कोरोना महामारी में इस देश के आम नागरिकों को लोकतन्त्र में न्यायपालिका क्या महत्त्व होता है, यह भी समझ में आया है। जनहित याचिकाओं या स्वत: संज्ञान लेकर प्रदेश और देश के मा उच्च और मा उच्चतम न्यायालयों ने सरकार को वस्तुस्थिति का संज्ञान कराते हुए उन्हें कारगर कदम उठाने के लिए विवश किया, नहीं तो केंद्र सरकार हो या प्रदेश सरकारें, जिस तरह से ढीली –ढाली कार्रवाई कर रही थी, उससे देश और तबाही की ओर जा सकता था। और अधिक जनहानि हो सकती थी। न्याय पालिका के हस्तक्षेप, सरकारों के प्रयास और जनता की जागरूकता की वजह से कोरोना संक्रमण की दर तो कम हुई है। राहत मिलने लगी है। लेकिन दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर भारत के कुछ राज्य अब भी बहुत बुरी तरह संक्रमित हैं। शेष राज्यों में कोरोना संक्रमण की दर में गिरावट आ रही है। पिछले पाँच दिनों से संक्रमण दर में लगातार कमी आ रही है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के आधार पर गत 24 घंटे के दौरान 2,81,837 नए मामले सामने आए हैं और सक्रिय मामलों की संख्या 35,12,674 पर आ गई है। लेकिन आम आदमी की घबराहट तब और बढ़ जाती है, जब वह मौत के आकड़ों की ओर देखता है। मौत के आकड़ें कम होने का नाम ही नही ले रहे हैं। हर रोज मौत का आकड़ा चार सौ पार कर जाता है। इस समय संक्रमितों का आंकड़ा 2.50 करोड़ है। इनमें से करीब 2.12 करोड़ मरीज पूरी तरह से ठीक भी हो चुके हैं और 2.74 लाख की जान जा चुकी है। मरीजों के उबरने की दर बढ़कर 84.81 फीसद हो गई है। मृत्युदर 1.10 फीसद है, जो पिछले कुछ दिनों से 1.09 फीसद पर स्थिर बनी हुई थी। कुल संक्रमितों के अनुपात में सक्रिय मामले 14.09 प्रतिशत हैं। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के अनुसार कोरोना संक्रमण का पता लगाने के लिए गत दिवस देश भर में 15,73,515 नमूनों की जांच की गई। इस प्रकार अभी तक कुल 31 करोड़ 64 लाख 23 हजार से ज्यादा नमूनों का परीक्षण किया जा चुका है।
हालांकि प्रदेश सरकार उत्तर प्रदेश की स्थिति में सुधार का दावा किया जा रहा है। लेकिन विपक्ष उनके इस जवाब से संतुष्ट नहीं है। वह सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदमों और चिकित्सा सुविधाओ पर लगातार सवाल उठा रहा है। एक जनहित याचिका की तीसरी बार सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी सरकार के कदमों को नाकाफी बताया। इसके साथ ही इस महामारी से लड़ने के लिए चिकित्सा क्षेत्र में क्या – क्या सुधार करने हैं। इसका भी निर्देश जारी किया। उसके अनुसार प्रदेश की चिकित्सा सुविधा बेहद नाजुक और कमजोर है। यह आम दिनों में भी जनता का इलाज करने में सक्षम नहीं है। इस वजह से महामारी के दौर में इसका चरमरा जाना स्वाभाविक है। पिछली सुनवाई पर उच्च न्यायालय उत्तर प्रदेश ने पांच छोटे जिलों में स्वास्थ्य सुविधाओं की उत्तर प्रदेश सरकार से रिपोर्ट मांगी थी। प्रदेश सरकार द्वारा पेश रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद उच्च न्यायालय ने बिजनौर की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि यहां की जनसंख्या के लिहाज से स्वास्थ्य सुविधाएं मात्र 0.01 प्रतिशत हैं। बिजनौर में लेवल थ्री और जीवन रक्षक उपकरणों की सुविधा नहीं है। सरकारी अस्पताल में सिर्फ 150 बेड हैं। ग्रामीण क्षेत्र की 32 लाख की आबादी के लिहाज से 1200 टेस्टिंग प्रतिदिन काफी कम है। हर दिन कम से कम चार से पांच हजार आरटीपीसीआर जांच होनी चाहिए। अगर हम कोविड संक्रमितों की पहचान करने में चूक गए तो कोरोना की तीसरी लहर को न्योता दे देंगे। अगर 30 प्रतिशत जांच करनी है तो हर दिन 10 हजार जांचें करनी होंगी।
