कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज में प्राकृतिक चिकित्सा कितनी कारगर

Update: 2021-05-11 05:00 GMT

इस समय भारत में कोरोना महामारी चरम पर है। हर दिन 4 लाख से अधिक कोरोना केस सामने आ रहे हैं और करीब 4 हजार से अधिक मौतें भी रोज हो रही हैं। यानि संक्रमित मरीजों की बाढ़ आ गई हो। तो सरकार चाहे जितने स्थायी और अस्थायी कोरोना हॉस्पिटल बना ले, सभी को भर्ती नहीं किया जा सकता है। इसके लिए सरकार को सभी चिकित्सा पद्धतियों को छूट दे देना चाहिए कि वे कोरोना महामारी के लिए अपने अपने क्षेत्र में शोध करें। जिससे हर एक संक्रमित नागरिक का इलाज किया जा सके। उन्हें भी अपनी मन पसंद चिकित्सा पद्धति से इलाज कराने की आजादी हो । प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति भारत की एक प्राचीन चिकित्सा पद्धति है और शिक्षित और बुद्धिमान लोगों में काफी प्रचलित है । कोरोना संक्रमण की प्रकृति और प्रभाव देखते हुए इस पद्धति में इसका इलाज संभव है। इसलिए इस ओर भी सरकार को ध्यान देना चाहिए । आज भी जो लोग होम आइस्लोलेशन मे रहते हैं और अपना इलाज करते हैं। उनमें भी बहुत कुछ प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति ही उपयोग में लाई जाती है।

प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा कब्ज से लेकर कैंसर तक लगभग सभी बीमारियों का इलाज किया जा सकता है। प्राकृतिक चिकित्सा को अपनाकर हर व्यक्ति न केवल खुद को, बल्कि परिवार व समाज को स्वस्थ रखने में बड़ी भूमिका निभा सकता है। प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति पूरी तरह वैज्ञानिक है और सभी तरफ से निराश लोगों के जीवन मे भी आशा का संचार करती है। जटिल रोगों का भी इलाज इस पद्धति में है। प्राकृतिक चिकित्सा से हर बीमारी का इलाज संभव है, इसलिए इस पद्धति का व्यापक स्तर पर प्रचार किया जाना चाहिए। कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों में एक अच्छी खबर आई है। भारत के सभी प्राकृतिक आरोग्य केन्द्रों का दावा है कि नेचुरोपैथी से भी कोरोना प्रभावित मरीज ठीक हो सकते हैं। स्टीम बाथ प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति का एक अहम्‌ अंग है। इसी का आधुनिक रूप है स्टीम इन्हेलर। इसकी मदद से कोरोना वायरस का असर कम किया जा सकता है। इसके साथ ही प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्रो का वातावरण भी पूरी तरह प्राकृतिक ही होता है। चारो तरफ पेड़-पौधे, फल-फूल आदि लगे होते हैं। पक्षियों के कलरव की वजह से मन प्रफुल्लित रहता है। अभी तक जितने भी प्राकृतिक चिकित्सालय मैंने देखे हैं। उन सभी का वातावरण पूरी तरह प्राकृतिक होता है। पर्याप्त जगह होने के कारण यहाँ पर रोगियों को दूर दूर कमरे में भर्ती किया जाता है। नीम आदि के पेड़ होने की वजह वातावरण पूरी तरह से सेनीटाइज्ड होता जाता है। नीम की पत्तियों और फलों की वजह से जमीन भी पूरी तरह सेनीटाइज्ड हो जाती है। अगर कहें की पूरा वातावरण सेनीटाइज्ड होता है, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।

लॉकडाउन के कारण देश ले सभी प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र बंद कर दिये गए। इसके बाद इन सभी ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार खुद में बदलाव किया। इसके 70 दिन बाद वे खोल दिये गए। अब इन प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्रों पर भी डिस्पोजल बेडशीट दी जा रही है। प्राकृतिक चिकित्सा सेवाएं देने वालों को गलव्स पहनना अनिवार्य कर दिया गया है। सभी को थर्मल स्क्रीनिंग की जा रही है। और साथ में मेडीकल हिस्ट्री दर्ज की रही है। कोरोना वायरस को कम करने के लिए स्टीम इन्हेलर बहुत उपयोगी है।

कोरोना संक्रमण गले और फेफड़ों पर प्रहार करता है। जिसकी वजह से श्वांस नली भी संक्रमित हो जाती है। इससे संक्रमित व्यक्ति के गले में दर्द के साथ उसे सांस लेने में तकलीफ होती है। इसी कारण स्टीम इन्हेंलर में तुलसी एवं नीम युक्त भाप लेने का प्रावधान है। इन्हें एंटी वायरल माना जाता है।

