कोरोना संक्रमण ने किसानों के प्रति सदा समर्पित रहने वाले चौधरी अजीत सिंह को हमसे छीन लिया। तीनों कृषि विधेयकों के खिलाफ जो किसान आंदोलन अनवरत चल रहा है। उसके पीछे चौधरी अजीत सिंह की ही प्रेरणा है। इसी राजनीतिक हलक़ों में यह कहा जा रहा है कि चौधरी अजीत सिंह के रूप में हमने केवल एक नेता नहीं खोया है। बल्कि उनके जाने से एक युग का ही पटाक्षेप हो गया। उनकी लोकप्रियता और प्रासंगिकता के पीछे उनका सदा सहज और सरल रहने वाला गुण था। वे चाहे कितने बड़े पद पर रहे हों, अपने क्षेत्र ही नहीं, जो भी उनसे मिलने जाता था, उससे बड़ी ही सहजता और प्रेमपूर्वक मिलते थे। उसकी समस्या सुनते थे और उनकी सदा यही कोशिश रहती थी कि वे उसका त्वरित समाधान कर दें। उनके इस गुण से कम से कम पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता भलीभांति परिचित थी। इसी कारण आज उनके जाने से सम्पूर्ण पश्चिमी उत्तर प्रदेश का किसान दुखी है। इस संबंध में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों से मेरी जो बात हुई है, उस आधार पर मैं यह कह सकता हूँ कि यहाँ के अधिकांश किसानों के घरों में आज चूल्हे नहीं जलेंगे। घर के बच्चों भले ही भोजन कर लें, लेकिन घर के बड़े – बुजुर्ग लोग तो आज फाका ही करेंगे। जैसे उनके घर का ही कोई सदस्य ही गोलोक वासी हो गया। इस क्षेत्र के लोग उन्हें इतना प्यार करते थे। खूब शिक्षित होने के बाद भी चौधरी अजीत सिंह किसानों से एक किसान के रूप में ही मिलते थे और जब जब घर पर होते थे चौधरी चरण सिंह की तरह खेती का कार्य खुद ही देखा करते थे। साथ ही किसानों से जब भी मिलते, खेती और किसानी की ही बात करते। उनके चले जाने के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक सवाल उठ रहा है कि कि चौधरी चरण सिंह की जिस विरासत को उनके पुत्र चौधरी अजीत सिंह ने बखूबी संभाल रखा था। उनके जाने के बाद अब उसे कौन संभालेंगा ?
मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीनों कृषि विधेयकों के विरोध में जब वे किसान आंदोलन के साथ खड़े हुए तो उसे बल मिला । विगत लोकसभा चुनाव में यहाँ की किसान यूनियन ने ही चौधरी अजीत सिंह को हराने में अहम भूमिका निभाई थी। अपने व्यवहार और कर्मठता से चौधरी अजीत सिंह ने वहाँ के नेताओं और जनता को इतना अभिभूत कर दिया कि जनवरी महीने में मुजफ्फरनगर में आयोजित महापंचायत में भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष चौधरी नरेश टिकैत ने इसे स्वीकार किया कि चौधरी अजित सिंह को लोकसभा चुनाव में हराना हमारी भूल थी। हम झूठ नहीं बोलते । हम दोषी हैं। नरेश टिकैत ने कहा था कि इस परिवार ने हमेशा किसानों के सम्मान की लड़ाई लड़ी है, आगे से ऐसी गलती ना करियो। इसी महापंचायत मे यह भी तय हो गया था कि अगले लोकसभा चुनाव में चौधरी अजीत सिंह को बिना प्रचार के जीतना है। इसी कारण उनके दिवंगत होने के बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने यह घोषणा की कि चौधरी अजित सिंह उम्र के इस पड़ाव में भी किसान आन्दोलन में बहुत सक्रिय थे। उन्होंने बागपत से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अनके इलाकों में जनसभाएं कर किसान आन्दोलन को बहुत मजबूत किया। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वर्तमान किसान आन्दोलन को मजबूती देने में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई। किसान आन्दोलन के इतने बड़े नेता को हमने खो दिया। इसका हमें बहुत दुख है। कोरोना महामारी के शिथिल होते ही हम उनके सम्मान में एक बड़ी श्रद्धांजलि सभा करेंगे।
