भगवान के प्रति अप्रतिम विश्वास का नाम सुदामा।

Update: 2025-03-27 04:51 GMT

बस्ती : सुदामा का चरित्र हमें यह सिखाता है कि जब कोई व्यक्ति निष्कपट हृदय से भगवान के प्रति श्रद्धा और विश्वास रखता है, तो भगवान उसकी हर स्थिति में रक्षा करते हैं।

सुदामा की भक्ति में कोई लोभ नहीं था। वे दरिद्रता में भी संतुष्ट थे और केवल भगवान की कृपा को ही अपना सबसे बड़ा धन मानते थे। उनकी भक्ति और विश्वास का प्रतिफल यह हुआ कि भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी निर्धनता को हर लिया और उन्हें अपार संपत्ति और सुख-संपन्नता का वरदान दिया।

इसलिए, सुदामा का नाम भगवान के प्रति अटूट विश्वास, सच्चे प्रेम और भक्ति का पर्याय बन गया है। उनका जीवन हमें यह प्रेरणा देता है कि सच्ची भक्ति और निस्वार्थ प्रेम से भगवान को प्राप्त किया जा सकता है।

मित्रता विपन्नता सम्पन्नता देखकर नहीं की जानी चाहिए सच्चा मित्र वही है जो मित्र के सुख दुःख में काम आये। भगवान अपने संबंधों में प्रभाव को नहीं देखते वह भाव को प्रधानता देते हैं। सुदामा चरित्र आत्मज्ञान के लिए है उपदेश के लिए नहीं है। ईश्वर जगत के माता-पिता है सभी के भाव जानते हैं। सुदामा प्रकांड विद्वान थे ज्ञानी थे उनके ज्ञान का विनिमय धनार्जन के लिए नहीं है उनका ज्ञान भगवान के प्रसन्नता के लिए है।शास्त्रों में दरिद्र उसी को कहा जाता है

जिसके जीवन में असंतोष है। जो असंतुष्ट है वही दरिद्र है। श्रीमद् भागवत महापुराण की मांगलिक कथाओं का श्रवण करने से प्राणी इस भौतिक संसार के समस्त सुखों को भोगकर शरीर परित्याग के पश्चात परमधाम को प्राप्त होता है। ऋषि कुमार द्वारा शापित होने के बावजूद महाराज परीक्षित ने श्री शुक देव जी महाराज से श्रीमद् भागवत श्रवण कर भगवत धाम को प्राप्त किया। कथा के विश्राम दिवस कथा व्यास पूज्य श्री विद्याधर भारद्वाज जी ने कहा द्वापर के अंत में भगवान श्री कृष्ण श्रीमद् भागवत में आकर प्रविष्ट हुए और उसी समय से श्रीमद् भागवत भगवान का स्वरूप हो गया परमहंसों की संहिता हो गई। इसके आगे उन्होंने कलयुग की महिमा को बताया कलिकाल में भगवन नाम संकीर्तन

प्राणी मात्र के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करेगा।

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