संक्रमित बच्चे और उनका होम आइसोलेशन

Update: 2021-05-19 05:45 GMT

ऐसी मान्यता है कि 14 साल तक के बच्चों की इम्यूनिटी पावर काफी मजबूत होती है। इस कारण उन्हें कोरोना संक्रमण होने का खतरा न के बराबर है। लेकिन इस बार जो कोरोना का नया वेरिएंट आया है, उससे बच्चे भी संक्रमित हो रहे हैं। कहीं कहीं तो पूरा परिवार ही इसका शिकार हो जा रहा है। परिवार में बड़ों के साथ बच्चे भी है। सम्पूर्ण देश में अभी तक कोरोना संक्रमित तमाम बच्चों की मौत हो चुकी है। बच्चों की लगातार हो रही मौतों के बाद सरकारों और स्वास्थ्य संगठनों का ध्यान इस ओर गया। फिर बच्चों में फैल रहे कोरोना संक्रमण रोकने का प्रयास शुरू हुआ। मीडिया पर भी इस विषय को इस समय प्रमुखता से उठाया जा रहा है। जिससे लोगों में जागरूकता फैले और वे अपने बच्चों के प्रति सतर्क हो सकें। कई परिवार ऐसे भी मिले, जिसके यहाँ सभी कोरोना संक्रमित हो गए, केवल बच्चे बचे। अपने कोरोना ग्रसित होने के बाद भी वे अपने बच्चों के प्रति अधिक चिंतित रहते हैं कि कहीं वे कोरोना से संक्रमित न हो जाएँ।

महामारी की पहली लहर में बच्चों के संक्रमित होने का कोई केस प्रकाश में नहीं आया था। लेकिन दूसरी लहर में ऐसा नहीं हुआ। नए वेरिएंट कोरोना से बच्चे भी संक्रमित हुए। साथ ही अभी तक पूरे देश में हजारों बच्चों की मौत भी हो चुकी है। सभी माता-पिता, दादा-दादी के सामने एक नया सवाल है कि वे अपने बच्चों को कैसे होम आइसोलेट करें। इसके साथ-साथ जो बच्चे कोरोना संक्रमित हो रहे हैं। उसके लक्षण ऐसे नहीं हैं, जिससे यह साबित हो सके कि इस बच्चे को कोरोना है। यानि संक्रमित बच्चों में कोरोना के कोई लक्षण नहीं दिखाई पड़ रहे हैं। दूसरी बच्चों में ऐसे लक्षण नहीं होते हैं, या संक्रमण इतना भयावह नहीं होता कि उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती कराया जाए। इसलिए बच्चों के लिए होम आइसोलेशन सबसे अधिक उपयुक्त पाया गया। बच्चों में हो रहे कोरोना से उन्हें तो अधिक खतरा नहीं है। लेकिन उनसे कोरोना परिवार के बड़ी उम्र के लोगों में फैलने का अधिक खतरा रहता है, विशेषकर घर के बुजुर्गों को इससे अधिक सावधान रहने की जरूरत है। क्योंकि अभी तक यह पाया गया है कि घर के बच्चों को घर के बुजुर्ग अधिक प्यार करते हैं। इसी कारण बच्चों का भी उनसे अधिक लगाव रहता है। चूंकि बच्चों में कोरोना के लक्षण नहीं दिखाई पड़ते हैं। इस कारण घर के बुजुर्ग आम बीमारियों की तरह उनके पास बैठने लगते हैं, उनको लाड़ करने लगते हैं और वे भी संक्रमित हो जाते हैं। बड़ों की ही तरह जैसे ही पता चले कि बच्चा उदास है। उसे नींद ज्यादा आ रही है। वह पहले जैसा व्यवहार नहीं कर रहा है, साथ में शरीर गरम है। तो ऐसे बच्चों की जांच रिपोर्ट का इंतजार नहीं करना चाहिए। उन्हें तुरंत होम आइसोलेट कर देना चाहिए। कोरोना संक्रमण काल में यह बात सभी को गांठ बांध लेना चाहिए कि कोरोना संक्रमण में पहला कदम टेस्टिंग नहीं है, पहला कदम होम आइसोलेशन है। एक बात ध्यान रखें कि अगर पूरे परिवार की रिपोर्ट पाजीटिव आई हो और बच्चों की रिपोर्ट नेगेटिव आई हो, तो भी पूरे परिवार के साथ उसे भी होम आइसोलेट कर देना चाहिए। इसके अलावा होम आइसोलेशन के बाद सभी को एक दूसरे से मिलते समय डबल मास्क और दो गज की दूरी का उपयोग करना चाहिए। लेकिन यह ध्यान रहे कि बच्चे को अलग कमरे में आइसोलेट करना है। इस बात का ख्याल रखा जाये कि बच्चे की देखभाल के लिए जिसे रखा जाए, वह युवा या युवती हो। अगर शेष घर वाले अधिक संक्रमित हों, उन्हें उठने-बैठने में तकलीफ हो रही हो, पड़ोसी की भी मदद भी ली जा सकती है। लेकिन इस संबंध में अनुभव अलग तरीके के हैं। इस कोरोना महामारी में देखने को मिला कि अगर पिता की ही कोरोना संक्रमण से मौत हो गई, तो उसके बेटे-बेटी या अन्य करीबी परिवारीजन भी उसके पास नहीं जाते हैं। कई तो हॉस्पिटल में लाश छोड़ कर भाग लेते हैं। इस समय गंगा जैसी नदी में सैकड़ों की संख्या में लाशें तैर रही हैं। ऐसा नहीं है कि उन्हें जलाने के लिए लकड़ियों का अकाल पड़ गया। पर उसके दो कारण समझ में आए। एक तो हिन्दू समाज में यह मान्यता है कि सर्पदंश या किसी महामारी के कारण अगर मौत हो जाए, तो उसका दाह संस्कार करने के बजाय उसे नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए । कहने का तात्पर्य यह है कि जब अपने सगे परिजनों से कोरोना काल में लोग इतनी दूरी बना कर चल रहे हों, तो फिर किसी पड़ोसी या रिश्तेदार से कैसे अपेक्षा रखी जा सकती है। होम आइसोलेशन करने के बाद बच्चो को कम से कम 10 दिन तक खुद से दूर रखने का प्रयास करना चाहिए। ऐसी कंडीशन आने पर कुछ लोग बच्चों को नाना – नानी के घर भेज देते हैं। वहाँ जाकर बच्चा और स्वछंद हो जाता है, मास्क और दो गज की दूरी का पालन करना तो दूर की बात है।

