सीएम योगी के 80-20 वाले फॉर्मूले के सामने अखिलेश यादव ने चला 90-10 का दांव, कौन किस पर पड़ेगा भारी?

Update: 2025-04-07 11:47 GMT

उत्तर प्रदेश में 2027 को लेकर अभी से सियासी एजेंडा सेट किए जाने लगा है. सूबे में जीत की हैट्रिक लगाने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने हिंदुत्व के एजेंडे पर एक बार फिर से एक्टिव हो गए हैं और 80-20 का नैरेटिव सेट करने में जुटे हैं. योगी की 80-20 की पॉलिटिक्स के सामने सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने 90-10 का नया फॉर्मूला दिया है. अखिलेश ने कहा कि 2027 की लड़ाई 80-20 की नहीं बल्कि 90-10 की होगी. ऐसे में देखना है कि इस शह-मात के खेल में किसका पलड़ा भारी रहता है?

यूपी में बीजेपी के सामने चुनौती समाजवादी पार्टी के पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक यानी पीडीए पॉलिटिक्स की है. लोकसभा चुनाव 2024 में पीडीए पॉलिटिक्स की नैया पर सवार अखिलेश यादव ने बीजेपी को करारी मात दी थी. बीजेपी का सवर्ण-पिछड़ा-दलित वोट बैंक वाला समीकरण कमजोर हुआ तो प्रदेश का राजनीतिक दृश्य ही बदल गया. सीएम योगी ‘बंटोगे तो कटोगे’और ‘एक हैं तो सेफ हैं’ जैसे नारों के जरिए 80-20 पॉलिटिक्स को सेट करने की कवायद में हैं.

सीएम योगी का 80-20 फॉर्मूला

सीएम योगी आदित्यनाथ ने यूपी में 80-20 की लड़ाई को लेकर कहा था कि 80 में वो लोग हैं, जो बीजेपी और उसके झंडे को पसंद करते हैं, जबकि 20 फीसदी में वो लोग हैं, जो विकास की नहीं, बल्कि स्वार्थ की राजनीति को प्राथमिकता देते हैं. साथ ही कहा कि 80-20 की लड़ाई यह वही लड़ाई है, जिसके अभी हाल ही में उपचुनाव से परिणाम आए हैं. योगी आदित्यनाथ के 80:20 के फॉर्मूले को सांप्रदायिक गणित से जोड़कर देखा जा रहा, जिसे हिंदू बनाम मुसलमान वोट बैंक से जोड़ा जा रहा है.

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के दौरान भी इसी प्रकार का दावा सीएम योगी करते नजर आए थे और अब एक बार फिर इस प्रकार की रणनीति ने प्रदेश की राजनीति में हलचल तेज कर दी है. हालांकि, उस चुनाव में सपा ने 111 सीटों पर जीत दर्ज की थी जबकि भाजपा को 255 सीटों पर जीत मिली थी. सीएम योगी साफ कह रहे हैं कि 2027 में भी लड़ाई 80 बनाम 20 की होने वाली. इस तरह समझातें है कि 80 फीसदी लोग बीजेपी को वोट देंगे जबकि 20 फीसदी वोट विपक्षी दलों को मिलेगा.

यूपी में 80 फीसदी हिंदू और 20 फीसदी मुस्लिम आबादी है. ऐसे में ये भी माना जा रहा है कि योगी की कोशिश जातियों में बिखरे हुए 80 फीसदी वोटों को एकजुट करने की है. जातीय राजनीति से इतर बीजेपी हिंदू समाज को एक पाले में लाने के प्रयास में दिख रही है. इसके जरिए इस बार का 80-20 फॉर्मूला स्थापित करने की अलग तैयारी है. पिछले दिनों जिस प्रकार से सीएम योगी के नारों ने कई विधानसभा चुनावों और यूपी उपचुनाव में अहम भूमिका निभाई, वह 2027 में भी असरदार हो सकती है.

