सर्वार्थ सिद्ध, सौभाग्य और त्रिपुष्कर योग में मनेगा परशुराम जन्मोत्सव, काशी के मंदिरों में होगा पूजन

Update: 2025-04-28 13:38 GMT

भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम का जन्मोत्सव अक्षय तृतीया को मनाया जाता है। भगवान परशुराम के जन्मोत्सव पर इस बार सर्वार्थ सिद्ध, सौभाग्य योग और त्रिपुष्कर योग का निर्माण हो रहा है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, प्रदोष काल में भगवान परशुराम का अवतार हुआ था। इसलिए वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन प्रदोष काल में भगवान परशुराम की विशेष पूजा-अर्चना करने का विधान है।

काशी के पंचांगों के अनुसार द्वितीया तिथि 29 अप्रैल को रात 8:09 बजे तक है और उसके बाद तृतीया तिथि लग रही है। 30 अप्रैल को शाम 5:57 बजे तक ही तृतीया का मान रहेगा। 29 अप्रैल को समशृंग चंद्र दर्शन सामान्य है


सूर्यास्त के बाद छह घटी प्रदोष काल में तृतीया तिथि का भी मान हो जा रहा है। इसके कारण भगवान परशुराम का जन्मोत्सव 29 अप्रैल को ही मनाया जाएगा। इसके साथ ही सर्वार्थ सिद्ध योग, सौभाग्य योग और त्रिपुष्कर योग में सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में जन्मोत्सव का मुहूर्त मिल रहा है। इस तिथि पर श्री काशी विश्वनाथ धाम समेत शहर के सभी मंदिरों में जन्मोत्सव के अनुष्ठान संपन्न होंगे।

हवन-पूजन के साथ ही होगा शस्त्र पूजन

हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और भगवान परशुराम की पूजा करते हैं। भगवान परशुराम की प्रतिमा का अभिषेक गंगाजल, दूध, पंचामृत से किया जाता है। भगवान परशुराम को शस्त्रों का ज्ञाता माना जाता है, इसलिए इस दिन शस्त्रों की पूजा की जाती है। कई स्थानों पर यज्ञ, हवन और भगवान परशुराम की कथा का आयोजन किया जाएगा। इस दिन दान करने का विशेष महत्व होता है, विशेषकर ब्राह्मणों को भोजन कराना शुभ माना जाता है।

भगवान विष्णु से मिला भूलोक पर रहने का वरदान

महाभारत और विष्णुपुराण के अनुसार परशुराम का मूल नाम राम था किंतु जब भगवान शिव ने उन्हें अपना परशु नामक अस्त्र प्रदान किया तभी से उनका नाम परशुराम हो गया। पितामह भृगु द्वारा संपन्न नामकरण संस्कार के अनंतर राम कहलाए। वे जमदग्नि के पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किए रहने के कारण परशुराम कहलाए। चक्रतीर्थ में कठिन तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें त्रेता में रामावतार होने पर तेजोहरण के उपरांत कल्पांत पर्यंत तपस्यारत भूलोक पर रहने का वर दिया। 

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