चौधरी अजीत सिंह ने एक लंबी राजनीतिक पारी खेली थी । इसी कारण उन्हें कई बड़े नेताओं के साथ रहने और उनके साथ काम करने का भी अवसर मिला। इसी तरह के उनके राजनीतिक मित्र ने उनके बारे में मीडिया से मुखातिब होते कहा कि चौधरी अजित सिंह के जाने के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उनके कद का कोई नेता नहीं बचा। वे किसानों की राजनीति नहीं करते थे, बल्कि वे किसानों की जिन्दगी और उनकी परेशानियों को जीते थे। यही कारण था कि जब वे किसानों के पक्ष में कुछ बोलते थे तो यह नहीं लगता था कि कोई राजनेता किसानों के मुद्दे पर राजनीति कर रहा है। बल्कि ऐसा लगता था कि जैसे कोई किसान खुद खड़ा होकर अपनी बात कह रहा है। इसी का परिणाम होता था कि उनकी बातें सीधे लोगों के दिल में उतर जाती थीं। आज ऐसे किसी भी अन्य नेता का सर्वथा अभाव है। उसी नेता ने मीडिया को यह भी बताया कि यह बात बहुत कम लोग ही जानते हैं कि चौधरी अजित सिंह और बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कभी एक साथ जनता दल में काम किया करते थे। दोनों नेता साथ मिलकर एक नई पार्टी के गठन पर भी गंभीरता के साथ विचार कर रहे थे। उनकी इसी सोच के कारण छपरौली में एक बड़ी जनसभा हुई थी। हालांकि, यह विचार तो कई कारणों से सफल नहीं हो पाया, लेकिन दोनों नेताओं के बीच हमेशा बहुत मधुर संबंध बने रहे। चौधरी चरण सिंह के अनुयायी और राष्ट्रीय लोकदल के महासचिव के मुताबिक अजित सिंह के जाने से राजनीति से भले और शरीफ नेताओं की पूरी पीढ़ी का चले जाना है। अजित सिंह के दिल में हमेशा किसानों के लिए खास जगह रही है और वह मौजूदा किसान आंदोलन के समर्थन में भी खुलकर खड़े थे। एक और नेता ने उनके बारे में संस्मरण सुनाते हुए कहा कि चौधरी अजित सिंह कई राजनीतिक दलों के साथ रहे, लेकिन वे जहां भी रहे, उन्होंने सेकुलर सोच को हमेशा आगे बढ़ाने का काम किया। यहां तक कि अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के साथ काम करते हुए भी उन्होंने कभी ऐसी कोई बात नहीं की, जिससे समाज के धार्मिक ताने-बाने को कोई चोट पहुंचे। कांग्रेस नेता ने कहा कि चौधरी अजित सिंह जा असमय चले जाना देश की सेकुलर राजनीति को एक बड़ी चोट है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरी देश में चौधरी परिवार बेहद सभ्य और शराफत की जिंदगी जीने वालों के तौर पर देखा जाता है। चौधरी अजित सिंह इस परंपरा को एक नई ऊंचाई तक लेकर गये थे। पार्टी का सबसे छोटा कार्यकर्ता भी उनसे खुद को बेहद करीब पाता था। उन्हें पूरी उम्मीद है कि जयंत चौधरी अपने परिवार की इस विरासत को आगे बढ़ाएंगे।
