परिवार ने खाया जहर, मां-बेटे की मौत: अटकती रही एंबुलेंस, अंदर तड़पती रहीं जिंदगियां; यूपी में मर गईं संवेदनाएं

Update: 2025-01-14 06:09 GMT

सहारनपुर में देहरादून हाईवे पर हरोड़ा गांव के पास बाइक सवार दिव्यांग दंपती ने तीन बच्चों समेत जहरीला पदार्थ खा लिया। सभी को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया। देर शाम एक बच्चे की मौत हो गई। सोमवार देर रात महिला ने भी दम तोड़ दिया।

सहारनपुर में तीन बच्चों के साथ जहरीला पदार्थ निगलने के मामले में सोमवार देर रात पत्नी रजनी ने भी निजी अस्पताल में दम तोड़ दिया। जबकि पति विकास की हालत गंभीर बनी हुई है और दोनों बेटियों की हालत स्थिर है। मंगलवार सुबह भीम आर्मी के राष्ट्रीय महासचिव कमल वालिया भी कार्यकर्ताओं के साथ निजी अस्पताल में पहुंचे। आरोप लगाया कि जिला अस्पताल में लापरवाही के कारण सोमवार शाम डेढ़ वर्षीय विवेक की मौत हो गई थी। वहां से उन्हें समय से एंबुलेंस उपलब्ध नहीं कराई गई। उन्होंने फाइनेंस कंपनियों पर भी कार्रवाई की मांग की है। सूचना मिलने पर पुलिस मौके पर पहुंची। पुलिस ने महिला के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा। वहीं बच्चे के शव का पोस्टमार्टम नहीं कराया गया और देर रात दफना दिया गया।


बता दें, कि नंदी फिरोजपुर गांव के रहने वाले विकास ने सोमवार दोपहर हरोड़ा गांव के पास अपने तीन बच्चों परी, पलक, विवेक और पत्नी रजनी को जहर देकर खुद भी जहरीला पदार्थ ले लिया था। जिससे उनकी हालत बिगड़ गई थी। सोमवार शाम को मासूम विवेक की मौत हो गई थी। देर रात रजनी ने भी दम तोड़ दिया।

अटकती रही सिस्टम की एंबुलेंस, अंदर सिसकती रहीं सांसें

उधर, जिंदगी के लिए छटपटा रहे तीन मासूम और दंपती के साथ जिला अस्पताल में जो हुआ वह मानवीय संवेदनाओं को झकझोर कर देने वाला था। पहले ट्रामा सेंटर के अंदर डॉक्टर सिर्फ प्राथमिक उपचार तक सीमित रहे। हद तो तब हो गई जब रेफर करने के लिए 108 एंबुलेंस में लिटा दिया गया और दोनों एंबुलेंस के ड्राइवरों को लखनऊ से आइडी ही नहीं मिली, जिस कारण 20 मिनट तक वहीं खड़े रहे और अंदर तीन मासूम और दंपती तड़पते रहे।

आधा घंटे तक चली कागजी कार्रवाई

दरअसल, दोपहर करीब डेढ़ बजे पांचों पीड़ितों को जिला अस्पताल में लाया गया। वहां पर ट्रामा सेंटर में चार बेडों पर उन्हें लिटाया और प्राथमिक उपचार शुरू कर दिया। पूरा परिवार तड़पता रहा, लेकिन उन्हें आईसीसीयू में भर्ती करना भी उचित नहीं समझा। वहां पर मौजूद डॉक्टर बार-बार कहते नजर आए कि रेफर करो। इसके बाद रेफर के लिए कागजी कार्रवाई शुरू हुई, जो करीब आधा घंटे तक चली। कागजी कार्रवाई पूरी होने के बाद दो 108 एंबुलेंस बुलवाई गई। एक एंबुलेंस में विकास और एक बेटी, जबकि दूसरी एंबुलेंस में रजनी और दोनों छोटे बच्चों को लिटा दिया गया।

20 मिनट बाद चली बच्चों वाली एंबुलेंस

ड्राइवरों ने बताया कि लखनऊ से आइडी मिलने के बाद ही चलेंगे। वह बार-बार लखनऊ फोन कर आइडी मांगते रहे। इस प्रक्रिया में करीब 20 मिनट लगे। 20 मिनट बाद बच्चों वाली एंबुलेंस चली गई। जिस एंबुलेंस में दंपती थे वह महज 10 मीटर दूर जाकर फिर खड़ी हो गई। बताया कि आइडी में कोई समस्या है। करीब पांच मिनट तक खड़ी रही और तब जाकर मेडिकल के लिए रवाना हुई। इस दौरान परिजन और वहां मौजूद हर व्यक्ति यह कहता नजर आया कि पांच जिंदगी का सवाल है, जल्दी लेकर जाओ।


