अघोर पंथ की शुरुआत किसने की, कितने वर्षों में होती है एक अघोरी की साधना पूरी? जानें

Update: 2025-01-23 05:56 GMT

महाकुंभ की शुरूआत होते ही प्रयागराज में साधु-संतों का डेरा लग चुका है। इस महा-आयोजन में नागा साधु और आघोरी चर्चा का विषय बने हुए हैं। नागा साधु जहां योग क्रिया करते हैं तो अघोरी कपाली क्रिया करते हैं। हालांकि दोनों ही संप्रदाय शिव के उपासक हैं। अघोरी और नागा साधु दोनों अपने तन पर भस्म लगाते हैं, जिस कारण आमजन इनसे थोड़ा डरते हैं।

अघोरियों के बारे में कहा जाता है कि वह श्मशान में रहते हैं और तांत्रिक क्रिया करते हैं। जिस कारण उनकी साधनाएं रहस्यमयी बनी रहती हैं, उनका स्वरूप भी काफी डरावना रहता है। हालांकि अघोरी विद्या डरावनी नहीं होती, अघोर का अर्थ हैं जो घोर न हो, यानी डरावना न हो। अघोरी बनने की पहली शर्त होती है कि अपने मन से घृणा को निकाल देना। माना जाता है कि अघोर विद्या संत को सहज बनाती है।

किसने की अघोर पंथ की शुरुआत

अघोर पंथ साधना की रहस्यमयी शाखा है, इसका अपना विधान है, अपनी विधि है। अघोर साधक अघोरी कहलाते हैं। अघोरी खाने-पीने में किसी तरह का कोई परहेज नहीं करते। कहा जाता है कि अघोरी गौमांस छोड़ बाकी सभी जानवरों के मांस खाते हैं। अघोर पंथ के प्रणेता भोले शंकर को माना जाता है। भगवान शिव ने खुद अघोर पंथ की स्थापना की। उन्होंने भगवान दत्तात्रेय का रूप लेकर इस पंथ की शुरुआत की। माना जाता है कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अंश और स्थूल रूप में भगवान दत्तात्रेय ने अवतार लिया था।

कहते हैं कि अघोरी नरमुंडों की माला पहनते हैं और नर मुंडों को पात्र के रूप में इस्तेमाल भी करते हैं। अघोरी साधक चिता के भस्म का शरीर पर लेपन और उसकी आग पर भोजन भी पकाते हैं। माना जाता है कि काशी में अघोर साधना का प्रमुख स्थान है। यह नगर स्वंय भगवान शिव ने बसाई थी, इसलिए काशी का विशेष स्थान भी है।

कितने वर्षों में पूरी होती है साधना

माना जाता है कि अघोरी बनना काफी कठिन है। अघोरी बनने के लिए 3 प्रकार की दीक्षा से गुजरना पड़ता है। इसमें अघोरी साधु को कई साल तक लग जाते हैं, श्मशान साधना, शव साधना और शिव साधना। अघोर पंथ में 3 सालों तक गुरु की सेवा करनी होती है, लेकिन अगर गुरु शिष्य के कार्य से खुश नहीं है तो संत को आजीवन सेवा में लगाए रख सकता है।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।

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