इसमें कोई शक नहीं है कि चौधरी अजित सिंह और नरेश टिकैत एक-दूसरे के काफी करीब थे।राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजीत सिंह ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में अमरोहा से राकेश टिकैत को लोकसभा प्रत्याशी बनाकर एक तीर से दो निशाने साधे थे। राकेश टिकैत भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता है और किसान नेता चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के बेटे हैं। ऐसे में राष्ट्रीय लोकदल जहां राकेश को अमरोहा से चुनाव लड़ाकर किसानों के सबसे बड़े संगठन भकियू में अपनी पकड़ मजबूत करना चाह थी, वहीं, मुजफ्फरनगर दंगों के बाद अजित सिंह से नाराज चल रहे जाट समुदाय को खुश करने की कोशिश भी थी। वहीं, मुजफ्फरनगर में पार्टी के दफ्तर में राकेश टिकैत के स्वागत के दौरान बड़ी संख्या में भकियू के पदाधिकारी और कार्यकर्ता भी शामिल हुए थे। इससे यह बात साबित हो जाती है कि चौधरी अजीत सिंह ने राकेश टिकैत के सहारे किसानों और जाटों में खोया हुआ अपना विश्वास दोबारा हासिल करना चाह रहे थे।
गाजीपुर बॉर्डर पर धरना दे रहे भारतीय किसान यूनियन ने 26 जनवरी को किसान ट्रैक्टर परेड के बाद हिंसा के बाद आंदोलन वापस ले लिया था। भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत की घोषणा के बाद पुलिस ने किसानों के तंबू हटाने शुरू कर दिए थे। यहां कि बिजली-पानी पहले ही काटी जा चुकी है। इस बीच भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत धरने से ना हटने की बात कह रहे थे। अगर प्रशासन उन्हें जबरन हटाने का प्रयास करेगा तो वह फांसी लगाकर आत्महत्या कर लेंगे। इस बीच, टिकैत बंधुओं को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रमुख दल राष्ट्रीय लोकदल के नेता चौधरी अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी का साथ मिला। वहीं चौधरी अजीत सिंह ने संदेश दिया था कि चिंता मत करो। किसान के लिए जीवन मरण का प्रश्न है। सबको एक होना है, साथ रहना है। चौधरी अजित सिंह का समर्थन मिलते ही भाकियू नेता राकेश टिकैत के सुर बदल गए। इस प्रकार अपनी समाप्ति की ओर बढ़ने वाला किसान आंदोलन एक बार फिर और प्रखरता के साथ चल पड़ा।
चौधरी अजीत सिंह की विरासत कौन संभालेंगा ? इस सवाल का उत्तर देते हुए समाजवादी पार्टी के प्रमुख राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा कि चौधरी अजित सिंह किसानों के मसीहा थे। उनके जाने के बाद यह जगह रिक्त हो गई है। लेकिन उन्होंने किसानों के हक के लिए जो आन्दोलन शुरू किया था, उसे अखिलेश यादव और अजित सिंह के पुत्र जयंत चौधरी साथ मिलकर पूरा करेंगे। समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ेंगे और जीतेंगे। पिछले दो तीन वर्षों से जिस तरह अखिलेश यादव और जयंत चौधरी मिल कर बड़ी सूझ-बूझ के साथ राजनीति कर रहे हैं, उससे उनकी इस बात में दम दिखता है। लेकिन मुख्य भूमिका तो जयंत चौधरी को ही निभानी होगी। लेकिन एक बात तो तय है कि जिस सम्बन्धों को चौधरी चरण सिंह ने बनाया और बड़े ही गर्मजोशी के साथ निभाया था। उन्हें उसी गर्मजोशी के साथ चौधरी अजीत सिंह भी नहीं निभा पाये। जबकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता ने उन्हें चौधरी चरण सिंह का वारिस मान लिया था। ठीक वही हाल जयंत चौधरी का भी रहेगा। वे चौधरी अजीत सिंह की विरासत को आगे तो बढ़ाएँगे, लेकिन उसकी गर्मजोशी कितना कायम रख पाएंगे, यह चिंतनीय विषय है।
प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी/समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट