बसपा मुखिया मायावती को विधानसभा चुनाव से पहले झटके पर झटका लग रहा है। एक-एक कर नेता साथ छोड़ रहे हैं। तू चल मैं आता हूं-वाली बात लागू हो रही। इस बार और बड़ा झटका माना जा रहा। क्योंकि उनके सबसे खास और वफादार सतीश मिश्रा के परिवार की निष्ठा भी अब बसपा से डोल चली है। सतीश की बहन दिव्या मिश्रा ने हाथी की सवारी छोड़कर कमल का फूल थाम लिया है।
भाजपा ने तंज कसते हुए कहा है कि जिस तरह से विरोधी दलों के नेता पार्टी में आ रहे हैं, उससे साफ पता चलता है सूबे में अगली सरकार भाजपा की बननी है। क्योंकि पार्टी की लहर चल रही।
बसपा राज में मंत्री का मिला था दर्जा
2007 से 2012 के बीच बसपा सरकार में भाई सतीश की बदौलत दिव्या को महिला कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष की कुर्सी नसीब हुई थी। उस समय सतीश मिश्रा की दूसरी बहन आभा अग्निहोत्री को उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग का अध्यक्ष बनाया गया था। यानी महिलाओं से जुड़े दोनों आयोग की कमान सतीश मिश्रा की बहनों के हाथ रही।
दिव्या बोलीं भाई से रिश्ते पर फर्क नहीं पड़ेगा
भाई के बसपा में होने और खुद के भाजपा में शामिल होने के सवाल पर दिव्या मिश्रा ने कहा कि इससे पारिवारिक रिश्तों पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। भाजपा में महिलाओं का सम्मान है। एनसीआरबी की रिपोर्ट में आया है कि यूपी में यौन हिंसा की घटनाएं ज्यादा हो रहीं। भाजपा के साथ जुड़कर वीमेन क्राइम रोकने पर काम होगा।
डगमगा सकती है सोशल इंजीनियरिंग
2007 में सोशल इंजीनियरिंग के दम पर ही बसपा को जीत नसीब हो सकी थी। दलित वोटों के साथ जब सवर्ण व अति पिछड़ा वोट जुड़े तो बसपा ने दमदार जीत दर्ज की। मगर 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले बसपा के नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्या ने ही साथ छोड़ दिया तो पार्टी से बाहर होने की लाइन लग गई। नेता व विधायक की बात छोड़िए संगठन देख रहे कोआर्डिनेटर जुगल किशोर जैसे लोग भी भाजपा में शामिल हो गए। हाल में ब्राह्मणों को पार्टी से जोड़ने के लिए भाईचारा कमेटी देख रहे उन्नाव के पूर्व सांसद ब्रजेश पाठक भी भाजपा में शामिल हुए तो बसपा की सोशल इंजीनियरिंग को बड़ा झटका लगा। अब दिव्या मिश्रा के भाजपा में जाने से बसपा में एक और ब्राह्मण चेहरा कम हो गया है। माना जा रहा है कि चुनाव में इससे बसपा को नुकसान उठाना पड़ेगा।