आइये एक नज़र डालें चुनाव से ठीक पहले उठे सपा में इस विवाद की जड़ क्या रही?

Update: 2016-10-23 07:53 GMT

चुनाव से ठीक पहले उत्तर-प्रदेश के सबसे बड़े सियासी घराने में जारी उठा-पटक जनता के सामने आ गई है. आज यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जारी इस बड़े घमासान में कड़ी कार्रवाई की है। अखिलेश ने झगड़े के बीच आज अपने समर्थक-विधायकों की बैठक बुलाई. इस बैठक में शिवपाल समर्थकों को छोड़ करीब 415 नेताओं को बुलाया गया. जिसमें मुख्यमंत्री ने मंत्रिमंडल से शिवपाल समेत 4 मंत्रियों को बर्खास्त करने का चुनावों से पहले सबसे बड़ा फैसला लिया।

विधायकों के साथ हुई बैठक में अखिलेश यादव ने साफ शब्दों में कहा कि वो ही नेताजी का उत्तराधिकारी हैं.

आइये एक नज़र डालें चुनाव से ठीक पहले उठे इस विवाद की जड़ क्या रही?

बाहुबली मुख्तार अंसारी की पार्टी के विलय से पनपा विवाद:
समाजवादी परिवार में बंटवारे की नींव जून महीने में ही पड़ गई थी. जब अखिलेश की मर्जी के खिलाफ जाकर शिवपाल ने बाहुबली मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का विलय कराया था. लेकिन मुख्यमंत्री अखिलेश को ये बात नागवार गुज़री और उन्होंने इस विलय का विरोध किया और विलय रद्द करा दिया गया. इसके बाद ये ही चाचा शिवपाल और भतीजे अखिलेश के बीच मनमुटाव का सिलसिला जारी हो गया और इसके बाद से ही समाजवादी परिवार दो धड़ो में बंट गया.

चाचा-भतीजे में चलती रही तकरार:
पिछले महीने जब मुलायम ने अखिलेश को हटाकर शिवपाल को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया तब बात बहुत ज्यादा बिगड़ गई. जिसके बाद अखिलेश यादव ने सरकार में चाचा शिवपाल यादव के पर कतरे और उनका कद कम कर दिया. अखिलेश के इस फैसले से नाराज शिवपाल ने तब इस्तीफा तक दे दिया था. इसके बाद अखिलेश को बैकफुट पर आना पड़ा और तब से वो पार्टी में पीछे धकेले जा रहे थे लेकिन आज ये मास्टर स्ट्रोक खेलकर अखिलेश ने यूपी की इस लड़ाई में फिर से वापसी कर दी है.

जून से लगातार चला छींटाकशी का दौर:
सबसे पहले शिवपाल ने अखिलेश समर्थक पदाधिकारियों को पार्टी से निकाल दिया. जिसके बाद उन्होंने रामगोपाल यादव के रिश्तेदार एमएलएसी को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया. इतना ही नहीं शिवपाल ने अखिलेश समर्थकों को दिए गए कई टिकट भी काट दिए. जिसके बाद कौमी एकता दल का फिर से एसपी में विलय हो गया. लेकिन इसके बाद तो हाल ये हो गया कि अखिलेश समर्थकों के पोस्टर से शिवपाल गायब होते चले गये और शिवपाल समर्थकों ने अपने पोस्टर से अखिलेश को निकाल बाहर किया. इस दौरान अखिलेश ने अपना घर भी अलग कर लिया. अपने समर्थकों के लिए दफ्तर भी अलग बना लिए.

इस पूरे विवाद की जड़ रही मुख्तार अंसारी की कौमी एकता दल पार्टी.

अमर सिंह को लेकर अखिलेश समर्थकों में गुस्सा:
जुलाई महीने नेताजी मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के करीबी माने जाने वाले जावेद आब्दी को अपनी राष्ट्रीय कार्यकारणी से हटाकर अमर सिंह को पार्टी की कार्यकारिणी में शामिल करवाया था. जिसके बाद से अमर सिंह को लेकर अखिलेश समर्थकों में गुस्सा था.

समाजवादी पार्टी में कौमी एकता दम के विलय से खफा आज़म खान ने भी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की तारीफ करते हुए अमर सिंह पर निशाना साधा था और उन्हें चोर तक कह डाला था. आज़म खान ने कहा था कि 'जब मुख्यमंत्री ने किसी का नाम नहीं लिया तो चोर ख़ुद से क्यूं बोल पड़ा. चोर की दाढ़ी में तिनका क्यूं है. वो सफाई क्यूं दे रहे हैं.' आज़म खान ने कहा कि 'मुख्यमंत्री ज़िम्मेदार पद पर हैं वो जो कह रहे हैं सही कह रहे हैं.' आज़म खान ने कहा था कि 'अमर सिंह की वजह से ही गलतफहमिया हुई हैं.'

अमर सिंह के खिलाफ अखिलेश गुट में कितना गुस्सा था ये आज बैठक के बाद साफ हो गया.

आइये ये भी जानें कौन हैं इस विवाद की नींव मुख्तार अंसारी?
बाहुबली मुख्तार अंसारी साल 1996 में बसपा के टिकट पर विधायक चुने गए थे. इसके बाद 2002 और 2007 में निर्दल प्रत्याशी के तौर पर जीत हासि‍ल की. मुख्तार अंसारी ने 2012 के चुनाव से पहले कौमी एकता दल का गठन किया. कौमी एकता दल के अध्यक्ष मुख्तार के बड़े भाई पूर्व सांसद अफजाल अंसारी हैं. इनकी पार्टी के समाजवादी पार्टी में विलय को लेकर ही समाजवादी पार्टी और यूपी के इस बड़े राजनीतिक घराने में पूरा विवाद पनपा.

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