समाजवादी पार्टी में मचे घमासान के बाद अब सत्ता और संगठन में तालमेल बनाना टेढ़ी खीर हो गया है। रविवार को राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव के भांजे और सोमवार सुबह अखिलेश के नजदीकी सात युवा नेताओं को सपा से निष्कासित करने के फैसले से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और सपा के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव के बीच पहले से बनी दरार और गहरा गई है। इससे सपा व सरकार का आंतरिक संघर्ष तेज होने के आसार हैं। यह सत्ता व संगठन में बीच टकराव की स्थिति तक पहुंच सकता है। अभी तक प्रदेश सरकार के मुखिया व सपा के प्रदेश अध्यक्ष पद की दोनों ही जिम्मेदारियां अखिलेश के पास थी। सत्ता और संगठन के सर्वोच्च पद उनके पास होने के कारण वे दोनों में तालमेल बैठाते थे।
उन्होंने अपनी टीम इसी तरह खड़ी की थी कि सत्ता व संगठन में समन्वय बना रहे। उनमें टकराव की स्थिति पैदा न हो। सीएम ने कुछ अफसरों को जिम्मेदारी सौंप रखी थी कि वे संगठन से जुड़े नेताओं की बात सुनकर उन पर कार्रवाई करें। कुनबे में घमासान के बीच 13 सितंबर को अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाकर जिम्मेदारी वरिष्ठ मंत्री शिवपाल को दे दी गई थी। इसकी प्रतिक्रिया में सीएम ने शिवपाल के सभी महत्वपूर्ण विभाग छीन लिए थे।
दोनों के बीच मतभेदों को सपा मुखिया ने किसी तरह सुलह तक पहुंचाया, लेकिन रविवार को रामगोपाल यादव के भांजे एमएलसी अरविंद प्रताप सिंह और सोमवार को अखिलेश के नजदीकी विधान परिषद सदस्य सुनील यादव साजन, आनंद भदौरिया, संजय लाठर और युवा संगठनों के तीन प्रदेश अध्यक्षों व एक राष्ट्रीय अध्यक्ष के निष्कासन से हालात विस्फोटक हो गए हैं। युवा नेता पदों से इस्तीफा दे रहे हैं, पार्टी नेतृत्व के फैसले पर विरोध जता रहे हैं। इससे तालमेल के बजाए घमासान और बढ़ने की संभावना है
सीएम की रथयात्रा टली, अगली तारीख तय नहीं
सत्ता और संगठन के बीच विवाद की छाया अखिलेश की समाजवादी विकास रथयात्रा पर पड़ गई है। सीएम ने खुद ट्वीट करके 3 अक्तूबर से रथ यात्रा शुरू करने की जानकारी दी थी, लेकिन अब इसे स्थगित कर दिया गया है। मौजूदा माहौल में वह प्रदेश में चुनाव प्रचार के लिए निकलने को तैयार नहीं हैं। जिन युवाओं के भरोसे रथयात्रा में शक्ति प्रदर्शन की तैयारी थी, उनके प्रमुख नेताओं को पार्टी से बाहर कर दिया गया है।
सत्ता और संगठन की अलग-अलग राह होने के कारण रथयात्रा की अगली तारीखें भी तय नहीं हुई है। सीएम की इस महत्वाकांक्षी रथयात्रा को चुनाव से पहले सपा के पक्ष में माहौल बनाने के लिहाज से अहम माना जा रहा था।
सरकार के कामकाज का प्रचार होगा प्रभावित
अखिलेश अभी तक यही कहते रहे हैं कि सपा सरकार ने जितना काम किया है, यदि उसे जनता के बीच पहुंचाने में कामयाब रहे तो सत्ता में लौटने से कोई नहीं रोक पाएगा। वे पार्टी संगठन, खासतौर से युवाओं के जरिये सरकार के कामकाज के प्रचार पर खासतौर जोर दे रहे थे।
युवाओं को बड़ी तादाद में सरकार के कामकाज से संबंधित प्रचार सामग्री मुहैया कराई गई है। इनका गांव-गांव वितरण कराया जा रहा है। सत्ता और संगठन में तालमेल गड़बड़ाने से सरकार की योजनाओं के प्रचार-प्रसार का काम प्रभावित होगा। सपा की चुनावी संभावनाओं को भी झटका लगेगा।
चुनाव प्रचार से बूथ तक की जिम्मेदारी अध्यक्ष की
अभी तक पार्टी के चुनाव प्रचार से लेकर बूथ स्तर के मैनेजमेंट की जिम्मेदारी अखिलेश पर थी। उनके निर्देश पर एक से सात सितंबर तक हर विधानसभा क्षेत्र में बूथ प्रभारियों व कार्यकर्ताओं के सम्मेलन किए गए। जिस दिन अखिलेश ने शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष के रूप में स्वीकार किया, उसी दिन कहा था कि प्रचार और बूथ स्तर की जिम्मेदारी अब वहीं देखेंगे। हालांकि वह चाचा शिवपाल को उनके घर अध्यक्ष बनने की बधाई देने गए थे, लेकिन लौटने पर उनके तेवरों से साफ था कि अब सरकार और संगठन अपनी-अपनी राह चलेंगे।
विधायक तय करेंगे कौन होगा 2017 में सीएम
परिवार के विवादों के बीच सीएम अखिलेश यादव ने कहा है कि 2017 के चुनाव में कौन चेहरा होगा यह नेताजी तय करेंगे। सपा के सत्ता में आने पर सीएम कौन बनेगा, यह नेताजी और निर्वाचित विधायक तय करेंगे। उनके इस बयान से जाहिर है कि टिकटों की कितनी मारामारी होगी। एक-एक सीट पर अखिलेश और शिवपाल समर्थक आमने-सामने होंगे। इसका नतीजा टकराव के रूप में सामने आ सकता है।