अगर घर में केवल बच्चा ही कोरोना संक्रमित हो गया हो, तो उसे एक कमरे में आइसोलेट कर देना चाहिए । पर ध्यान रहे कि उस कमरे में टीवी न हो, न ही उसे मोबाइल या लैपटॉप पर गेम खेलने दिया जाए। वह जिस कमरे में आइसोलेट है, उस कमरे से उसे बार-बार न निकलने दिया जाए। उसका खाना भी उसे उसी कमरे में दिया जाए। ऐसे में बच्चे की तारीफ करें । उसे अच्छी – अच्छी कहानियाँ सुनाएँ, जिससे उसका उत्साह कम न हो। चूंकि ऐसे में बच्चे के कमरे में नहीं जाना होता है। अगर घर में एंडरायड फोन हो, तो उसे दे दें, और वीडियो कालिंग के जरिये उससे बातचीत करें और उसे समझाते भी रहें। ऐसा कोई खिलौना या खेल का समान दे दें, जिससे वह अपने कमरे में पड़े पड़े खेल सकता हो। अगर एंडरायड फोन न हो, तो उच्च क्वालिटी का डबल मास्क पहन कर उसके माता-पिता को उसके कमरे में जाना चाहिए। लेकिन दो गज की दूरी बनी रहे। और वहाँ से निकलने और जाने के पूर्व अपने हाथ को सेनीटाइज्ड जरूर करें।

