झगड़ते हैं ये ऐसे।
जैसे बालक अबोध।।
समय व पैसा किया।
दोनों का दुरुपयोग।।
गरिमा एवं मर्यादा।
हुई है तार तार।।
संसद में दिखा था।
निम्न स्तर व्यवहार।।
नोंकझोंक, झगड़े का।
अलग बनालो मैदान।।
लोकतंत्र के मंदिर में।
मचाओ न घमासान।।
लानत है आप पर।
लज्जा भी नही आई।।
छोड़े न कोई कसर।
जग जो हुआ हसाई
.....अभय सिंह