2017 चुनाव : भाजपा बना रही अपना 'मास्टर प्लान'

Update: 2016-09-23 02:17 GMT

2017 के विधानसभा चुनाव के लिए भले ही बसपा के लगभग सभी उम्मीदवार तय हो गए हैं, सपा ने हारी हुई अधिकांश सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा कर दी हो, लेकिन भाजपा बहुत जल्दबाजी में नहीं दिख रही।

भगवा खेमा विरोधी दलों के उम्मीदवारों की ताकत व कमजोरी देखकर ही अपना दांव चलेगा। सिर्फ सिटिंग व अन्य चुनिंदा सीटों पर ही भाजपा उम्मीदवारों की एक सूची जल्द जारी हो सकती है। अन्य सीटों पर प्रत्याशियों के नामों का एलान दूसरे दलों की रणनीति को देखकर किया जाएगा।

विधानसभा चुनाव को लेकर सभी दलों ने अपनी तैयारियां तेज कर दी हैं। भाजपा भी आक्रामक रणनीति के साथ सियासी जंग के लिए तैयार हो रही है। आधा दर्जन कार्यक्रम घोषित किए जा चुके हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह सूबे में लगातार दौरे कर रहे हैं।

ओमप्रकाश राजभर की भारतीय समाज पार्टी का भाजपा में विलय करा चुके हैं। अनुप्रिया पटेल के अपना दल की रैली में शिरकत कर चुके हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य समेत कई प्रमुख नेता बसपा से भाजपा में आ चुके हैं। मौर्य की परिवर्तन रैली और बसपा के पूर्व सांसद जुगल किशोर के दलित सम्मेलन में शाह हिस्सा ले चुके हैं। इन सबके बावजूद उम्मीदवारों के चयन में भाजपा पीछे है।

कमजोरी को अपनी ताकत बनाना चाहती है भाजपा

चुनाव अभियान में पिछड़ने की इसी कमजोरी को भाजपा अपनी ताकत बनाना चाहती है। भाजपा के एक नेता के मुताबिक बसपा और सपा आखिरी वक्त तक अपने उम्मीदवार बदलते रहते हैं।

भाजपा एक बार प्रत्याशी घोषित कर देगी तो अपवादस्वरूप ही कोई बदलाव होगा। इसलिए प्रत्याशी चयन बहुत सोच विचार करके किया जाएगा। इसके लिए कई स्तरों पर मंथन होगा। प्रत्याशी चयन का सबसे बड़ा पैमाना उसका जिताऊ होना रहेगा।

बिहार वाली गलती यूपी में दोहराने से बच रही भाजपा

केशव प्रसाद मौर्य व अमित शाहPC: amar ujala

प्रत्याशी चयन के लिए भाजपा आंतरिक और बाहरी सर्वे करा रही है। अभी उसकी नजर सपा, बसपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों पर टिकी है। सपा, बसपा पर इसलिए कि इन्हीं दो दलों से चुनावी मुकाबले की संभावना मानी जा रही है।

कांग्रेस के प्रत्याशी पर नजर इसलिए रखी जा रही है कि कहीं वह जातीय गणित को प्रभावित न करे। भाजपा के एक जिम्मेदार नेता के मुताबिक हम अपनी जीत की संभावना को बढ़ाने के लिए विरोधी प्रत्याशियों की कमजोरी और ताकत को देखकर फैसला लेंगे।

अपने लाभ-हानि पर विचार करते हुए एक-एक सीट को लेकर चर्चा होगी। सामाजिक, राजनीतिक और क्षेत्रीय समीकरणों में संतुलन बनाने पर जोर रहेगा। इस रणनीति से भाजपा को कई सीटों पर लाभ मिलेगा।

बिहार में भाजपा को सामाजिक समीकरण के लिहाज से प्रत्याशियों का सही चयन न होने पर नुकसान हुआ था। इसे यूपी में दोहराने से बचा जाएगा?

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