बसपा के वोट बैंक पर सपा की नजर, दलित समाज को सपा साधने में जुटी

Update: 2025-04-08 11:50 GMT

उत्तर प्रदेश में दो साल बाद विधानसभा चुनाव है, लेकिन सियासी बिसात अभी से ही बिछाई जाने लगी है. 2027 चुनाव के लिए सियासी जमीन तैयार कर रहे सपा प्रमुख अखिलेश यादव का फोकस अपने पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फार्मूले को और भी मजबूत करने की है. इसी मद्देनजर अखिलेश ने सोमवार को बसपा के पूर्व नेता दद्दू प्रसाद को अपने साथ मिला लिया है. दद्दू प्रसाद के अलावा सलाउद्दीन, देवरंजन नागर और जगन्नाथ कुशवाहा भी सपा की सदस्यता दिलाई है.

दद्दू प्रसाद बसपा के संस्थापक कांशीराम की सियासी प्रयोगशाला से निकले हुए नेता हैं. एक समय मायावती के कोर टीम का हिस्सा दद्दू प्रसाद हुआ करते थे और बुंदेलखंड में बसपा के दलित चेहरा हुआ करते थे. अखिलेश ने ऐसे ही 2022 के चुनाव से पहले ही बसपा बैकग्राउंड वाले नेताओं को शामिल कर बीजेपी से मुकाबला किया था और 2027 के लिए उसी रणनीति पर काम शुरू कर दिया है. इस तरह से सपा की नजर बसपा के कोर वोटबैंक दलित समुदाय पर है, जिसे साधकर 2027 की चुनावी जंग फतह करना चाहते हैं?

पीडीए को और मजबूत करने में लगी सपा

अखिलेश यादव का पीडीए फॉर्मूला 2024 में हिट रहा है. लोकसभा चुनाव 2024 में पिछड़ा, दलित अल्पसंख्यक यानी पीडीए पॉलिटिक्स की नैया पर सवार सपा ने बीजेपी को करारी मात दी थी. यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से सपा 37 सीटे जीती और कांग्रेस 6 सीटें जीती थी जबकि बीजेपी 33 सीट और सहयोगी दलों के पाले में केवल तीन सीटें आईं थी. सपा ने अपने इतिहास में सबसे ज्यादा सीटें 2024 में जीतने में कामयाब रही. इसके चलते ही अखिलेश 2027 के लिए अपनी पीडीए की सियासत को मजबूत करने की कवायद शुरू कर दी है. इसी कड़ी में सोमवार को जिन नेताओं को अखिलेश यादव ने पार्टी की सदस्यता दिलाई है, उसमें ओबीसी, दलित और अल्पसंख्यक समुदाय से ही नेता था.

सपा की पीडीए राजनीति के चलते ही अखिलेश यादव यूपी में योगी के 80-20 फॉर्मूले के सामने 90-10 के समीकरण को चलने का दांव चला है. योगी आदित्यनाथ के 80:20 के फॉर्मूले को सांप्रदायिक गणित से जोड़कर देखा जा रहा, जिसे हिंदू बनाम मुसलमान वोट बैंक से जोड़ा जा रहा है.यूपी में 80 फीसदी हिंदू और 20 फीसदी मुस्लिम आबादी है. वहीं, अखिलेश 90-10 का दांव चला है. अखिलेश का फॉर्मूला जातीय गणित से जोड़कर देखा जा रहा है. 90 फीसदी को पूरा करने के लिए अखिलेश यादव समाजवादियों के साथ अब अंबेडकरवादियों को जोड़ने में लगे हैं. सपा पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक के साथ सवर्ण वोटों में सेंधमारी का पासा फेंक रहे हैं.

