लोगों को परजीवी मत बनाइए... मुफ्त की 'रेवड़ियों' पर जानिए सुप्रीम कोर्ट ने आज क्या क्या कहा

Update: 2025-02-12 13:45 GMT

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पार्टियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि चुनावों के दौरान मुफ्त की स्कीमों की घोषणा किए जाने के कारण लोग काम करने से बच रहे हैं और देश के विकास में हिस्सा नहीं ले रहे हैं. जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि, "दुर्भाग्य की बात है कि मुफ्त में मिलने वाली चीजों के कारण.... लोग काम करने से बचने लगे हैं. उन्हें मुफ्त में राशन मिल रहा है. उन्हें बिना कुछ काम किए ही पैसे मिल रहे हैं."

फ्रीबीज पर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी

राष्ट्र के विकास में योगदान देकर उन्हें मुख्यधारा के समाज का हिस्सा बनाने के बजाय क्या हम परजीवियों का एक वर्ग नहीं बना रहे हैं?"

दुर्भाग्य से, इन मुफ्त सुविधाओं की वजह से, जो चुनावों के ठीक पहले घोषित की जाती हैं... कोई लाडली बहना, कोई दूसरी योजना. इस वजह से लोग काम करने को तैयार नहीं हैं.

उन्हें मुफ्त राशन मिल रहा है.

उन्हें बिना काम किए ही कुछ राशि मिल रही है.

क्या उन्हें मुख्यधारा के समाज का हिस्सा बनाना बेहतर नहीं होगा.

उन्हें राष्ट्र के विकास में योगदान करने की अनुमति दी जानी चाहिए.

पीठ ने कही ये बात

पीठ ने कहा, "हम लोगों के प्रति आपकी सद्भावना को समझते हैं लेकिन क्या यह बेहतर नहीं होगा कि उन्हें सोसाइटी की मेन स्ट्रीम का हिस्सा बनाया जाए और देश के विकास में हिस्सा लेने का मौका दिया जाए." न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने बेघर व्यक्तियों के लिए आश्रय के अधिकार से संबंधित एक मामले की सुनवाई करते हुए ये बात कही.

छह हफ्ते बाद होगी अगली सुनवाई

अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि केंद्र सरकार शहरी गरीबी उन्मूलन मिशन को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में है. इसका उद्देश्य शहरी बेघरों के लिए आश्रय समेत प्रमुख मुद्दों का समाधान करना है. इसके जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप हमें बताएं कि इस मिशन को कब तक अंतिम रूप दिया जाएगा. कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई छह हफ्तों बाद की रखी है.

पहले भी मुफ्त की योजनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने की है टिप्पणी

बता दें कि यह पहली बार नहीं है जब मुफ्त की योजनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को घेरा है. बीते साल कोर्ट ने केंद्र और इलेक्शन कमीशन से पूछा था कि पॉलिटकल पार्टी हमेशा ही चुनावों से पहले मुफ्त स्कीमों की घोषणाएं करती हैं. अधिक वोट्स पाने के लिए पॉलिटिकल पार्टियां मुफ्त की योजनाओं पर निर्भर रहती हैं और इसका एक उदाहरण हाल ही में हुए दिल्ली चुनावों में भी देखा गया है. 

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