नवजात शिशु अगर कोरोना संक्रमित हो जाएँ, या उस नवजात की माँ कोरोना संक्रमित हो जाए, तो ऐसे में क्या करना चाहिए ? यह एक बड़ा सवाल है ? लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे में घबराने की जरूरत नहीं है। चाहे माँ संक्रमित ही क्यों न हो ? उसे अपने बच्चे को फीडिंग कराना नहीं बंद करना चाहिए। माँ के दूध से बच्चे की इम्यूनिटी बढ़ती है। लेकिन हर ऐसी माँ को एक सावधानी बरतना चाहिए कि जब भी वह अपने बच्चे को फीडिंग कराये, उस समय उसे डबल मास्क लगाना जरूरी है। इसके अलावा वह डबल मास्क लगाकर वह बच्चे को नहलाना-धुलाना से लेकर मालिश भी कर सकती है। वह उसके साथ प्यार दुलार और खेल भी सकती है। जब तक बच्चे को कोई तकलीफ न हो, उसे किसी प्रकार की दवाई देने की भी जरूरत नहीं है। लेकिन सोते समय या तो बच्चे को अलग कमरे में सुलाएँ । अगर यह संभव नहीं है, तो सोते समय जच्चा और बच्चा के बीच दूरी बहुत जरूरी है। अगर कमरे में एग्जास्ट फैन लगा हो तो उसे रात में जरूर ऑन कर दें। इसके अलावा कमरे की सफाई, सेनेटाइज्ड आदि जरूर करना चाहिए। डाक्टर की सलाह लेकर बच्चे की इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए उसे विटामिन डी और जिंक का सिरप दे सकते हैं। बच्चों के वैक्सीनेशन की प्रक्रिया भी भारत सरकार शुरू करने जा रही है। उस पर टेस्टिंग की जा रही है। जैसे ही बच्चों पर टेस्टिंग का पॉज़िटिव परिणाम आएगा, 18 + की तरह 18 – के वैक्सीनेशन की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। जिनकी अभी शादी हो रही है, वे प्रीकाशन लें, प्रेग्नेंसी प्लान न करें। अगर बच्चे बड़े हों, यानि तेरह से अठारह साल के बीच के हों, और उनके माता-पिता संक्रमित हो जाएँ। होम आइसोलेट हो जाएँ, ऐसी दशा में माता-पिता को अलग कमरे में आइसोलेट कर देना चाहिए, तथा बच्चे को अलग कमरे में रहना चाहिए। बच्चे को बिना जरूरत के अपने माता-पिता के पास नहीं जाना चाहिए। जब भी जाएँ, हाथ को सेनीटाइज्ड कर ले। ग्लव्स, और डबल मास्क पहने। उनके पास से लौटने के बाद पूरे शरीर पर 20 मिनट साबुन लगाने के बाद नहा लेना चाहिए। जिन जगहों को माता-पिता छूए, उसे क्लीन कर लेना चाहिए।

कोरोना वायरस की दूसरी लहर लोगों भारत में तेजी से फैली हुई है। कोरोना का डबल म्यूटेंट वायरस अब बच्चों को भी संक्रमित कर रहा है। इसलिए उन्हें इस संक्रमण से बचाने के लिए बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी रहे, इसका इंतजाम करना चाहिए। क्योंकि संक्रमित बच्चे को हर तरह की दवा नहीं दे सकते हैं। रेमडेसिविर जैसी दवाइयाँ भी बच्चों को नहीं दी जा सकती हैं। इसलिए बच्चे को कोरोना संक्रमण के समय की जाने वाली सावधानियों से शिक्षित करना चाहिए। बच्चों को बताएं की मास्क पहनें। सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन करें। बच्चों को घर से बाहर न जाने दें। बच्चों को 20 सेकंड तक साबुन से हाथ धोने को कहें। बच्चे को 1-2 दिन से ज्यादा बुखार रहे। अगर बच्चे के शरीर और पैर में लाल चकत्ते हो जाएं। अगर बच्चे के चेहरे का रंग नीला दिखने लगे। बच्चे को उल्टी-दस्त आने लगे। बच्चे के हाथ-पैर में सूजन आने लगे। तो बच्चे को होम आइसोलेट कर देना चाहिए । बच्चों को पीने के लिए गुनगुना पानी दें। एक्सरसाइज कराएं। इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए खट्टे फल खाने को दें।बच्चों को बैक्टीरियल इंफेक्शन और वायरल इंफेक्शन से बचाने के लिए हल्दी वाला दूध दें। बच्चों को डराएं नहीं। बच्‍चों को हेल्‍दी खाना खिलाएं। जिसमें फल-सब्जियां, फ्रूट जूस और अंडे शामिल हों।

भारत सरकार स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपने ट्वीट में यह निर्देश दिया है कि बिना लक्षण वाले कोरोना पॉजिटिव बच्चों की भी घर पर ही देखभाल की जा सकती है। ऐसे बच्चों की पहचान तभी हो पाती है जब उनके परिवार में किसी के कोरोना पॉजिटिव होने के बाद सभी की जांच की जाती है। ऐसे बच्चों में कुछ दिनों बाद गले में खराश, नाक बहना, सांस लेने में परेशानी के बिना खांसी हो सकती है। कुछ बच्चों का पेट भी खराब हो सकता है। इन बच्चों को घर में आइसोलेट करके लक्षणों के आधार पर उनका इलाज किया जाता है। ऐसे बच्चों को बुखार आने पर डॉक्टर की सलाह पर पेरासिटामोल दिया जा सकता है। बिना लक्षण वाले बच्चों के ऑक्सीजन लेवल कम होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। यदि ऑक्सीजन का स्तर 94% से कम होने लगे तो डॉक्टर की सलाह लेकर उसे आक्सीजन देने की व्यवस्था करें। जिन बच्चों को कोई गंभीर बीमारी हो, जैसे जन्म से दिल की बीमारी, लंबे समय से फेफड़ों की बीमारी, किसी भी अंग के काम न करना और मोटापा आदि, तो होम आइसोलेशन के बाद भी निरंतर डॉक्टर के संपर्क में रहें।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी/समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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