अखिलेश यादव का 90-10 का दांव

योगी आदित्यनाथ 80-20 का नैरेटिव सेट कर रहे हैं तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने 90-10 का दांव चला है. अखिलेश का फॉर्मूला जातीय गणित से जोड़कर देखा जा रहा है. सीधा मतलब यह निकाला जा सकता है कि बीजेपी के धार्मिक ध्रुवीकरण के सामने अखिलेश यादव ने जातिगत ध्रुवीकरण का पासा फेंका है. 90 फीसदी को पूरा करने के लिए अखिलेश यादव समाजवादियों के साथ अब अंबेडकारवादियों को जोड़ने में लगे हैं. सपा की रणनीति में पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक के साथ सवर्ण वोटों में सेंधमारी का पासा फेंक रहे हैं. उन्होंने कहा कि बीजेपी का 80-20 का नारा अब चलने वाला नहीं है, बल्कि यह 90-10 का मामला बन गया है.

अखिलेश यादव ने कहा. आधी आबादी और पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) मिलकर बीजेपी के खिलाफ खड़े हैं. इसके अलावा उनकी नजर सवर्ण समाज के उस वोटबैंक पर है, जो बीजेपी के साथ हैं लेकिन केंद्र और यूपी सरकार की नीतियों से नाराज हैं. दलित समाज को जोड़ने से लिए अखिलेश ने ऐलान किया कि ‘अंबेडकर जयंती’ के मौके पर 8 से 14 अप्रैल तक सपा कार्यालयों में स्वाभिमान-स्वमान समारोह का आयोजन किया जाएगा, जो समाजवादी बाबासाहेब अंबेडकर वाहिनी और समाजवादी अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ मिलकर करेंगे.

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सीएम योगी के सांप्रदायिक फॉर्मूले की तोड़ के लिए जातिगत फॉर्मूले का हथियार चलाया है. इसके जरिए उन्होंने बताने की कोशिश की है कि बीजेपी का असल वोट बैंक सिर्फ सवर्णों का है, उसमें सिर्फ ठाकुर समुदाय और कुछ दूसरे सवर्ण जातियों का है. उत्तर प्रदेश में सवर्णों की आबादी लगभग 15 फ़ीसदी मानी जाती है. वहीं, प्रदेश में दलितों, पिछड़ों और मुस्लिमों की आबादी 85 फीसदी है. इसके अलावा 5 फीसदी वोट सवर्ण जातियों को मानकर चल रहे हैं.

विधानसभा चुनाव को लेकर क्या है सपा की स्ट्रेटजी?

जातिगत आबादी का ठोस आंकड़ा नहीं है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि प्रदेश में 43 फीसदी के लगभग पिछड़े, 21 फीसदी के लगभग दलित और 19 फीसदी के लगभग मुस्लिम हैं. 0.6 फीसदी अनुसूचित जनजातियों की आबादी है. दलितों, पिछड़ों, मुस्लिमों और आदिवासियों की ये आबादी यूपी की कुल आबादी के करीब 85 फीसदी ठहरती है. स्वामी प्रसाद मौर्या का दावा है कि यह 85 फीसदी आबादी भाजपा के खिलाफ खड़ी है.

राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि यूपी में 2027 का चुनाव पूरी तरह से जातीय के बिसात पर होगा. जाति के इर्द-गिर्द ही सारे सियासी दांव खेले जा रहे हैं. बीजेपी जातियों में बिखरे हुए हिंदू वोटों को अपने पक्ष में लामबंद करने सत्ता की हैट्रिक लगाना चाहती है तो सपा की स्ट्रेटजी दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक वोटों को लामबंद करने की है. अखिलेश खुलकर भले ही न कहें, पर सवर्णों की आबादी को बीजेपी के पक्ष में बता रहे हैं जो लगभग 15 फीसदी मानी जाती है. इसमें ब्राह्मणों और ठाकुरों की आबादी सबसे ज्यादा है. इनके साथ वैश्यों की आबादी, जो परंपरागत रूप से बीजेपी के ही वोटर माने जाते रहे हैं.

यूपी में ब्राह्मणों की आबादी 8 फीसदी, ठाकुरों की आबादी 4 फीसदी और वैश्यों की आबादी 2 से 3 फीसदी के करीब मानी जाती है. इस तरह इन तीनों की आबादी को जोड़ दिया जाए तो संख्या लगभग 15 फीसदी के करीब ठहरती है. अखिलेश यादव इसी ओर इशारा कर रहे थे, जिसमें कुछ सवर्ण वोटों को अपने साथ मानकर चल रहे हैं. ऐसे में देखना है कि 2027 के चुनाव में किसका फॉर्मूला हिट रहता है?

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