धारी देवी मंदिर में दिन में 3 बार बदलता है देवी का रूप, नवरात्रि में लगती है यहां भक्तों की भीड़

Update: 2025-03-29 06:30 GMT

देवभूमि उत्तराखंड में यूं तो कई मंदिर हैं लेकिन धारी देवी मंदिर का स्थान सबसे अलग है। इस मंदिर में स्थित देवी को उत्तराखंड की रक्षक देवी कहा जाता है। प्रतिदिन धारी देवी मंदिर में भक्त आते हैं लेकिन नवरात्रि के दौरान यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। यहां देवी माता के सिर की पूजा की जाती है। पौड़ी गढ़वाल जिले के श्रीनगर में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित इस प्रसिद्ध शक्ति पीठ से जुड़ी क्या मान्यताएं हैं और इसके महत्व के बारे में आज हम आपको जानकारी देंगे।

धारी देवी मंदिर

अलकनंदा नदी के तट पर स्थिति धारी देवी मंदिर चारधाम यात्रा मार्ग के बीच में पड़ता है। माना जाता है कि द्वापर युग से यह मंदिर धारो गांव के पास स्थित है। इस मंदिर को चारधामों का रक्षक भी माना जाता है। यहां माता रानी के धड़ की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार भयंकर बाढ़ आने के चलते मूर्ति देवी की मूर्ति भी उस में बह गई और धारो गांव के पास एक चट्टान पर जाकर रुक गई। इसके बाद एक ईश्वरीय वाणी हुई, जिसने देवी की मूर्ति को धारो गांव के पास स्थापित करने को कहा। धारो गांव के लोगों ने ही इसके बाद माता की प्रतिमा को यहां स्थापित किया और तब से उनकी पूजा यहां शुरू हो गई।

धारी देवी में रोज होता है यह चमत्कार

धारी देवी मेंदिर में देवी की प्रतिमा दिन में 3 बार रूप बदलती है। सुबह कन्या, दोपहर में युवती और शाम के समय माता वृद्ध महिला के रूप में नजर आती हैं। यह चमत्कार धारी देवी मंदिर में प्रतिदिन होता है। धारी देवी मंदिर में होने वाले इस चमत्कार को देखने के लिए विशेष रूप से भक्त यहां सुबह से शाम तक रुकते हैं।

मूर्ति को हटाने से आयी थी बाढ़

उत्तराखंड के स्थानीय लोगों का मानना है कि 2013 में जो भीषण बाढ़ आयी थी उसका कारण धारी देवी मां की मूर्ति को विस्थापित किया जाना था। आपको बता दें कि 2013 में 16 जून को धारी देवी की मूर्ति को पूर्व स्थान से हटाया गया था और उसी शाम को उत्तराखंड में भीषण बाढ़ आ गई थी। इस बाढ़ में हजारों लोगों की जान गई थी। उत्तराखंड के लोग मानते हैं कि माता के क्रोध के कारण ही वह भयानक बाढ़ आयी थी।

धारी देवी और कालीमठ का संबंध

धारी देवी मंदिर में देवी काली के सिर की पूजा की जाती है वहीं कालीमठ में माता के धड़ की पूजा की जाती है। यह दोनों ही मंदिर देवी काली को समर्पित हैं लेकिन कालीमठ में तंत्र विद्या का एक प्रमुख केंद्र माना जाता है। वहीं देवी धारी को चारधामों की संरक्षक देवी माना जाता है।

धारी देवी मंदिर दर्शन का समय

भक्तों के लिए धारी देवी का मंदिर सुबह 6 बजे से खुल जाता है। वहीं लगभग शाम के 7 बजे तक मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं।

कैसे पहुंचें?

देहरादून में स्थित हवाई अड्डे से धारी देवी मंदिर की दूरी 145 किलोमीटर है। वहीं ऋषिकेश रेलवे स्टेशन से यहां पहुंचने में लगभग 115 किलोमीटर की यात्रा आपको तय करनी पड़ती है। बस और टैक्सी सेवा यहां पहुंचने के लिए हमेशा उपलब्ध रहती है। आप देहरादून, ऋषिकेष, हरिद्वार, पौड़ी, कोटद्वार से यहां आसानी से पहुंच सकते हैं।

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