उर्दू के मशहूर शायर जॉन एलिया का जन्मदिन है। उनका जन्म 14 दिसंबर 1931 अमरोहा के लाकड़ा मोहल्ले में हुआ था। देश के बंटवारे के बाद अमरोहा छोड़कर कराची चले गए। इसके बाद भी उनका अमरोहा आना-जाना लगा रहा। जॉन एलिया एक से बढ़कर एक शायरी लिखकर बहुत जल्द नामचीन शायरों में शामिल हो गए। जॉन एलिया अपने अपारंपरिक अंदाज के लिए मशहूर है। वर्ष 2002 में उनकी मौत से पहले 1999 में वह आखिरी बार अमरोहा आए थे। इससे पहले वर्ष 1978 में अमरोहा में आयोजित एक मुशायरे में भी एलिया आए थे।
मंच से जब उन्हें पाकिस्तान के मशहूर शायर कहकर पुकारा गया तो वह माइक संभालते ही फफक पड़े थे। तब उन्होंने कहा था कि मैं पाकिस्तानी नहीं हिन्दुस्तानी हूं। कराची में अमरोहा सोसायटी के नाम से कालोनी भी बस गई है जिसमें सभी त्योहार अमरोहा की तर्ज पर मनाए जाते हैं। इसके अलावा जॉन के नाम पर पाक सरकार ने डाक टिकट जारी किया है।
जॉन एलिया की मशहूर शायरियां
आज बहुत दिन बाद मैं अपने कमरे तक आ निकला था
जूँ ही दरवाज़ा खोला है उस की ख़ुश्बू आई है
अब जो रिश्तों में बँधा हूँ तो खुला है मुझ पर
कब परिंद उड़ नहीं पाते हैं परों के होते
अब तो उस के बारे में तुम जो चाहो वो कह डालो
वो अंगड़ाई मेरे कमरे तक तो बड़ी रूहानी थी
बहुत नज़दीक आती जा रही हो
बिछड़ने का इरादा कर लिया क्या
इलाज ये है कि मजबूर कर दिया जाऊँ
वगरना यूँ तो किसी की नहीं सुनी मैं ने
जो गुज़ारी न जा सकी हम से
हम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है
कौन इस घर की देख-भाल करे
रोज़ इक चीज़ टूट जाती है