अयोध्या के DM चंद्र विजय सिंह से नाराज हुए CM योगी? 9 महीने में ही राम नगरी से हटाया

Update: 2025-04-16 01:53 GMT

उत्तर प्रदेश में मंगलवार रात 16 आईएएस अधिकारियों के तबादले किए गए. इनमें छह जिलों के जिलाधिकारी भी शामिल थे. जिन छह जिलाधिकारियों का ट्रांसफर किया गया है, उनमें अयोध्या के जिलाधिकारी चंद्र विजय सिंह का नाम भी शामिला था. उनकी जगह आईएएस निखिल टीकाराम फुंडे को अयोध्या का नया जिलाधिकारी बनाया गया है. आईएएस चंद्र विजय सिंह करीब एक साल से अयोध्या में तैनात थे. चूंकि अयोध्या इस समय योगी सरकार की प्राथमिकता में है. वहां पर राम मंदिर के निर्माण के साथ-साथ और भी विकास कार्य चल रहे हैं. ऐसे में इतनी जल्दी जिलाधिकारी को हटा देना कई सवाल खड़े करता है. सूत्र तो ये भी बता रहे हैं कि सीएम योगी की नाराजगी की वजह से डीएम चंद्र विजय सिंह को हटाया गया.

दरअसल, 7 अगस्त 2024 को राजर्षि दशरथ मेडिकल कॉलेज, दर्शन नगर अयोध्या के संविदा लिपिक प्रभुनाथ मिश्रा ने संदिग्ध परिस्थितियों में जहर खा लिया था. गंभीर स्थिति में उन्हें केजीएमयू, लखनऊ रेफर किया गया था, जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई. पोस्टमार्टम के दौरान मौत का कारण स्पष्ट न होने पर बिसरा सुरक्षित किया गया और विधि विज्ञान प्रयोगशाला भेजा गया.

उत्पीड़न के आरोप और DNA जांच में विसंगति

परिजनों ने तत्कालीन प्राचार्य डॉ. ज्ञानेंद्र कुमार पर प्रभुनाथ का उत्पीड़न करने और आत्महत्या के लिए बाध्य करने का आरोप लगाया. स्टेट मेडिकोलीगल एक्सपर्ट डॉ. जी. खान ने रिपोर्ट में जहर से दम घुटन होने की आशंका जताई. परिजनों की मांग पर बिसरा में संरक्षित अंगों के टुकड़ों के डीएनए का मिलान प्रभुनाथ की मां सरस्वती देवी और पिता जगदीश मिश्रा के डीएनए से कराया गया. 27 मार्च को सीडीएफडी, हैदराबाद की रिपोर्ट जारी हुई, जो 12 अप्रैल को परिजनों को मिली. रिपोर्ट के अनुसार, बिसरा सैंपल का डीएनए माता-पिता से मेल नहीं खाया, जिससे बिसरा बदलने की आशंका उत्पन्न हुई.

प्रशासनिक लापरवाही और मुख्यमंत्री की नाराजगी

इस चौंकाने वाले खुलासे के बाद उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम और स्वास्थ्य मंत्री बृजेश पाठक ने मामले की मजिस्ट्रियल जांच के आदेश दिए. जांच में लापरवाही और साक्ष्य से छेड़छाड़ की पुष्टि होने पर अयोध्या के जिलाधिकारी चंद्र विजय सिंह को पद से हटा दिया गया. प्रभुनाथ मिश्रा की आत्महत्या के मामले में पहले ही राजर्षि दशरथ मंडलीय चिकित्सालय के प्राचार्य, दो डॉक्टरों और 12 अज्ञात लोगों के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने और जान से मारने की धमकी देने के आरोप में केस दर्ज किया जा चुका है.

न्याय की नींव पर सवाल

यह मामला न केवल एक संविदा कर्मी की मौत का है, बल्कि यह न्याय प्रणाली में विश्वास की नींव को हिलाने वाला है. जब साक्ष्य से छेड़छाड़ होती है और जिम्मेदार अधिकारी लापरवाही बरतते हैं तो आम जनता का सिस्टम पर से भरोसा उठ जाता है. अब देखना यह है कि इस मामले में दोषियों को कब और कैसे सजा मिलती है और क्या प्रभुनाथ मिश्रा के परिवार को न्याय मिल पाएगा?

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