अगर बारह वर्ष को युग मानने की अवधारणा को सत्य मानें तो इस घटना को युगों पुरानी कहा जा सकता है, पर जयपुर यूनिवर्सिटी में लगे पेंड़ भी इस बात की गवाही देते हैं कि इस कैम्पस में फिर कभी अमित शर्मा और सिद्धार्थ जोशी जैसे मित्र नही आये। मित्रता के सारे मानकों को इन दो बाभनों ने तोड़ ताड़ के छटका दिया था। उनकी जोड़ी जमती भी थी। राम श्याम या हिरा मोती वाले सारे उदाहरण फीके पड़ जाते थे जब दोनों एक दूजे का हाथ पकड़ कर टहलते हुए निकलते। एक सर्वे के अनुसार कैम्पस की आधी लड़कियों के सपनों के राजकुमार अमित शर्मा थे तो आधी के सिद्धार्थ जोशी। और बाकियों को कोई सर्वेश नामधारी बिहारी था। पर असंख्य रूपसिओं के सांकेतिक स्नेह निमंत्रण को ठुकराते हुए दोनों ने अपने हृदय में किसी को घुसने नही दिया था।
इस भयानक फेविकोल प्रायोजित मित्रता के बावजूद उनमे एक अंतर था, सिद्धार्थ शास्त्रों के पुजारी थे और अमित शस्त्रों के। रोज शाम को जब अमित की जयपुरी रजाई ओढ़ कर सिद्धार्थ का लाया हुआ बीकानेरी नमकीन खाते हुए जब दोनों धर्म और संस्कृति की रक्षा पर बहस करते तो अमित शस्त्रों को आवश्यक बताते और सिद्धार्थ शास्त्रों को, पर शस्त्रों से शास्त्रों का यह मतभेद कभी उनकी मित्रता पर हावी नही होता था। दोनों जब एक साथ चलते तो हज़ार कलेजों के साथ धरती कांपती थी।
उन्ही कांपते दिनों में इस युगल जोड़ी से दो साल जूनियर बैच में एक अद्भुत रूपसी कन्या का नामांकन हुआ, नाम था सारिका। पता नही क्या था उसके अंदर, कि पिछले बाइस साल से अपने हृदय के मेन गेट में अलिगढ़िया ताला लगा कर बंद करने वाले अमित शर्मा उसके प्रेम में ऐसे फिसले की ताला क्या पूरा गेट ही टूट गया। गुप्त स्थान का घाव और प्रेम का भाव दुनिया से तो छिपाया जाता है पर मित्र को बिस्तार से बताया जाता है, सो प्रेम में डूबने के ही दिन अमित ने अपना हृदय सिद्धार्थ के आगे खोल कर रख दिया। सिद्धार्थ पता नही क्यों प्रेम के मामले में अनुभवी माने जाते थे। सो अमित ने अपनी प्रेम कहानी को पटरी पर लाने का ठेका और अपना जीवन सिद्धार्थ के चरणों में सौंप दिया। उस रात जब नक्षत्रों के योग के अनुसार भद्रा में मृत्युबाण घुस गया था, तब सिद्धार्थ ने आस्वासन दिया कि वे अमित और सारिका का मिलन करा के ही दम लेंगे, तो अमित ने भी तलवार छु के सौगंध ली कि वे सदैव सिद्धार्थ के इस उपकार के आगे नतमस्तक रहेंगे।
अगले दिन जब अमित जी ने सिद्धार्थ को पहली बार दूर से सारिका को पहचनवाया तो पता नही क्यों सिद्धार्थ हांफने लगे। एक डेढ़ मिनट सोचने के बाद सिद्धार्थ ने थके हुए स्वर में कहा- ठीक है अमित, यह प्रेम कहानी अवश्य पूरी होगी।
उस दिन शाम को ज्योतिष की किताबों में डेढ़ घंटे तक पता नही क्या जोड़ घटा कर सिद्धार्थ ने अमित से कहा कि अभी तुम्हारी कुंडली के प्रेम वाले घर में राहु केतु और शनि महागठबंधन बना के बैठे हैं अतः अगले डेढ़ माह तक उससे मिलने पर काम बिगड़ सकता है। डेढ़ माह के बाद जब केतु शनि का साथ छोड़ कर मंगल के के साथ गठजोड़ करेगा तब शुक्र और बुध मिल कर चकचक योग बनाएंगे।तब प्रेम की राह पर कदम बढ़ाने से सफलता मिल जायेगी। अमित को वैसे तो ज्योतिष पर विश्वास नही था और वे ज्योतिषियों को नेताओं की तरह ही ठग समझते थे, पर अभी सिद्धार्थ की बात मानने में ही भलाई थी। उन्होंने डेढ़ महीना तक अपने कलेजे को मस्तराम की किताब के पैतीसवें पन्ने में दबा कर रख दिया पर सिद्धार्थ से निवेदन किया कि इन दिनों वे सारिका पर नजर रखें ताकि कोई अन्य उसके हृदय में घर न बना ले।