बसपा के कोर वोट बैंक पर सपा की नजर

अखिलेश यादव की नजर बसपा के वोट बैंक दलित समाज पर है. अखिलेश यादव दो तरह से दलित वोटों को जोड़ने में लगे हैं. सपा अपने दलित समाज के नेताओं को तवज्जो दी जा रही है. इसके अलावा दूसरा बसपा के बैकग्राउंड वाले नेताओं को अपने साथ मिलाकर सियासी संदेश देने की स्ट्रैटेजी है. इसी कड़ी में दद्दू प्रसाद की सपा में एंट्री कराई गई है. एक जमाने में दद्दू प्रसाद बुंदेलखंड के इलाके में मायावती के चहेते नेता थे. बीएसपी के संस्थापक कांशीराम से राजनीतिक प्रयोग से निकले हुए नेता हैं, जो हार्डकोर अंबेडकरवादी हैं. बसपा से निकाले जाने के बाद दद्दू प्रसाद किसी भी दूसरी पार्टी में सेट नहीं हो सके और अब सपा की साइकिल पर सवार हो गए हैं.

ददूद प्रसाद के बहाने अखिलेश यादव माहौल बनाना चाहते हैं कि बसपा का समय बीत चुका है. बसपा के साथ रहने से कोई फायदा नहीं. बीजेपी को रोकने के लिए सपा की एकमात्र विकल्प हैं. अखिलेश ने इसी योजना के तहत बीएसपी के जिला स्तर तक के नेताओं को अपने साथ जोड़ने का फैसला किया है. हर दस पंद्रह दिनों पर सपा इस तरह के कार्यक्रम होंगे.मायावती की पार्टी के नेताओं को हाथी से उतारकर सपा की साइकिल पर सवार कराएंगे. इस कड़ी में बसपा के तमाम नेताओं को शॉर्टलिस्ट कर लिया गया है.

बसपा में एक समय इंद्रजीत सरोज, दद्दू प्रसाद,लालजी वर्मा, रामअचल राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्य, बाबू सिंह कुशवाहा, आरके चौधरी, सुखदेव राजभर जैसे नेताओं की तूती बोला करती थी. मायावती के करीबी माने जाते थे, लेकिन एक-एक कर सभी ने बसपा छोड़ दिया और सपा में शामिल हो गए. स्वामी प्रसाद मौर्य ने जरूर सपा छोड़ दी है, लेकिन ज्यादातर नेता अभी भी अखिलेश यादव के साथ बने हुए हैं.


दलित समाज को साधने के लिए सपा कई स्तर पर अभियान चला रही है. राणा सांगा पर बयान के बाद समाजवादी पार्टी के दलित सांसद रामजी लाल सुमन के घर करणी सेना ने हमला किया. तो अखिलेश यादव और उनकी पार्टी ने सुमन के समर्थन में आसमान सर पर उठा लिया. सपा ने दलित स्वाभिमान से जोड़ दिया और बीजेपी को दलित विरोधी कठघरे में खड़े करने की. रामजी सुमन के घर पर हुए हमले को सपा ठाकुर बनाम दलित का रंग दे रही है. इस तरह दलित समुदाय का विश्वास जीतने की कवायद सपा की है.

दलित समाज को जोड़ने से लिए अखिलेश यादव ने ऐलान किया कि ‘अंबेडकर जयंती’ के मौके पर 8 से 14 अप्रैल तक सपा के कार्यालयों में स्वाभिमान-स्वमान समारोह का आयोजन करने का ऐलान किया, जो समाजवादी बाबासाहेब अंबेडकर वाहिनी और समाजवादी अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ मिलकर करेंगे. इस तरह सपा संविधान और आरक्षण बचाने के नैरेटिव को सेट करने की स्ट्रेटेजी पर काम कर रही है. अखिलेश ने जब अंबेडकर जयंती पर कार्यक्रम का ऐलान किया तो कार्यालय में सजाई गईं महर्षि कश्यप, निषादराज और सम्राट अशोक की तस्वीरों पर माल्यार्पण किया. उनकी कुर्सी के आगे टेबल पर महात्मा गौतम बुद्ध की प्रतिमा भी रखी गई थी. इस तरह दलित समाज को सियासी संदेश देने का कोई भी मौका नहीं गंवा रहे हैं.

Similar News