नजर कहीं और निशाना कहीं, माथे पर तिलक और नज़रों में अपना पुराना जनाधार
जिस दौरान राहुल पंडितों की दहलीज माने जाने वाले इन जिलों में यात्रा कर रहे थे और मंदिर में मत्था टेकते आगे बढ़ रहे थे, शीला दीक्षित मिर्जापुर में मां विंध्यवासिनी मंदिर में आशीर्वाद लेने पहुंची हुई थीं. ऐसा अचानक ही नहीं हुआ है कि कांग्रेस के नेतृत्व का ईष्टप्रेम जागृत हो गया है. इन छवियों में एक संदेश है और वो संदेश स्पष्ट रूप से ब्राह्मणों के लिए है.
जाति का तिलक
राहुल और कांग्रेस के इस ब्राह्मण प्रेम को समझने के लिए सूबे की वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों को भी समझना पड़ेगा. 2014 की लोकसभा में 73 सांसदों के साथ सूबे से इतिहास रचने वाली भारतीय जनता पार्टी की विधानसभा में स्थिति दयनीय है. उनके पास 403 विधानसभा सीटों वाले सूबे में केवल 10 प्रतिशत सीटें हैं. बीजेपी अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में इस वनवास को खत्म करना चाहती है.
इसके लिए बीजेपी का गणित जिस जातिगत आकलन पर आधारित है, उसमें दलित और मुस्लिम वोट न के बराबर हैं. यादवों के भी वोटों में भाजपा किसी बड़ी सेंधमारी की स्थिति में है, ऐसा कहना अतिश्योक्ति ही होगा.
बीजेपी का आधार अगड़ों का वोट है. ऐसा ही बिहार में था और ऐसा ही उत्तर प्रदेश में भी. बाकी की उम्मीद अन्य पिछड़ों और अति पिछड़ों से हासिल हो पाने वाले वोटों पर निर्भर करती है. ऐसे में अगर किसी पार्टी को लगता है कि उसे बीजेपी का रथ रोकना है तो उसे सबसे पहले उनके कोर वोटबैंक यानी अगड़ों के बीच उपस्थिति को कमजोर करना होगा.
कांग्रेस इसी आकलन के हिसाब से अपनी चुनावी रणनीति तैयार कर रही है. अगड़ों में ब्राह्मण एक लंबे समय से कांग्रेस का पारंपरिक वोटर रहा है. जैसे-जैसे कांग्रेस कमजोर पड़ी, यह आधार खिसकता रहा. लेकिन इस बार शीला दीक्षित का तुरुप खेलकर कांग्रेस ने ब्राह्मणों को वापस रिझाना शुरू कर दिया है.