पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट की रिटायर्ड जज जस्टिस निर्मल यादव को अगस्त 2008 के बहुचर्चित "कैश एट डोर" मामले में चंडीगढ़ की विशेष सीबीआई कोर्ट ने 29 मार्च 2025 को बरी कर दिया। यह फैसला विशेष सीबीआई जज अलका मलिक ने सुनाया। उन पर आरोप था कि 13 अगस्त 2008 को, जब वह पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में जज थीं, उनके लिए 15 लाख रुपये की रिश्वत भेजी गई थी। यह राशि गलती से दूसरी जज, जस्टिस निर्मलजीत कौर के घर पहुंच गई थी, जिन्होंने तुरंत पुलिस को सूचित कर दिया था।
मामला तब शुरू हुआ जब हरियाणा के तत्कालीन अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव बंसल के मुंशी ने कथित तौर पर यह रकम गलत पते पर पहुंचा दी। सीबीआई ने 2011 में जस्टिस निर्मल यादव सहित कई लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी, जिसमें उन पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आरोप लगाए गए थे। जांच में दावा किया गया कि यह राशि एक संपत्ति विवाद में अनुकूल फैसले के लिए दी जा रही थी। हालांकि, 17 साल की लंबी कानूनी प्रक्रिया और 300 से अधिक सुनवाइयों के बाद, कोर्ट ने सबूतों के अभाव में जस्टिस यादव और चार अन्य आरोपियों—रविंदर सिंह भसीन, राजीव गुप्ता, निर्मल सिंह, और संजीव बंसल (जिनकी 2016 में मृत्यु हो चुकी है)—को बरी कर दिया।
इस घटना के बाद 2010 में जस्टिस यादव का तबादला उत्तराखंड हाई कोर्ट में कर दिया गया था, जहां से वह 2011 में रिटायर हुई थीं। कोर्ट के इस फैसले ने एक हाई-प्रोफाइल मामले का पटाक्षेप कर दिया, जो भारतीय न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर लंबे समय तक चर्चा में रहा।