उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी में अंदर ही अंदर बंटवारा हो चुका है. शिवपाल यादव और अखिलेश यादव खुले तौर पर एक दूसरे पर हमला बोल रहे हैं. सार्वजनिक मंचों से एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप का दौर चल पड़ा है. उनके समर्थक भी खुल कर अब आमने सामने आ गए हैं. जहां अखिलेश समर्थक शिवपाल को पार्टी अध्यक्ष मानने को तैयार नहीं हैं वहीं शिवपाल ने मुख्यमंत्रियों के समर्थकों का पत्ता ही साफ कर दिया है. शिवपाल को पार्टी अध्यक्ष बनाए जाने के खिलाफ अखिलेश समर्थक कार्यकर्ता उग्र प्रदर्शन कर चुके हैं. जवाब में शिवपाल ने शिष्टाचार तोड़ने की आड़ में अखिलेश के तीन एमएलसी समेत कई युवा कार्यकर्ताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है.
चाचा शिवपाल यादव के साथ भतीजे और सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की लड़ाई पिछले कई दिनों से सबसे बड़ी खबर बनी हुई है. समाजवादी पार्टी में मचा यह घमासान अब सोशल मीडिया पर भी पसर गया है. सड़कों, गलियारों से होते हुए इन दो दिग्गजों के समर्थक अब सोशल मीडिया पर भी आपस में भिड़ गए हैं.
'मुद्दों पर असहमति है मनमुटाव नहीं'
अखिलेश और शिवपाल के समर्थकों की लड़ाई का सबसे बड़ा मैदान अब फेसबुक बन गई है. दोनों गुटों के समर्थक इस पारिवारिक कलह पर जम कर रोष निकाल रहे हैं. एक दूसरे के फेसबुक वॉल पर लगातार कमेंट पोस्ट कर रहे हैं.
अखिलेश फैन क्लब ने लिखा, 'कुछ मुद्दों में असहमति है लेकिन परिवार में कोई मनमुटाव नहीं है.
एक पोस्ट जिसपर 1700 प्रतिक्रियाएं आई थीं उसमें एक समर्थक ने अखिलेश की तुलना नेताजी सुभाष चंद्र बोस से कर दी. उसने लिखा, 'मुख्यमंत्री ने शानदार काम किया है और यही कारण है कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं.' इस पोस्ट को भी सैकड़ों लोगों ने शेयर किया.
'फैमिली तोड़ना अमर की आदत'
एक अन्य पोस्ट में कईयों ने समर्थन की मांग करते हुए लिखा, 'इस मुश्किल घड़ी में बिखरें नहीं, आप सभी के सहयोग से और मजबूत हुए अखिलेश भाई.' इस पोस्ट पर भी 11 हजार से अधिक कमेंट आए और लगभग 800 लोगों ने इसे शेयर भी किया.
समाजवादी पार्टी के आधिकारिक फेसबुक अकाउंट पर सपा समर्थक कुमार अनिरूद्ध ने लिखा, 'फैमिली मत बर्बाद करो शिवपाल जी. मान लो अखिलेश के अलावा आप के फैमिली में कोई उस लायक नहीं. अमर सिंह वही हैं जिसने अंबानी फैमिली तोड़ा, इसकी तो आदत है.'
अरविंद कुमार ने लिखा, 'शिवपाल जी आप लुटिया डुबो देंगे समाजवादी पार्टी का. मुलायम सिंह के अथक प्रयास से ये पार्टी आज इस मुकाम पर है. कृपा कर आप अखिलेश जी को पद संभालने दीजिए. इस में भलाई नहीं है तो चुनाव बाद सब समझ में आ जाएगा कि कौन इसके लायक है.'
'कभी बहुमत नहीं दिला सके शिवपाल'
रवि यादव ने अखिलेश के समर्थन में लिखा, 'इसमें कोई सन्देह नही है कि शिवपाल जी ने पार्टी को खड़ा करने में अपना खून पसीना एक कर दिया था. नेता जी का धोती कुर्ता धोया, प्रेस किया. साइकिल और जीप से गांव गांव की धूल फांकी और आज पार्टी को यहां तक लाने में नेता जी के साथ कंधे से कंधा मिलाया. पर उतना ही सच ये भी है कि पार्टी ने कभी बहुमत का मुंह नहीं देखा था.'
कुल मिलाकर इस वक्त उत्तर प्रदेश की सियासत के दो बड़े दिग्गजों की आपसी लड़ाई से सत्तारूढ़ पार्टी हासिए पर आ गई है और इसकी वजह से अगले साल होने वाली चुनाव की तैयारियों के मद्देनजर अन्य राजनीतिक दलों के मुकाबले पहले ही बहुत पीछे छूट गई है.
आगे है, रजत जयंती vs रथ यात्रा मुकाबला
अब पांच नवंबर को रजत जयंती के साथ ही चुनाव अभियान का आगाज करने का मन बना चुकी समाजवादी पार्टी यहां भी दो फाड़ नजर आने लगी है क्योंकि मुख्यमंत्री अखिलेश इस आयोजन का हिस्सा भी नहीं बनेंगे और इस समारोह से दो दिन पहले यानी 3 नवंबर को अपनी रथ लेकर जनता से संपर्क साधने की कवायद में लगने वाले हैं. इस रथ यात्रा में प्रचार तो अखिलेश पार्टी के लिए ही करेंगे लेकिन यहां भी उन विधानसभा क्षेत्रों में जहां शिवपाल के नजदीकी लोगों को उम्मीदवार बनाया गया है वहां अखिलेश क्या बोलते हैं इस पर भी नजर बनी रहेगी. यह देखना मजेदार होगा कि क्या शिवपाल के समर्थकों के क्षेत्र को अखिलेश इस प्रचार अभियान के दौरान छोड़ देते हैं?
इसके बाद चुनाव से पहले जो सबसे बड़ा मसला सामने आएगा वो है टिकट के बंटवारे का. नेताजी ने पार्टी अध्यक्ष के पद से हटा कर आजादी देने की बजाय अखिलेश को यहां भी इस अधिकार से भी बहुत हद तक वंचित रखा है. यानी चाचा-भतीजे के बीच चल पड़े इस सिरफुटव्वल में अभी बहुत कुछ देखने को मिलेगा.