इसके अलावा कोरोना को नियंत्रित करने के लिए इसमें उपयोगी एक विशेष प्रकार का काढ़ा दिया जाता है। जिसमें काली मिर्च, सौंफ, अजवाइन, अदरक और गुड़ का उपयोग किया जाता है। जिससे संक्रमित व्यक्ति को बहुत लाभ होता है। काढ़ा पीने से मरीज के शरीर की इम्यूनिटी बढ़ जाती है। बदलते मौसम के साथ सर्दी-जुकाम और खांसी का प्रकोप बढ़ जाता है। इस दृष्टि से भी काढ़ा बहुत उपयोगी है। चूंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारत सरकार ने दो गज की दूरी मास्क है जरूरी का प्रावधान किया है। इसी कारण सभी प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्रों ने टचलेस फिजियोथैरेपी शुरू की है। ऐसे संक्रमित मरीज जो डायबिटिज, मोटापा, हाईपरटेंशन, माइग्रेन, साइटिका, बेक पेन, अस्थमा एवं ब्लडप्रेशर एवं लकवा आदि पीड़ित हैं। उनके लिए भी प्राकृतिक चिकित्सा बहुत उपयोगी साबित हुई है। आयुष मंत्रालय के गठन के बाद 2018 में पहली बार 18 नवंबर को प्राकृतिक चिकित्सा दिवस मनाया गया ।

प्राकृतिक चिकित्सा उपचार में मुख्य रूप से पानी, मिट्टी, हवा, तेल, दूध इत्यादि तत्वों का प्रयोग किया जाता है। इसके अंतर्गत मड बाथ, मिट्टी की पट्टी, वेट शीट पैक, हॉट आर्म एवं फूट बाथ, सन बाथ, कटि स्नान, स्टीम बाथ, एनिमा, स्पाईन स्प्रे बाथ, शिरोधारा के साथ-साथ उपवास, दूध कल्प, फलाहार, रसाहार, जलाहार इत्यादि द्वारा इलाज किया जाता है। इसके द्वारा हम जोड़ों का दर्द, गठिया, अर्थराईटिस, स्पॉन्डिलाईटिस, साईटिका, पाईल्स-फिशर-फिश्चुला, कब्ज, गैस, एसिडिटी, अल्सर, माईग्रेन, मोटापा, डायबिटीज, कमजोरी, दमा, ब्रोन्काईटिस, निमोनिया, सीओपीडी के साथ-साथ डिप्रेशन, अवसाद, एंग्जाईटी, अनिद्रा सहित ऐसी कई बीमारियों का इलाज किया जाता है। कोरोना बीमारी के समय भी इनके रोगियों की तकलीफ़ें और बढ़ जाती हैं।

ऐसा पाया गया है की ठीक होने के बाद भी कोविड संक्रमित को

कमजोरी व खांसी की शिकायत बनी रहती है। इसी कारण प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्रों में भर्ती कोरोना महामारी से संक्रमित मरीजों की भाप एवं प्राण चिकित्सा की जाती है। नौ रिचार्जिग श्वसन क्रियाएं के माध्यम से फेफड़ों को मजबूत किया जाता है। प्राण चिकित्सा के द्वारा मरीजों में हीमोग्लोबिन की मात्रा को बढ़ाया जाता है। कैंसर, शुगर, बीपी, थायरॉइड, नियमित माहवारी, मोटापाग्रस्त मरीजों को घर जाने के बाद कोरोना का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है। कोरोना संक्रमित व्यक्ति के लिए अभी तक पारंपरिक नुस्खे बहुत उपयोगी सिद्ध हुए हैं।

हल्दी वाला दूध और तुलसी का अर्क का खूब उपयोग हो रहा है। हल्दी वाला दूध लेने से जहां संक्रमित व्यक्ति की इम्यूनिटी बढ़ती है। वहीं तुलसी अर्क से गले की खराश में विशेष आराम होता है।

इसके साथ साथ प्रत्येक प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र पर व्यक्तिगत स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देशानुसार साबुन और पानी से हर संक्रमित और गैर संक्रमित व्यक्ति को 20 सेकेंड तक हाथ धोने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इसके लिए सभी संक्रमित, गैर संक्रमित मरीजों को आगाह किया जाता है कि वे बिना हाथ धोये अपनी

