जब रियो ओलंपिक में 22 साल की दीपा कर्माकर का मुकाबला शुरू होने को था तो हर हिंदुस्तानी की धड़कनें तेज हो चलीं थीं। मगर दीपा से जो उम्मीद थी, वह उन्होंने कर दिखाया। यूं तो दीपा ने 52 वर्षों के ओलंपिक खेलों के जिम्नास्टिक स्पर्धा में पहली भारतीय महिला एथलीट के तौर पर दाखिला लेकर पहले ही इतिहास बना दिया था, मगर ओलंपिक के वाल्ट के फाइनल में प्रवेश करते ही दीपा कर्माकर ने एक और इतिहास रचकर स्टेडियम के साथ टेलीविजन पर प्रदर्शन देख रहे भारतीयों को झूमने को मजबूर कर दिया।
स्टेडियम में मौजूद मिले दिल्ली के मूल निवासी सुधांशु कुमार ब्राजील के कारपोरेट सेक्टर से जुड़े हैं। दीपा की उपलब्धि पर कहते हैं कि अक्सर ओलंपिक से भारत के लिए निराशाजनक खबरें ही आती रही हैं, मगर अब कुछ अच्छा सुनने-देखने को मिला। रियो में ओलंपिक होने की जब से घोषणा हुई, तब से काफी उत्साह रहा कि यहीं पर अपने देश के खिलाड़ियों का प्रदर्शन देखने का मौका मिलेगा।
फाइनल जीतने के लिए दीपा की डगर है बहुत कठिन, सात दावेदार
दीपा सबसे आखिरी आठवें नंबर पर रखकर फाइनल तक पहुंचीं हैं। वे अब 14 फरवरी को वॉल्ट स्पर्धा के फाइनल मुकाबले में पदक की दावेदारी पेश करेंगी। दीपा ने 14.850 के स्कोर के साथ तीसरे सब डिवीजन के समापन तक छठें नंबर रहीं, मगर बाद में अमेरिका की सिमोन और कनाडा की शैलन ओल्सेन आखिरी के दो सब डिवीजन से उन्हें दो कदम नीचे कर दिया। फिर भी नियमानुसार आठवें पोजीशन तक के खिलाड़ी को फाइनल में जगह मिलनी थी, लिहाजा दीपा को फाइनल का टिकट मिल गया। इससे साफ पता चलता है कि पदक जीतने के लिए दीपा की राह आसान नहीं है। उन्हें बाकी सात प्रतिभागियों से कड़ा संघर्ष करना होगा। खास बात है कि दीपा ने वॉल्ट में सबसे कठिन माने जाने वाले प्रोदुनोवा को सबसे सफलतापूर्वक मुकाद पर पहुंचाया। रियो 2016 में ऐसा करने वालीं वह एकमात्र जिम्नास्ट रहीं।