सरस्वती पूजा अपने प्राचीन ज्ञात पूर्वजों की महान परम्परा और इतिहास से जुड़ने का अवसर है

Update: 2021-02-17 10:28 GMT

कल वसन्त पंचमी थी। पुराण कहते हैं कि इसी दिन माता सरस्वती की उत्पत्ति हुई थी, सो बसन्त पंचमी का दिन सरस्वती पूजा का दिन भी होता है। इतिहास निहारें तो हम देखते हैं कि हर्षवर्धन के काल तक दो महीने तक वसन्तोत्सव मनाए जाने के प्रमाण मिलते हैं जिसमें नवयुवक-युवतियां अपने पसन्द से साथी का चयन करनी थीं और फिर दोनों परिवारों की सहमति से उनका विवाह हो जाता था। उसके बाद तुर्क-अफगान आक्रमण के काल मे स्त्रियों की असुरक्षा के कारण तब के मनीषियों ने इस दो महीने के उत्सव को एक दिन के पर्व में बदल दिया। सनातन धर्म ने समय और परिस्थितियों को ध्यान में रख कर स्वयं में अनेकों बार बदलाव किया है, यही उसकी अमरता का मूल कारण है।

पौराणिक कथाओं में स्वयं का इतिहास तलाशें तो हम देखते हैं कि सिन्धु-सरस्वती तट पर बसे वैदिक काल के पूर्वज सरस्वती नदी को ही माता सरस्वती का लौकिक रूप मान कर पूजते थे। फिर हिमालय क्षेत्र में आये किसी अज्ञात भौगोलिक बदलाव के कारण जब सरस्वती नदी का स्रोत दूसरी दिशा में मुड़ गया और प्राचीन धारा सूख गई तो नवीन जलस्रोत की तलाश में अपने मूल क्षेत्र से पलायित वैदिक सभ्यता पहली बार गङ्गा-यमुना क्षेत्र में आई।

सरस्वती नदी के सूखने से फैले दुर्भिक्ष और उसके कारण हुई बड़ी जनहानि के कारण सरस्वती पति भगवान ब्रह्मा पर से लोक की आस्था कमजोर हुई और समाज में उनकी पूजा लगभग बन्द हो गयी। यह हजारों हजार वर्ष लम्बी परम्परा का सबसे प्राचीन इतिहास है।

महाभारत काल में सरस्वती नदी के केवल पांच कुंड बचे थे जिनमें युद्ध के बाद पांडवों ने स्नान कर युद्ध का प्रायश्चित किया था। उन पाँच कुंडों में एक कुंड पुष्कर में था, और इसलिए यह समझना कठिन नहीं है कि आज भारत में भगवान ब्रह्मा का एकमात्र मन्दिर पुष्कर में ही क्यों बचा है।

सरस्वती पूजा मात्र ईश्वर की आराधना का एक सामान्य पर्व भर नहीं है, बल्कि अपने सबसे प्राचीन ज्ञात पूर्वजों की महान परम्परा और इतिहास से जुड़ने का अवसर भी है। यह उस युग से जुड़ने का पर्व है जब सप्तसिंधु प्रदेश से दक्षिण सागर तक उपनिषदों का मंत्र गूंजा करते थे।

शास्त्रों के लिए माता सरस्वती विद्या की देवी हैं, पर लोक के लिए वे मां हैं। वह मां जिससे उसके बच्चों को भय नहीं लगता, बल्कि वे उनके सामने कभी कभी नटखटपन भी इस भरोसे के साथ कर देते हैं कि मां क्षमा कर देगी। और तभी देश के अधिकांश हिस्से में सरस्वती पूजा के साथ ही होली की औपचारिक शुरुआत हो जाती है।

जिस मिट्टी के कण कण को शंकर होने का सौभाग्य प्राप्त है, उस मिट्टी के लोगों पर विद्या की देवी सदा सहाय रहें। जय हो

सर्वेश तिवारी श्रीमुख

गोपालगंज, बिहार।

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