आंखें, नाक और मुंह छूने से बचें। जो लोग संक्रमित हैं उनके पास जाने से बचें। खांसी या छींक आने पर अपना चेहरा ढंक लें और खांसने या छींकने के बाद अपने हाथों को अच्छी तरह धो लें। जिस वस्तुओं को अक्सर छूआ गया हो, उसे सेनीटाइज्ड करें। यात्रा करते समय डबल मास्क का उपयोग करें। शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत करने के लिए दिन में दो बार 5 ग्राम अगस्त्य हरित दिन में दो बार गर्म पानी के साथ पीने के लिए दी जाती है। इसके अलावा कुछ प्राकृतिक चिकित्सक दिन में दो बार 500 मिलीग्राम शेष मणि बटी भी देते हैं। प्रत्येक नथुने में प्रतिदिन सुबह सारसो / तिल के तेल की दो बूंदें डाली जाती हैं।

इसके साथ-साथ हर प्राकृतिक चिकित्सालय द्वारा नियमित रूप से सुबह टहलना, योगा और प्राणायाम भी कराया जाता है। कोरोना का संक्रमण उन लोगों को जल्दी अपना शिकार बना सकता है, जिनकी इम्युन पावर बहुत कमजोर होती है। आमतौर पर होने वाले संक्रमण में भी अगर किसी व्यक्ति की इम्युनिटी कमजोर होती है, तो वह जल्दी बीमार हो जाता है। योग, प्राणायाम के जरिए इम्यून सिस्टम को मजबूत किया जा सकता है। साथ ही श्वसन नली में जो संक्रमण हो जाता है, उसमें भी आराम मिलता है। इसके लिए कपाल भांति, अनुलोम विलोम और भ्रस्तिका बहुत ही कारगर सिद्ध हुए हैं । कपालभाति एक प्रचलित प्राणायाम है। इसे करने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है। नियमित रूप से अनुलोम विलोम करने से सर्दी खांसी और जुकाम तक नहीं होती है। इससे श्वसन क्रिया बेहतर हो जाती है। साथ ही यह शरीर की इम्युनिटी भी मजबूत करता है। अगर आप भस्त्रिका प्राणायाम करते हैं, तो कोरोना महामारी से संक्रमित होने से एक हद तक बच सकते हैं। इससे शरीर की कोशिकाएं स्वस्थ बनी रहती हैं और श्वसन क्रिया से जुड़ी कोई भी बीमारी होती है।

इसके अलावा प्राकृतिक चिकित्सालय में भर्ती संक्रमित व्यक्ति की नित्य क्रिया से निवृत्त होने पर भी ध्यान दिया जाता है। अगर किसी संक्रमित व्यक्ति का पेट साफ नहीं होता है, तो उसे विभिन्न प्रकार के चूर्ण दिये जाते हैं, या पेट साफ करने की अन्य विधियों का उपयोग किया जा सकता है। इसके बाद सभी भर्ती संक्रमित व्यक्ति को मास्क लगा कर और दो गज की दूरी का पालन करते हुए उन्हें टहलने, व्यायाम करने, योग और प्राणायाम करने कराया जाता है। इसके बाद उन्हें औषधीय काढ़ा पीने को दिया जाता है। नाश्ते में ऐसे भोज्य पदार्थ दिये जाते हैं। जो सुपाच्य हों, और शरीर की ताकत के साथ इम्यूनिटी पावर को भी बढ़ाने का कार्य करते हैं। बुखार आने पर बर्फ के पानी की पट्टी और कुछ प्राकृतिक औषधियाँ भी दी जाती हैं। औषधीय तेलों से मालिश भी कराई जाती है। इसके बाद शरीर को पूर्ण आराम मिले, इसके लिए उन्हें प्राकृतिक वातावरण में सोने दिया जाता है। अपराहन में फिर उनकी जांच की जाती है और इसके बाद फिर औषधीय काढ़ा दिया जाता है। इसके पहले या एक घंटा बाद कुछ फल खाने को दिया जाता है। शाम को फिर टहलने को कहा जाता है। इसके बाद सोने के पूर्व उनकी फिर जांच की जाती है। आमतौर पर प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्रों पर आक्सीजन के सिलिन्डर की जरूरत नहीं पड़ती है। लेकिन इसके बाद भी आक्सीमीटर और आक्सीजन सिलिन्डर की भी व्यवस्था होती है। अगर किसी पेशेंट को जरूरत महसूस होती है, तो उसे आक्सीजन भी दी जाती है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि अगर प्राकृतिक चिकित्सालयों में थोड़ा बहुत परिवर्तन कर दिया जाए। कोरोना वायरस और उसके संक्रमण प्रकृति का ठीक से अध्ययन कर लिया जाए, तो कोरोना महामारी में भी प्राकृतिक चिकित्सा बहुत फायदेमंद साबित हो सकती है। लेकिन यहाँ भी मास्क और दो गज की दूरी को अनिवार्य करना पड़ेगा।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी/समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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