यह होती है आइडी

किसी एंबुलेंस को बाहर भेजने से पहले लखनऊ से आइडी पासवर्ड मिलता है। उसमें कॉलर की डिटेल होती है। आइडी में गाड़ी व मोबाइल नंबर दर्ज होता है। क्योंकि हर एंबुलेंस में जीपीएस सिस्टम लगा है। लखनऊ से हरी झंडी मिलने पर एंबुलेंस रवाना होती है।

सहमे रहे दूसरे मरीज, मची रही चीख-पुकार

ट्रामा सेंटर में पांचों की चीख-पुकार सुनकर दूसरे बेड पर भर्ती मरीज भी सहमे नजर आए। छजपुरा गांव की महिला सुमन भी वहां पर भर्ती थी। उसके पास वाले बेड पर एक तरफ विकास और दूसरी तरफ बेड पर विकास की पत्नी रजनी थी। दोनों बार-बार उल्टियां कर रहे थे। इसी तरह दूसरी तरफ बेड पर भर्ती एक मरीज पूरे सवा घंटे तक कंबल के अंदर मुंह ढककर लेटा रहा। किसी ने भी यह नहीं सोचा कि दूसरे मरीजों को एक तरफ कर दिया जाए। इतनी चीख-पुकार सुनककर उन पर क्या बीत रही होगी, वह भी तो मरीज ही थे।

ट्रामा सेंटर में करीब सवा घंटा ऐसा बीता कि कुछ देर के लिए विकास, रजनी, दोनों बेटी परी और पलक भी चुप हो गए, लेकिन सबसे छोटा डेढ़ वर्षीय मासूम विवेक तड़पता रहा। वह बार-बार पेट पर हाथ मार रहा था। मासूम को इस हालत में देखकर वहां पर मौजूद हर व्यक्ति यही कह रहा था कि आखिर इसका क्या कसूर था। विकास ने यह गलत किया। बच्चों की क्या गलती थी जो इन्हें इस हालत में पहुंचा दिया।

जिला अस्पताल में भर्ती विकास की हालत सबसे ज्यादा खराब थी। जब उससे पूछा गया कि कहां जा रहे थे और ये सब क्यों किया तब उसने लड़खड़ाते शब्दों में कहा हम तो मरने के लिए निकले थे, जिंदा रहकर भी क्या करें। कर्ज के दबाव ने बर्बाद कर दिया है। बस बच्चों को बचा लो। रजनी भी बार-बार कह रही थी कि मेरे बच्चों को बचा लो। जब पूछा गया कि जहर क्यों खाया तो बोली कि क्या करते, तंग आ चुके थे।

तीन बच्चों के साथ दिव्यांग दंपती ने खाया जहर, मां-बेटे की मौत

सहारनपुर में देहरादून हाईवे पर हरोड़ा गांव के पास बाइक सवार दिव्यांग दंपती ने तीन बच्चों समेत जहरीला पदार्थ खा लिया। सभी को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया। देर शाम एक बच्चे की मौत हो गई। सोमवार देर रात महिला ने भी दम तोड़ दिया। बताया जा रहा है कि दंपती ने सात-आठ फाइनेंस कंपनियों से करीब पांच लाख रुपये का लोन ले रखा था, जिसके चलते यह कदम उठाया है।

देहात कोतवाली क्षेत्र के नंदी फिरोजपुर गांव निवासी विकास (45) गांव में ही जूते, चप्पल बनाने का काम करता है। इसके अलावा आसपास के क्षेत्र में फेरी भी लगाता है। विकास एक पैर से दिव्यांग है। उसकी पत्नी रजनी भी दिव्यांग थी। सोमवार सुबह विकास बाइक पर पत्नी और तीन बच्चों परी (6), पलक (3) और विवेक (डेढ़ वर्ष) को साथ लेकर घर से निकला। दोपहर करीब 12 बजे हाईवे पर हरोड़ा गांव के नजदीक बाइक रोकी, जहां पांचों की हालत बिगड़ने लगी और वह उल्टी करने लगे। वहां पर भीड़ इकट्ठा हो गई। पता चला कि विकास ने पहले तीनों बच्चों को सल्फास दी, इसके बाद पत्नी और खुद भी सल्फास निगल ली। इसी दौरान वहां से गुजर रहे नागल निवासी बाबर ने पांचों को अपनी कार से पहले हरोड़ा सीएचसी और फिर जिला अस्पताल पहुंचाया। 

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