलत है, लेकिन अगर पति कहता है तो फिर तलाक मान लिया जाएगा. शरई अदालत से मदद नहीं मिलने पर अदालत के बाहर पीड़िता मुमताज बेगम ने फूट-फूट कर रोते हुए कहा कि अगर मदद नहीं मिली तो धर्म से उसका भरोसा उठ जाएगा और वह धर्म बदल लेगी. यह कैसा धर्म है तीन बार शौहर तलाक कह दे और उसको घर से निकाल दिया जाए. महिला का कहना है कि वह अब पीएम मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ से मदद मांगेगी.
बता दें झांसी के सीपरी थाना इलाके के आवास-विकास की रहने वाली मुमताज बेगम की शादी 21 दिसंबर 2003 को स्थानीय निवासी वारिस उज्जमा के साथ हुई थी. महिला के मुताबिक़ शादी के ठीक बाद वह प्रेग्नेंट हुई. इस दौरान ही पति व परिजनों ने कहना शुरू कर दिया कि उन्हें बेटा चाहिए, लेकिन दिसंबर 2004 में उसे बेटी हुई. इसके बाद पति व अन्य ससुरालियों ने उत्पीड़न करना शुरू कर दिया. और कहा कि मायके से पैदा हुई बेटी की शादी के लिए पांच लाख रुपये लाओ. अधिक उत्पीड़न होने पर मायके पक्ष ने एक प्लाट महिला के नाम कर दिया. मायके पक्ष ने कहा कि जब लड़की बड़ी हो जाए तो प्लाट बेचकर उसकी शादी करा दी जाए. इसके बाद कुछ समय के लिए ससुराल वाले शांत हो गए. महिला ने इसी बीच एक बेटे और उसके बाद फिर से बेटी को जन्म दिया.
मुमताज के अनुसार इसके बाद फिर उत्पीड़न करना शुरू कर दिया गया. ससुराल वाले अक्सर मारपीट करने लगे. महिला ने बताया कि कुछ दिन पहले उसे मारपीट कर एक साथ तीन तलाक कहते हुए घर से निकाल दिया गया. इसके बाद उसे तीन तलाक का नोटिस भेज दिया. उसने पति से संपर्क किया लेकिन उसने एक नहीं सुनी. उसके बाद उसने समाज के ठेकेदारों से न्याय की गुहार लगाई लेकिन इन लोगों ने भी मुमताज की मदद नहीं की. हतास होकर महिला ने शरई अदालत का दरवाजा खटखटाया और उसे वहां भी न्याय नहीं मिला तो भरी अदालत में मुमताज रो पड़ी.
ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड से सम्बद्ध दारुल कज़ा शरई अदालत के मुफ़्ती सिद्दीकी नकवी ने कहा कि तलाक शौहर का अधिकार है. अगर महिला को उसने तलाक दे दिया है तो उसे माना जाएगा. हालांकि तलाक का तरीका गलत है, लेकिन तलाक तो हो ही गया. शरियत काजी ने कहा कि अगर महिला धर्म बदलती है तो यह उसका निजी फैसला है. शरई अदालत के पास कोई पुलिस पॉवर नहीं है जो इस्तेमाल करे. उनका कहना है कि जिस तरह से तलाक दिया गया वह गलत है. लोग इस इस्लामिक क़ानून का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं. इससे धर्म की बदनामी हो रही है. इन सब बातों के बीच वह मदद की बात पर चुप हो गए.
शरई अदालत के जनरल सेक्रेटरी मुफ़्ती इमरान नदवी ने कहा कि हम पति का समाज से बायकाट करायेंगे, वहीं अदालत की यह बातें सुन महिला फूट-फूट कर रो पड़ी. महिला ने कहा कि अगर उसे मदद नहीं मिली तो धर्म से उसका यकीन उठ जाएगा. महिला ने कहा कि उसके बच्चे हैं. बच्चों को लेकर वह कहां जाएगी. उसके पास खाने को नहीं है. वह पीएम मोदी और सीएम योगी के पास मदद के लिए जाएगी. वह हिन्दू धर्म अपना लेगी.
मुस्लिम समाज में यह कोई पहली महिला नहीं है जो तीन तलाक का शिकार हुई है. ऐसी कई महिलाऐं हैं उन महिलाओं और मुमताज में फर्क सिर्फ इतना है की मुमताज ने तीन तलाक जैसे स्लामिक कानून का विरोध करते हुए हिन्दू विवाह कानून को सही ठहराया. ऐसे कई मामले हैं जो धर्म की आड़ में मुस्लिम समाज के मर्द मुस्लिम महिलाओं का शारीरिक शोषण करते हुए तीन तलाक दे कर उन्हें घर से निकाल देने के बाद फिर दूसरी ,तीसरी चौथी महिला से निकाह करते हैं. सबसे बड़ा सवाल शरई अदालत के काजी यानि न्यायधीश पर खड़ा होता है वो कहते हैं कि मुमताज को दिए गए तलाक के मामले में शौहर द्वारा दिए गए तीन तलाक का तरीका गलत है लेकिन अगर शौहर ने तलाक दे दिया तो तलाक सही है. अब सवाल उठता है कि अगर तलाक देने का तरीका गलत है तो तलाक कैसे सही मान लिया जाए कि मुमताज को दी गई तलाक सही है.