प्रदेश के गांवों और कस्बों में चिकित्सा व्यवस्था 'भगवान भरोसे' चल रही है। समय रहते इसमें सुधार न होने का मतलब है कि हम कोरोना की तीसरी लहर को दावत दे रहे हैं। उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय ने प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन का निर्देश देते हुए कुछ सुझाव भी दिये । उच्च न्यायालय ने कहा कि उत्तर प्रदेश के सभी 20 बेड वाले सभी नर्सिंग होम और अस्पतालों के 40% बेड आईसीयू में परिवर्तित किए जाएँ। जिसमें से 25% बेड वेंटिलेटर युक्त हों और 25% हाईफ्लो नोजल कैनुडा से लैस हों। अन्य बीमारियों से ग्रसित मरीजो का ध्यान रखते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि उत्तर प्रदेश के सभी हॉस्पिटलों और नर्सिंग होम में 50% बेड सामान्य मरीजों के लिए रिजर्व रखे जाएं। प्रदेश के हर गांव और कस्बों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में पैथोलॉजी लैब बनाया जाए। सीरिअस मरीजों को ले जाने और ले आने के लिए हर जिले में 20 एम्बुलेंस और हर गांव में आईसीयू वाली 2 एम्बुलेंस की व्यवस्था किया जाए। इसके लिए मा न्यायालय ने बिजनौर, बहराइच, बाराबंकी, श्रावस्ती, जौनपुर, मैनपुरी, मऊ, अलीगढ़, एटा, इटावा, फिरोजाबाद व देवरिया के जिला जजों को नोडल अधिकारी नियुक्त करने को कहा है। ये नोडल अधिकारी मा न्यायालय के आदेश के अनुरूप रिपोर्ट तैयार करेंगे। हर नर्सिंग होम और हॉस्पिटल में ऑक्सीजन सुविधा और वेंटिलेटर की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। 30 बेड से ज्यादा क्षमता के हॉस्पिटल में ऑक्सीजन प्लांट लगाए जाएं। जिससे आक्सीजन की कमी से किसी जाना न जाए। वैक्सीन के बारे में एक बड़ा निर्देश देते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि सरकार खुद वैक्सीन बनाए और दूसरी कंपनियों को भी वैक्सीन बनाने का फार्मूले दे। जिससे समय पर सभी को वैक्सीन लगाई जा सके। बड़े औद्योगिक घराने धार्मिक गतिविधियों में खर्च होने वाला फंड वैक्सीन खरीदने में लगाया जाए। बीएचयू, गोरखपुर, प्रयागराज,आगरा, मेरठ मेडिकल कॉलेजों को उच्चिकृत कर एसजीपीजीआई स्तर का बनाया जाए।
मा न्यायालय ने प्रस्तुत रिपोर्ट पर नाखुशी जाहीर करते हुए कहा कि केंद्र और राज्य सरकार के स्वास्थ्य सचिव को कोरोना के रोकथाम और बेहतर इलाज की विशेषज्ञों द्वारा तैयार की गई विस्तृत योजना देना चाहिए। गांवों और कस्बों में टेस्टिंग बढ़ाया जाए, जिससे गावों में तेजी से फैल रहे कोरोना संक्रमण को नियंत्रित किया जा सके। एसजीपीजीआई लखनऊ, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी मेडिकल कॉलेज, किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज लखनऊ की तर्ज पर प्रयागराज, आगरा, मेरठ, कानपुर, गोरखपुर में भी हाईटेक सुविधाओं वाले मेडिकल कॉलेज स्थापित करने का भी निर्देश दिया गया। मा उच्च न्यायालय ने इसकी समय सीमा तय करते हुए चार महीने तय किए हैं।
