योगनिद्रा से जागे श्रीहरि, रचाया तुलसी से विवाह

Update: 2017-10-31 15:49 GMT
भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम और माता तुलसी के मिलन का पर्व तुलसी विवाह सनातनी विधान से मंगलवार को मनाया गया। मुख्य आयोजन श्रीमठ की ओर से पंचगंगा घाट पर हुआ। इसके अतिरिक्त कार्तिक माह में नित्य गंगा स्नान करने वाली महिलाओं ने विभिन्न घाटों पर तुलसी विवाह की परंपरा निभाई।
इस विवाह में मंडप, वर पूजा, कन्यादान, हवन और फिर प्रीतिभोज, सब कुछ पारंपरा के अनुसार हुआ। शालिग्राम वर और तुलसी कन्या की भूमिका में थीं। तुलसी के पौधे को लाल चुनरी ओढ़ाई गई। सोलह शृंगार के सभी प्रतीक चढ़ाए गए। इस विधान को सम्पन्न कराने के लिए यजमान सपत्नीक मंडप में बैठे। शालिग्राम को दोनों हाथों में लेकर यजमान और यजमान की पत्नी तुलसी के पौधे को दोनों हाथों में लेकर अग्नि के फेरे लिए। विवाह के पश्चात प्रीतिभोज का आयोजन किया गया।
 सनातनी परिवारों में भी इस मांगलिक अवसर पर धार्मिक आयोजन किए गए। इस शुभ अवसर पर घर की साफ-सफाई की गई। पूजा के सथान पर रंगोली बनाई गई। तुलसी के पौधे का गमला, गेरू आदि से सजाकर उसके चारों ओर ईख का मंडप बनाया गया। उसके ऊपर सुहाग की प्रतीक चुनरी ओढ़ाई गई। गमले को साड़ी ओढ़ाकर तुलसी को चूड़ी चढ़ाकर उनका शृंगार किया गया। भगवान शालिग्राम का सिंहासन हाथ में लेकर तुलसीजी की सात परिक्रमा कराई गई। इसके बाद आरती उतारी गई। इस विवाह को महिलाओं के परिप्रेक्ष्य में अखंड सौभाग्यकारी माना गया है। 

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