सिद्धार्थ इस मामले में बड़े सचरित्र व्यक्ति थे और लड़कियों से दूर दूर ही रहते थे पर मित्रता के लिए उन्होंने यह बीड़ा उठाया और अगले ही दिन सारिका के ग्रुप की ओर निकल पड़े। सिद्धार्थ के स्मार्टनेस की तो धाक थी हीं, लड़कियों में उनकी ज्योतिष बिद्या की भी बहुत चर्चा थी, सो लड़कियों ने उन्हें हाथो हाथ लिया और बारी बारी से अपना हाथ दिखाने लगीं। इस समय सिद्धार्थ गोपियों के बीच कृष्ण की तरह लग रहे थे। इसी क्रम में उन्होंने सारिका का भी हाथ देखा और उसके भविष्य के बारे में अनेक बातों के साथ यह भी बताया कि इसी कैम्पस में उसे शीघ्र ही अपने सपनों का राज कुमार मिलेगा।
डेढ़ घंटे बाद जब सिद्धार्थ रूम में आये और सारिका का हाथ देखने की बात बताई तो अमित ने एकाएक सिद्धार्थ का हाथ चूम लिया और इससे पहले कि सिद्धार्थ अपना हाथ छुड़ाते अमित ने चूम चूम कर उनका हाथ फुला दिया। सिद्धार्थ के डांटने पर अमित ने कलेजे पर हाथ रख कर आहें भरते हुए कहा- तुम नही जानते सिड, अगर सारिका ने अपने हाथों से तुम्हारा जूता छुआ होता तो मैं तुम्हारा जूता अपने माथे पर रख कर कोंग्रेसी हो जाता। सिद्धार्थ को अमित की यह हरकत पसंद तो नही आई पर मित्र की बात थी सो कुछ कह भी नही सकते थे। अगले दिन जब सिद्धार्थ सारिका की ओर गए तो उन्होंने अपने हाथ में रुमाल लपेट लिया था। डेढ़ घंटे बाद जब वे वापस आये तो अमित को रुमाल दे कर कहा- लो, सारिका का स्पर्श इसी रुमाल में बसा कर लाया हूँ। सिद्धार्थ अभी आज की बात बताने जा ही रहे थे कि देखा, अमित रुमाल को चबा कर खा गए थे।
अब यह रोज का काम हो गया, रोज सिद्धार्थ सारिका से मिल कर उसके दिल में अमित का प्रेम जगाते और इधर अमित शर्मा रूम में बैठ कर कुण्डलिनी जगाते थे। अमित एक एक दिन गिन कर राहु केतु और शनि का महागठबंधन टूटने की प्रतीक्षा कर रहे थे,और उधर सिद्धार्थ अमित और सारिका का गठबंधन कराने की ब्यवस्था कर रहे थे। सिद्धार्थ रोज एक रुमाल में सारिका का स्पर्श बसा कर लाते और अमित उसे बिना नमक मिर्च के ही चबा जाते और इस तरह उन्होंने पुरे साढ़े तीन दर्जन रुमाल चबा लिया था। इस तरह एक एक दिन बीतते बीतते वह दिन आ गया जिस दिन शुक्र और बुध मिल कर अमित की कुंडली में चकचक योग बनाने वाले थे।
सिद्धार्थ ने बताया था कि उस दिन अमित को काला कुरता और पीला पैजामा पहन कर सारिका के सामने जाना चाहिए, सो अमित ने यह अद्भुत वस्त्र सिलवा लिया था। सिद्धार्थ ने यह भी कहा था कि अगर उस दिन सारिका के सामने आने से पहले यदि अमित चींटी के घी में बने पांच पराठे पांच पीले कुत्तों को खिला दे तो सारिका पहली नजर में ही उसकी दीवानी हो जायेगी। सुबह उठ कर अमित ने यह अद्भुत टोटका आरम्भ किया और दोपहर में पीले कुत्तों को पराठा खिलाने के बाद कॉलेज आ कर सारिका से मिलना चाहा। पर दोपहर से शाम हो गयी सारिका का कहीं पता नही था। अंत में रात को 11 बजे रूम में पहुचे तो देखा, सिद्धार्थ का भी कहीं पता नही था। रात भर सिद्धार्थ को खोजते रहे अमित सुबह होते होते समझ गए कि प्रेमकहानी पूरी हुई और दोनों भाग गए।
उसके बाद फिर कभी सिद्धार्थ कॉलेज नही आये। दो वर्ष बाद अमित और सिद्धार्थ एक बार फिर मिले जब सिद्धार्थ उनके घर आये थे। अमित सिद्धार्थ को देख कर बहुत खुश हुए और उन्हें बरामदे में बैठा कर खुद चाय लाने अंदर गए। उनके अंदर जाने के बाद अचानक अंदर से घर्र घर्र की आवाज आने लगी तो सिद्धार्थ ने झांक कर देखा। देख कर उनका कलेजा कांप गया, अमित अंदर तलवार में धार लगा रहे थे। सिद्धार्थ ने भागने में एक पल की भी देरी नही की।
वो दिन है और आज का दिन है, अमित शर्मा तलवार ले कर सिद्धार्थ को खोज रहे हैं और सिद्धार्थ भागे फिर रहे हैं।
सर्वेश तिवारी श्रीमुख