मा न्यायालय के आदेश के बाद प्रदेश सरकार के वकील ने अपना पक्ष प्रस्तुत करते हुए कहा कि मा न्यायालय के आदेश का अनुपालन किया जा रहा है। इसके लिए पेन्डेमिक लोक शिकायत के लिए 3 सदस्यीय कमेटी का गठन कर दिया गया है। इस पर मा न्यायालय कहा कि कमेटी संबंधित जिले के नोडल अधिकारियों से चर्चा कर हर शिकायत का निस्तारण 24 से 48 घंटे के अंदर करना सुनिश्चित करे। हर जिले में होम आइसोलेशन, प्राइवेट अस्पतालों, नर्सिंग होमों में आक्सीजन सप्लाई की मॉनिटरिंग के लिए भी एक कमेटी बनाई जाए। शहरी और ग्रामीण इलाकों के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में भी जीवन रक्षक दवाओं की कमी को दूर किया जाए। मा न्यायालय ने बिजनौर जिले की यथास्थिति का हवाला देते हुए कहा कि वहां जो भी सुविधा है वह नाकाफी है। 32 लाख की आबादी पर 10 हॉस्पिटल हैं। लोगों को चिकित्सा सुविधा बड़ी मुश्किल से मिल पा रही है। 32 लाख की आबादी में अभी तक सरकार ने 1200 टेस्ट प्रतिदिन किए हैं जो बहुत ही कम हैं। 32 लाख की आबादी पर कम से कम 4 या 5 हजार टेस्ट हर दिन होने चाहिए।
मेरठ के जिला अस्पताल से एक मरीज के लापता होने पर मा न्यायालय ने ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि मेरठ जैसे शहर के मेडिकल कॉलेज में इलाज का यह हाल है तो छोटे शहरों और गांवों के संबंध में राज्य की संपूर्ण चिकित्सा व्यवस्था राम भरोसे ही कही जा सकती है। 22 अप्रैल को शाम 7-8 बजे 64 वर्षीय मरीज संतोष कुमार शौचालय गया था जहां वह बेहोश होकर गिर गया। जूनियर डॉक्टर तुलिका उस समय रात्रि ड्यूटी पर थीं। संतोष कुमार को बेहोशी के हालत में स्ट्रेचर पर लाया गया और उसे होश में लाने का प्रयास किया गया, लेकिन उसकी मृत्यु हो गई।
प्रभारी डाक्टर अंशु की रात्रि की ड्यूटी थी, लेकिन वह उपस्थित नहीं थे। सुबह डॉक्टर तनिष्क उत्कर्ष ने शव को उस स्थान से हटवाया। लेकिन व्यक्ति की शिनाख्त नहीं करवाई। वह आइसोलेशन वार्ड में उस मरीज की फाइल नहीं ढूंढ सके। इस तरह से संतोष की लाश लावारिस मान ली गई और शव को पैक कर उसे निस्तारित कर दिया गया। यदि डॉक्टरों और पैरा मेडिकल कर्मचारी इस तरह का रवैया अपनाते हैं और ड्यूटी करने में घोर लापरवाही दिखाते हैं तो यह गंभीर दुराचार का मामला है क्योंकि यह भोले भाले लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ जैसा है। राज्य सरकार को इसके लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की जरूरत है।
पांच जिलों के जिलाधिकारियों द्वारा पेश की गई रिपोर्ट पर अदालत ने कहा कि हमें कहने में संकोच नहीं है कि शहरी इलाकों में स्वास्थ्य ढांचा बिल्कुल अपर्याप्त है और गांवों के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में जीवन रक्षक उपकरणों की एक तरह से कमी है।
मा उच्च न्यायालय उत्तर प्रदेश ने जिस तरह से पिछले तीन बार से कोरोना महामारी पर दायर जनहित याचिका की सिलसिलेवार सुनवाई कर रहे हैं। सरकार और प्रशासन द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट का गहन अध्ययन कर सरकार की खिंचाई के साथ बेहतर सुविधा और इलाज कैसे हो ? इसके लिए दिशा-निर्देश दे रहे हैं। उसी का यह परिणाम है कि उत्तर प्रदेश में कोरोना महामारी का प्रकोप निरंतर कम हो रहा है। अगर मा उच्च न्यायालय द्वारा दिये गए सभी निर्देशों का अक्षरश: पालन किया गया, तो उत्तर प्रदेश की चिकित्सा व्यवस्था सर्वोत्तम हो जाएगी। जैसी की भविष्यवाणी की जा रही है। उसके अनुसार अगर तीसरा स्ट्रेन आया भी तो भी वह निष्प्रभावी हो जाएगा। जो लोग संक्रमित होंगे, उनका तुरंत इलाज हो जाएगा। इस तरह से कोरोना के तीसरे स्ट्रेन को फैलने का मौका ही नहीं मिलेगा। फैलने के पूर्व ही उसकी चेन टूट जाएगी। इस मामले में अगली सुनवाई 22 मई को होगी, अगली सुनवाई भी मा उच्च न्यायालय ने तय कर दी।
प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव (गुरुजी)
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी/समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट