शैव परंपरा क्या है, कितनी हैं इनकी शाखाएं? नागा के साथ और कौन से पंथ करते हैं इसका अनुसरण

Update: 2025-01-24 08:15 GMT

हिंदू धर्म में एक संप्रदाय है, जो भगवान शिव को ही सर्वोच्च ईश्वर के रूप में मानता है, यह शैव परंपरा कहलाती है और उनके अवतारों को ही मानने वालों को शैव कहते हैं। शैव धर्म की परंपराएं, वेदों, और उपनिषदों जैसे धार्मिक ग्रंथों पर आधारित है। शैव में शाक्त, नाथ, दसनामी, नाग आदि उप संप्रदाय माने गए हैं। वहीं, महाभारत महाकाव्य में शैव के चार संप्रदाय बताए गए हैं। शैव, पाशुपत, कालदमन और कापालिक। शैवमत का मूलरूप ऋग्वेद में देखने को मिल जाता है।

कितनी है शैव की शाखाएं?

शैव धर्म की कई शाखाएं हैं, जिनमें से कुछ मुख्य शाखाओं के बारे में हम आपको जानकारी नीचे दे रहें हैं- पाशुपत शैव धर्म, कश्मीर शैव धर्म, वीर शैववाद, सिद्ध सिद्धांत, शिव अद्वैत। ये सभी शैव शाखाएं एकेश्वरवादी होते हैं, ये भगवान शिव को ही सर्वोच्च मानते हैं। शैव मंदिर को शिवालय कहा गया है, जहां भगवान शिव, शिवलिंग के रूप में विराजमान होते हैं।

शैव संप्रदाय के साधु के संस्कार

शैव संप्रदाय के संत शिव के अलावा, किसी और को सर्वोच्च ईश्वर का दर्जा नहीं देते हैं। ये भगवान शिव की तरह जटा रखते हैं, इनमें से कुछ सिर मुंडवाते हैं, पर चोटी नहीं रखते। वहीं, ये संत अपने अधिकतर अनुष्ठान रात्रि में ही करते हैं। इनमें से कुछ संत निर्वस्त्र रहते हैं तो कुछ भगवा वस्त्र धारण करते हैं और हाथ में कमंड, चिमटा, त्रिशूल आदि रखते हैं। ये अपने शरीर पर भस्म लगाकर रखते हैं।

इन संप्रदाय के संतों को नाथ, अघोरी, अवधूत, बाबा, औघड़, योगी और सिद्ध के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा नागा साधु भी इसी संप्रदाय में आते हैं। नागा के साथ अघोर पंथ भी शैव परंपरा का ही अनुसरण करते हैं।

क्या हैं ग्रंथ और तीर्थ?

शैव के अपने कुछ ग्रंथ भी हैं इनके नाम है- श्वेताश्वररा उपनिषद, शिव पुराण, आगम ग्रंथ और तिरुमुराई। शैव के लिए बस कुछ ही तीर्थ विशेष होते हैं, जिनमें बनारस, केदारनाथ, सोमनाथ, रामेश्वरम, चिदंबरम, अमरनाथ, कैलाश मानसरोवर।

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