पहले चरण में भाजपा का 'अपरहैंड', युवा मुस्लिम वोटर भाजपा को वोट करने के पक्ष में

Update: 2017-02-13 02:40 GMT


सिर्फ रोटी, कपड़ा और मकान तक सीमित नहीं वोटर
लेकिन, आल इंडिया सेकुलर फ्रंट के राज्य संयोजक डा. मो. आरिफ इस बढ़े मतदान को अलग दृष्टि से देखते हैं। वह बढ़े मतदान के लिए युवा मतदाताओं के उत्साह को मानते हैं। वह कहते हैं कि उनके जमाने की अपेक्षा नए वोटर में मतदान को लेकर ज्यादा उत्साह रहता है।

युवा मतदाता पुराने जमाने की तरह रोटी-कपड़ा-मकान तक सीमित न रहकर आगे सुनहरे भविष्य व नई दुनिया के सपने देखता है। वह चाहता है कि ऐसी सरकार बने जो उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करे। वोटिंग बढ़ने में इस भावना ने अच्छी भूमिका बनाई है।

लोकतंत्र के लिए यह बहुत अच्छा है। हालांकि वह यह जोर देकर जोड़ते हैं कि मतदान बढ़ने का मतलब किसी के पक्ष में लहर होना नहीं है। वोटर ने खामोश होकर वोट दिया है।

मो. आरिफ कहते हैं कि मुस्लिम मतदाता कांग्रेस को अपना ‘नेचुरल’ घर मानता रहा है। कांग्रेस के कमजोर होने के बाद से सपा इस गैप को भर रही थी। इस बार कांग्रेस के सपा के साथ आ जाने से वह एलायंस की ओर बढ़ा है।
ध्रुवीकरण नहीं 'टैक्टिक वोटिंग'
चुनाव विश्लेषक लगातार यह कहते आ रहे थे कि भाजपा पश्चिम में ध्रुवीकरण की कोशिश कर रही है। पर, पहले चरण के चुनाव के बाद की तस्वीर बताती है कि इस चुनाव में ध्रुवीकरण की जगह ‘टैक्टिल वोटिंग’ नजर आई।

जैन पीजी कालेज बड़ौत में राजनीतिशास्त्र के प्राध्यापक डा. स्नेहवीर पुंडीर कहते हैं कि वोट बढ़ा है लेकिन वोटिंग खामोश हुई है। पश्चिम में बड़ा मुस्लिम हिस्सा भाजपा को हराते नजर आने वाले प्रत्याशी के साथ गया है।

इससे भाजपा विरोधी किसी एक पार्टी को एकमुश्त फायदा मिलता नजर नहीं आ रहा है। कई जगह बसपा और गठबंधन, दोनों के मजबूत प्रत्याशी थे तो वहां मुस्लिम बंटे भी हैं। इसका दूसरी ओर असर ये हुआ है कि जहां बीएसपी प्रत्याशी कमजोर था वहां का दलित वोटर भाजपा की ओर चला गया है। भले ही 5-10 फीसदी ही गया है।

जाटों में बीजेपी को लेकर नाराजगी रही है जिससे आरएलडी 10-15 स्थानों पर बहुत अच्छी लड़ी है। लेकिन अलग-अलग सीटों के अलग-अलग समीकरण की बात करें तो बीजेपी अन्य दलों की अपेक्षा ‘अपरहैंड’ रहेगी।
जाटों का ख्याल न रखना भाजपा के लिए नुकसानदेह
एनएएस पीजी कालेज मेरठ के सेवानिवृत्त प्राध्यापक डा. अशोक शास्त्री भी कहते हैं कि जाट का ख्याल न रख पाना बीजेपी के लिए नुकसानदायक रहा है लेकिन युवा जाट बीजेपी के पक्ष में गया है।

6-7 सीट आरएलडी पा सकती है। वह बताते हैं कि शहरी सीटों पर भाजपा और ग्रामीण इलाकों में एसपी-बीएसपी को लाभ रहा है। कई जगह मुस्लिम बंटा है।

सरधना में बसपा व गठबंधन के बीच बंटा, लेकिन जहां बसपा का मुस्लिम प्रत्याशी कमजोर था, गठबंधन की ओर चला गया। मेरठ, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर के शहरी क्षेत्रों में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण भी हुआ है जिसका फायदा भाजपा को हुआ है।
न पहले बताया और न अब, चौकाएगा वोटर
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर डा. मो. सज्जाद बढ़े वोट प्रतिशत को मतदाताओं के उत्साह से नहीं जोड़ते। उनका कहना है कि पिछले चुनाव से इस चुनाव के बीच जितना मत प्रतिशत बढ़ा है, उतना हो मतदाता बढ़ गया होगा। यह सामान्य मतदान है। वह कहते हैं इस बार की अच्छी बात ये है कि मतदाता ने न तो चुनाव के पहले राज खोला और न ही चुनाव के बाद राज खोल रहा है।

यहां तक कि वह जिसे वोट दे रहा है, उससे भी नाराजगी जता रहा है। दूसरी बात ये है कि सर्वे एजेंसियों व चुनाव विश्लेषकों के प्रति भी उसका भरोसा घटा है। वह समर्थन किसी का कर रहा है, जवाब किसी के बारे में दे रहा है। विश्लेषकों के जाने के बाद वह उनका मजाक उड़ा रहा है।

डा. सज्जाद कहते हैं कि इस चुनाव में किसी तरह का ध्रुवीकरण नहीं है। त्रिकोणीय से लेकर चतुष्कोणीय व बहुकोणीय मुकाबले हुए हैं। कई सीटों पर विद्रोही व एआईएमआईएम उम्मीदवारों की उपस्थिति का असर नजर आएगा।

हालांकि ओवरआल मुकाबला त्रिकोणीय है जिसमें तीनों ही दल आसपास ही रहेंगे। 19-20 वाली स्थिति में कोई आगे-पीछे हो सकता है। वह यह भी दावा करते हैं कि मुस्लिमों के वोट भाजपा भी पाई है। भले ही वह प्रत्याशियों के व्यक्तिगत संबंध व अन्य वजहों से हों। वह कहते हैं कि इस बार भी सर्वे झूठे साबित होंगे।
पिछले तीन चुनावों में इस तरह बढ़ी वोटिंग
2017 के पहले चरण के विधानसभा चुनाव में वोटिंग : 64.22 फीसदी

2014 के लोकसभा चुनाव में वोटिंग : 62.78 फीसदी

2012 के विधानसभा चुनाव में वोटिंग : 61.04 फीसदी

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