देश की आजादी के दस्तावेजों पर बहुत सारी वीरांगनाओं के हस्ताक्षर मिलेंगे, लेकिन 1857 की क्रांति की सबसे महान नायिका थीं, काशी की मनिकर्णिका, मनु, उर्फ महारानी लक्ष्मीबाई , जिसे ब्रिटिशर्स की राज्यों को हड़पने की कुटिल साजिश के चलते महज 30 साल की आयु में शहादत देनी पड़ी. भारतीय इतिहास में अपने सौंदर्य, शौर्य और साहस की प्रतीक रानी लक्ष्मीबाई केवल महिलाओं ही नहीं पुरुषों के लिए भी प्रेरणा स्त्रोत मानी जाती हैं. यहां उनके जीवन के कुछ महत्वपूर्ण और प्रेरक पहलुओं को उजागर करने की कोशिश की गई है.
काशी में जन्म
रानी लक्ष्मीबाई का जन्म उत्तर प्रदेश (तब युनाइटेड प्रोविंस) के वाराणसी (तब काशी) में 19 नवंबर 1828 को एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. बचपन में उनका नाम मणिकर्णिका तांबे रखा गया था, संक्षिप्त में उन्हें प्यार से मनु कहकर पुकारा जाता था. पिता मोरोपंत तांबे पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार में काम करते थे, जबकि मां भागीरथी बाई एक सुसंस्कृत, बुद्धिमान और धर्मनिष्ठ स्वभाव की महिला थीं, लेकिन मनु काफी छोटी थी, तभी उनकी मां का देहांत हो गया. घर में अकेले होने के कारण मोरोपंत मनु को रोजाना अपने साथ पेशवा के दरबार में लेकर जाते थे. पेशवा दरबार में ही लड़कों के बीच पली-बढ़ी मनु बचपन में ही मार्शल आर्ट, तलवारबाजी, घुड़सवारी इत्यादि में निपुण हो गई थीं.
रानी लक्ष्मीबाई प्रातःकाल उठतीं और नित्य क्रिया से फारिग होकर घंटों व्यायाम, घुड़सवारी, सैन्य प्रशिक्षण इत्यादि करतीं. इन कार्यों में थककर चूर होने होने के पश्चात वे स्नान करने चली जाती थीं. उनके समकालीन सहयोगी विष्णु भट्ट गोड्से, जो लक्ष्मीबाई के दरबार में ही रहते थे, ने अपनी पुस्तक 'आंखों देखा गदर' (मूल पुस्तक का हिंदी अनुवाद) में लिखा है कि बाई साहब (रानी लक्ष्मीबाई) को नहाने का बहुत शौक था. उनके लिए प्रतिदिन लगभग 15-20 हंडे पानी गरम किये जाते थे. इस पानी में 8-10 किस्म के इत्र डाले जाते थे. इन खुशबू वाले पानी से वे घंटों स्नान करती थीं. वे इतनी देर तक स्नान करतीं कि उनके स्नान के लिए प्रयोग हुआ पानी की मात्रा इतनी ज्यादा होती थी कि उससे बहुत-सी स्त्रियां स्नान कर लेती थीं.
साल 1842 में रानी लक्ष्मीबाई का विवाह झांसी के मराठा शासक गंगाधर राव नेवालकर के साथ हुआ. इस समय उनकी उम्र 14 वर्ष थी. पति गंगाधर राव उन्हें 'राज्य की लक्ष्मी' का दर्जा देते हुए उनका नाम परिवर्तन रानी लक्ष्मीबाई रखा. सितंबर 1851 में लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन दुर्भाग्यवश महज 4 महीने की उम्र में ही शिशु की मौत हो गई. दो साल बाद 1853 में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य जब बहुत बिगड़ने लगा, तब सत्ता के वारिस के लिए उनसे दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गयी. क्योंकि ब्रिटिश कानून के अनुसार वारिस नहीं होने पर अंग्रेज सरकार अमुक राज्य पर कब्जा कर लेगी. पुत्र दामोदर राव को गोद लेने के बाद दिनांक 21 नवंबर 1753 को गंगाधर राव की मृत्यु हो गयी
ग्वालियर में ब्रिटिश सेना के साथ युद्ध करते हुए लक्ष्मीबाई शहीद हो गई थीं, लेकिन उनकी मौत को लेकर इतिहासकारों में आज भी दुविधा है. कुछ इतिहासकारों के अनुसार युद्ध करते हुए लक्ष्मीबाई की एक सैनिक की गोली लगने से मृत्यु हुई थी, वहीं कुछ इतिहासकारों का कहना है कि रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु ब्रिटिश आर्मी के सीनियर अफसर कैप्टन ह्युरोज की तलवार से हुई थी, ये वही ह्युरोज था, जिसने पहली बार लक्ष्मीबाई को देखकर 'क्लैवर एंड ब्यूटीफुल वुमेन' कहा था, रानी की मृत्यु के पश्चात कैप्टन ह्युरोज ने रानी लक्ष्मीबाई को सैल्यूट किया था.
साल 1858 में सिंधिया राजवंश के खजांची अमरचंद बाठिया का नाम उन शहीदों में लिया जाता है, जिन्होंने अपनी जान की परवाह किये बिना रानी लक्ष्मीबाई की मदद की थी. इतिहासकारों के अनुसार अमरचंद बाठिया ने अंग्रेज हुकमत के आदेश को नजरंदाज करते हुए सिंधिया राजकोष से रानी लक्ष्मीबाई की मदद करते थे. अंग्रेजी हुकूमत की हुकुम का विरोध करने के कारण ब्रिटिश सरकार ने उन पर मुकदमा भी चलाया था, और कानूनी नियमों को ताक पर रखते हुए अमरचंद बाठिया को मृत्यु दण्ड की सजा सुनाते हुए एक वृक्ष पर सरेआम लटका कर फांसी दे दी गई थी. सराफा बाजार में आज भी वह पेड़ मौजूद है.