सऊदी अरब से लौटे मजदूरों ने सुनाई दास्तां, कहा- 'नरक से भी बदतर है वहां जिंदगी'

Update: 2016-10-01 10:13 GMT

पैसे कमाने की चाहत में बड़ी संख्या में भारतीय मजदूर खाड़ी देशों में जाते रहे हैं। इनमें से अधिकांश लोग कम पढ़े-लिखे होते हैं और वहां जाकर कंस्ट्रक्शन कंपनियों में काम करते हैं। उन्हें इस बात का यकीन रहता है कि कुछ विदेशी मुद्रा कमाकर वो अपने देश में रह रहे परिजनों के हालात सुधार सकेंगे लेकिन हाल के दिनों में तेल की गिरती कीमतों ने न सिर्फ उनके सपने चकनाचूर कर दिए हैं बल्कि उनलोगों की जिंदगी को नरक से भी बदतर हालात में पहुंचा दिया है। यह जुबानी है सऊदी अरब से लौटे उन मजदूरों की जो चंद पैसे की चाह में वहां गए थे और खाली हाथ लौटे हैं।

भारत, पाकिस्‍तान, बांग्‍लादेश और फिलीपींस से गए मजदूरों को वहां बेसहारा छोड़ दिया गया। नौकरी गंवाने के बाद इनके पास घर लौटने के लिए तो दूर, खाना खरीदने तक के लिए पैसे नहीं थे। इस सप्‍ताह बिहार के करीब 40 श्रमिक जब वापस लौटे तो उन्होंने बताया कि जिनके यहां वो लोग नौकरी करने गए थे, उनलोगों ने उन्हें मरने को छोड़ दिया था। ये सभी लोग सऊदी के प्रतिष्ठित कंपनी सऊदी ओगर में काम करने गए थे। यह कंपनी लेबनान के अरबपति और पूर्व प्रधानमंत्री साद हरि‍री की है।

एक समय था जब ये कंपनी 50 हजार श्रमिकों को पे-रोल पर रखती थी लेकिन इस कंपनी की आय में लगातार कमी आती गई। सऊदी अरब की तेल से होने वाली आय में कमी के कारण प्रोजेक्‍ट में देरी हुई जिसके कारण कंपनी का कंस्‍ट्रक्‍शन का प्रमुख काम बुरी तरह से प्रभावित हो गया।

इसी सप्‍ताह दिल्‍ली पहुंचे इलेक्ट्रिशियन इमाम हुसैन ने बताया, 'उन्‍होंने अचानक मेस (केंटीन) बंद कर दी। तीन दिन तो हमारे पास पीने के लिए पानी तक नहीं था। वहां बिजली भी नहीं थी। 'रियाद में सऊदी किंग सलमान के पेलेस के पुननिर्माण का काम करने वाले इस 27 वर्षीय युवा ने बताया, 'मुझे गिरफ्तारी का भी सामना करना पड़ा क्‍योंकि जिस कंपनी में मैं काम करता था उसने मेरे पहचान पत्र का नवीनीकरण नहीं कराया था, कुल मिलाकर हालात नर्क से भी बुरे थे।'

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