उदास पड़ी है गांव की सड़कें

Update: 2025-01-20 05:04 GMT

अभय  सिंह। .......

उदास पड़ी है गांव की।

सुनीसानी ये जो सड़कें।।

लेकर हमसब सायकिल।

निकल पड़ते थे तड़के।।

अब तो शहर चले गए।

हमारे गांव के बच्चे।।

भूल गए हैं वो बचपना।

मोबाईल में ऐसे चिपके।।

संध्या होते ही गांव में।

छा जाता है सन्नाटा।।

मन तो कचोटता है पर।

समझ में कुछ न आता।।

जिम्मेदारियों के बोझ ने।

हमें शहर में खींच लाई।।

अब वैसा सुकून कहां?

यहां पर जो मिल पाई।।

अप्रतिम यह नजारा।

यादों में रह गया है।।

अब तो दो कठ्ठे के।

पार्क में लोग रम गया है।।

रोजी रोजगार खातिर।

हर गांव की यही कहानी है।।

जीवन की आपाधापी में।

सामना रोज करते परेशानी है।।

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