तिलक धारण किए भोला बताने लगा- साहब, ईको-फ्रेंडली गणेशजी की स्थापना की है। तन-मन से गणपतिजी को पूजा है जोरदार, बाबा से कालाधन मांगा है अब की बार।
मैं कह उठा... क्या बात करते हो भोला! काला धन गैरकानूनी और अवैध होता है। कालाधन कमाने वाले का समाज में सम्मान चला जाता है। सरकार के सामने वह बड़ा बेईमान कहलाता है।
भोला बोला- नहीं साहब, कालाधन कारगर और दक्ष है, इसके कई उजले पक्ष हैं। ईको-फ्रेंडली पूजते हैं, धन को भजते हैं। जीने के लिए जितना जरूरी साफ पर्यावरण है, उतना ही जरूरी काला धन है। ईमानदारी से मेहनत करे वह मजबूर-मजदूर होता है। ता-उम्र घिसता है, घर जाकर बीबी-बच्चों से पिटता है। वह स्मार्ट है, वह जादूगर है, जो लोगों की जेब से पैसा चुटकी में झपटता है। सीधे की जिंदगी घिसते-घिसते खप जाती है, साहब जेब में पैसा हो तो हर चीज आसानी से आती है। हाड़तोड़ मेहनती मरता तिल-तिल है, कितना जतन करे दाल-सब्जी जुटाना मुश्किल है। धनहीन के जीवन में कलुषित अंधियारा है, तभी तो कालाधन सबको प्यारा है।
कालेधन की दुश्मन भले ही सरकार है, करोड़ों-करोड़ जनता इसके लिए बेकरार है। ईमानदारी और सचाई भी तो नोटों पर सजते हैं, अच्छे-अच्छे आजकल गांधीजी को वहीं पूजते हैं। साहब और क्या कहूं, सारी नैतिकता को खूंटी पर टांगा है, देशी की डेढ़ सौ करोड़ जनता ने मोदीजी से कालेधन में हिस्सा मांगा है। जो नेता कालाधन सबको बांट दे उसकी तूती बजती है, देश की जनता उसे सर-माथे धरती है। जिनके हाथों साड़ी-कम्बल, घड़े-कमंडल बंटते हैं, उन्हीं के नामों के बटन चुनाव में दबते हैं। क्या ये धन ईमानदारी से आता है, नहीं साहब इसका गरीबों की दाल-रोटी से नाता है।
राजनीति में भी कालाधन भारी है, जो बड़ा चंदा दे उसकी महिमा न्यारी है। जो नेता कालेधन से जलते हैं, उनमें से अधिकांश काले धन पर ही पलते हैं। सरकारी कर्मचारी-अधिकारी और आम जन सभी को कालाधन स्वीकार है, साहब और क्या कहूं भजन-भंडारे-मंदिरों में यह भगवान को भी स्वीकार है। दिहाड़ी मजदूर कितना चढ़ावा चढ़ा सकता है, वो तो खुद भगवान का चेहरा तकता है। क्यों साहब, काले धन से ही मंदिर चमकते हैं, और क्या कहूं भगवान के चेहरे भी उससे ही दमकते हैं। जब आज के युग में धन से ही उजाला है, फिर ये क्यों काला है। चांदी चमकारी है, सोना दमकाता है, पैसा जीवन हरियाता है, फिर ये हरा-हरा नोट क्यों कालाधन कहलाता है।
भोला के अनैतिक तर्कों के आगे में फेल था। उसकी बातों में जीवन की कड़वी सचाई का मेल था। हम सब एक नाव में सवार हैं, इस देश का ऊपरवाला ही खेवनहार है।