लखनऊ । आगरा में पहली मंडलीय सर्वजन सुखाय-सर्वजन हिताय रैली की कामयाबी का जश्न मना रही बसपा को एक दिन बाद लगे तगड़े झटके ने पार्टी की सोशल इंजीनियरिंग गड़बड़ाने की आशंका बढ़ा दी है। स्वामी प्रसाद मौर्य के बाद ब्रजेश पाठक की बगावत ने पार्टी के दलित और ब्राह्मण गठजोड़ पर चोट की है। दयाशंकर सिंह प्रकरण के बाद बसपा की यह अगड़ा विरोधी छवि आगामी विधानसभा चुनाव में मुश्किलें खड़ी कर सकती है।
छात्र राजनीति से निकलकर आए ब्रजेश पाठक की पहचान पूर्वी व मध्य क्षेत्र में ब्राह्मण नेता की रही। बसपा में सतीश मिश्रा के बाद रामवीर उपाध्याय व ब्रजेश पाठक को ही ब्राह्मण चेहरा माना जाता रहा है। मीडिया से उनकी नजदीकियां भी रहीं। बसपा ने ब्रजेश को दो बार राज्यसभा भी भेजा और उनकी पत्नी नम्रता पाठक को पिछला विधानसभा चुनाव भी लड़ाया था। बसपा शासनकाल में ब्रजेश की पत्नी को राज्यमंत्री का दर्जा भी प्रदान किया गया था। उनके रिश्तेदारों को भी बसपा में भरपूर तरजीह मिली थी। इन्हीं ब्रजेश पाठक की बगावत से बसपा को दलित-ब्राह्मण समीकरण दुरुस्त करने में मुश्किलें आएंगी। वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा को बहुमत दिलाने में दलित ब्राह्मण गठजोड़ कारगर रहा था।
बगावत भांप नहीं सकी बसपा
स्वामी प्रसाद मौर्य द्वारा अचानक इस्तीफा देने के बारे में अनुमान लगाने से जिस तरह बसपा चूक गयी थी, उसी तरह ब्रजेश पाठक को लेकर भी पार्टी आंकलन नहीं कर सकी। पाठक ने जिस तरह झटका दिया, उससे बसपा के संगठनात्मक तंत्र पर भी सवाल खड़ा हुआ है। आगरा में पाठक ने रविवार को बसपा प्रमुख मायावती से मुलाकात की थी, तब बसपाइयों को इल्म भी नहीं था कि उन्हें ऐसा झटका लगेगा।
क्यों असंतुष्ट थे ब्रजेश
ब्रजेश पाठक का कहना है कि मायावती द्वारा ब्राह्मणों के टिकट काट उनकी लगातार उपेक्षा की जा रही है। राज्यसभा सदस्य नहीं बनाये जाने का भी पाठक को मलाल था। सूत्रों का कहना है कि ब्रजेश को उनकी मर्जी के मुताबिक टिकट नहीं मिल रहा था। ब्राह्मïण भाईचारा कमेटी में भी उन्हें सम्मानजनक स्थान नहीं मिल सका था। बड़े भाई और उनके साले पूर्व एमएलसी गुड्डू त्रिपाठी को भी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। पाठक इससे खफा थे।
सफाई देते रहे हैं पाठक
ब्रजेश पाठक के बसपा छोडऩे की चर्चा सोशल मीडिया पर यदाकदा चलती रही है। पाठक हमेशा इसका खंडन करते रहे। करीब एक सप्ताह पहले उन्होंने इस मुद्दे पर सफाई भी दी थी। यह कहते हुए कि 'यह उनके खिलाफ बेहूदी शरारत है। लोग बसपा को बदनाम करना चाहते हैं। बहनजी हमारी नेता हैं ।
छात्र राजनीति से बढ़े
हरदोई के रहने वाले ब्रजेश पाठक ने लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्र राजनीति से सियासी जीवन की शुरुआत की और छात्रसंघ अध्यक्ष चुने गए। पाठक वर्ष 2002 में कांग्रेस के टिकट पर हरदोई के मल्लावां विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े और बसपा के सतीश वर्मा से मात्र 130 वोटों से हार गए। ब्रजेश इसके बाद बसपा में शामिल हो गए और 2004 में उन्नाव लोकसभा सीट पर बसपा सांसद निर्वाचित होने के बाद चर्चा में आए।
इतवार को ही बर्खास्त किये गए थे पाठक : बसपा
बसपा महासचिव सतीश मिश्र ने बताया कि ब्रजेश पाठक ने रविवार को आगरा में रैली स्थल पर मायावती से मुलाकात की और अपने परिजनों को विधानसभा चुनाव लड़ाने के लिए टिकटों की मांग की जबकि पार्टी पहले ही इनकार कर चुकी थी। इनकार के बाद भी टिकट मांगने की अनुशासनहीनता के चलते पाठक को गत 21 अगस्त को ही बर्खास्त करने का निर्णय ले लिया गया था। मिश्र ने बताया कि मीडिया से संबंधित कोई जिम्मेदारी पार्टी द्वारा पाठक को नहीं दी गयी थी।