उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने ब्राह्मण जाति का दाव क्या चला कि अब जाति की बीमारी पार्टी कैडर के भीतर ही घर करती जा रही है. कांग्रेस पार्टी ने शीला दीक्षित के नाम और चेहरे को लेकर 'ब्राह्मण मुख्यमंत्री' का कार्ड खेला तो अब संभावित उम्मीदवार भी अपने इलाकों में 'ब्राह्मण उम्मीदवार' का परचम लहराने लगे हैं.
जो कांग्रेस खुद को जाति और पंथ विहीन राजनैतिक दल होने का दावा पिछले एक सौ साल से करती आ रही है उस पार्टी का ये मिथ उत्तर प्रदेश चुनाव के पहले ही टूटने लगा है. कांग्रेस का 'ब्राह्मण उम्मीदवार ' का ऐसा पोस्टर शायद ही कभी किसी चुनाव में कहीं दिखा हो लेकिन उत्तर प्रदेश में ऐसे पोस्टरों की भरमार है. शीला दीक्षित को खुलेआम बड़े-बड़े पोस्टरों में न सिर्फ ब्राह्मण उम्मीदवार लिखा जा रहा है बल्कि कई स्थानीय नेता खुद को संभावित उम्मीदवार बताते हुए गर्व से अपने को ब्राह्मण उम्मीदवार लिख रहे हैं और बड़े-बड़े पोस्टर चौक-चौराहों पर लगा रहे हैं. हालांकि ये पोस्टर पार्टी की ओर अधिकृत पोस्टर नहीं है.
ब्राह्मण जाति की पार्टी बनी कांग्रेस
पूर्वांचल के बलिया शहर में कांग्रेस के ऐसे पोस्टरों की भरमार है, इन्हें देखने से एक बारगी ऐसा लगने लगा है कि कांग्रेस देश की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी न होकर ब्राह्मण जाति की पार्टी होकर रह गई है. इन पोस्टरों मे मुख्यमंत्री से लेकर उम्मीदवार तक अपने-अपने ब्राह्मण होने का भी खुलेआम प्रदर्शन कर रहे हैं. माथे पर तिलक, गले में रूद्राक्ष की माला सरीखे ऐसे प्रतीक चिन्ह भी देखने को मिल रहे हैं जो बता रहे हैं कि कांग्रेस इस चुनाव में बाह्मण कार्ड का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रही है.
कांग्रेस से नहीं थी ऐसी उम्मीद
शीला दीक्षित को आगे करते वक्त कांग्रेस हाईकमान के दिमाग में यही बात थी कि पार्टी को अगर यूपी में खड़ा करना है तो ब्राह्मण कार्ड के आधार पर वोट जुटाने होंगे. यही वजह है कि पार्टी का कैडर अब खुलेआम इसे प्रदर्शित करने लगा है. पार्टी को इससे कितना फायदा होगा ये कहना तो फिलहाल मुश्किल है लेकिन इससे नुकसान की आशंका जरूर बनी हुई है क्योंकि जाति कार्ड के ऐसे इस्तेमाल की उम्मीद कांग्रेस जैसी पार्टी से किसी को नहीं थी. बहरहाल पीके यानि प्रशांत किशोर के इस फार्मूले पर चलकर कांग्रेस इतनी आगे निकल चुकी है कि यहां से वापस लौटना भी संभव नहीं है.