बुद्ध अपने एक अनुयायी, सारिपुत्र, के साथ बरिस्ता में बैठे थे। जब तक बुद्ध ऑर्डर देने गए, सारिपुत्र ने उनका आइपैड निकाला और ट्विटर खँगालने लगा। जीएसटी बिल ट्विटर पर ट्रेंड कर रहा था। उसने काफ़ी समय से ये शब्द सुन रखा था। फिर गूगल पर सर्च करने लगा, तब तक तथागत वापस आ गए थे। उन्होंने आइपैड झोले में रख दिया।
"स्वामी, ये जीएसटी क्या है? अभी एक जगह पढ़ा तो एक अर्थशास्त्री ने कहा है कि आम आदमी के लिए चीज़ें महँगी हो जाएँगी। दूसरी जगह कोई और अर्थशास्त्री ने लिखा है कि सस्ती हो जाएँगी। ये हो क्या रहा है? किसकी बात को सच माना जाय? इकनॉमिक टाइम्स, इंडियन एक्सप्रेस, एनडीटीवी, एचटी सबसअलग अलग बात कह रहे हैं।" सारिपुत्र ने पूछा।
"मत-मतान्तर-वैभिन्य के कारण कहा-सुनी स्वीकार मत करो, गूगल को स्वीकार मत करो, अधीरता में यह ना मान लो कि यह ऐसा ही है, किसी कथन को इसीलिए सत्य ना मानो कि वह किसी वेवसाइट पर है, किसी ने कहा है, ना ही इसलिए की यह गुरू का वाक्य है," बुद्ध ने समझाते हुए कहा। तब तक वेटर कॉफ़ी लेकर आ गया था, "कृपया ये व्हाइट शुगर ले जाइए, मैं सिर्फ ब्राउन लेना पसंद करता हूँ।" बुद्ध ने आग्रह किया तो वेटर ब्राउन शुगर लाने चला गया।
वेटर के जाते ही सारिपुत्र ने हैरत से कहा, "तो क्या वो भी ना मानूँ जो आप कहते हैं? आप तो स्वयं इतना घूम चुके हैं, हज़ारों लोग आपको मानते हैं। आपको मानने में क्या बुराई है?"
"देखो सारिपुत्र, मैं जो कहता हूँ वो मेरा सत्य है। लेकिन वो तुम्हारे लिए बिना अन्वेषण के ना तो परम सत्य है ना ही झूठ। सच और झूठ व्यक्ति-विशेष के दृष्टिकोण भर हैं। सबको पता है कि सूरज कभी डूबता नहीं, चाँद का कोई भी डार्क साइड नहीं होता लेकिन रटते यही है कि सन राइजेज़ इन द इस्ट और सुनते हैं डार्क ऑफ द मून।
"तथागत ये दावा अगर करें भी कि मुझे सब पता है तो वो बकवास माना जाना चाहिए। ये दावा तुमसे कोई भी करे तो ये मान लीजिए की वो सफ़ेद झूठ बोल रहा है। ये संभव नहीं कि तथागत सब बातें जान लें। आप खुद को जान लें, और खुद को संतुष्ट कर सकें वही समाज के लिए बहुत है।" तथागत ने कॉफ़ी का सिप लेते हुए सारिपुत्र को पीने का इशारा किया।
भावविभोर होकर बुद्ध से सारिपुत्र ने कहा, "हे प्रभु! मेरा विश्वास है कि आपसे बुद्धिमान महात्मा न हुआ है, न है, न होगा।"
बुद्ध ने उत्तर में कहा, "निस्सन्देह सारिपुत्र, तो तुमने इसके पूर्व के समस्त बुद्धों को जान लिया होगा।"
"नहीं, स्वामी," सारिपुत्र ने कहा, तो बुद्ध ने फिर पूछा, "तब क्या भविष्य के बुद्धों को जानते हो?"
"नहीं, महाराज," सारिपुत्र ने फिर अपनी अनभिज्ञता दिखाई तो बुद्ध ने पुनः पूछा, "तब कम से कम मुझे जानते हो और मेरे मन को सम्पूर्णतया परख चुके हो?"
सारिपुत्र ने पुनः कहा, "वह भी नहीं स्वामी!"
फिर बुद्ध ने उन्हें देखते हुए पूछा, "तब सारिपुत्र, तुम्हारा कथन इतना पुष्पित और साहसपूर्ण क्यों है?"
सारिपुत्र को समझ में आ चुका था कि उनकी ग़लती क्या थी। वो कॉफ़ी पीने लगा। लेकिन बुद्ध रुके नहीं, बोलते रहे:
"किसी भी साधु, नेता, सेलिब्रिटी, लेखक, आलोचक... कोई भी हो, कितनी भी तार्किक बात क्यों ना करे, ये मान कर मत मान लो कि उसने कहा है तो सही होगा। ग्रंथ में लिखा है तो सही होगा। ये किताब आकाश से उतरी है तो सही होगी। ये जीसस हमारे लिए क्रॉस पर चढ़ गया इसीलिए सही होगा।
"ये सारे सत्य, ये सारी बातें एक काल में, एक पात्र के लिए, एक समाज के लिए सही थीं परंतु ये आज भी सही हों ज़रूरी नहीं। तुम्हें किसी ज़ाकिर नायक के इंटरप्रेटेशन का इंतज़ार नहीं करना चाहिए। तुम किसी तोगड़िया ब्राँड की किताब मत पढ़ने लग जाओ। किसी भी किताब का, किसी भी शायर की शायरी का, किसी भी कविता का अर्थ तुम्हारा अपना होता है। भगवान और भक्त के बीच दलालों को मत लाओ। तुम अपने बुद्ध को स्वयं तलाशो सारिपुत्र। तुम्हारे सत्य की यात्रा तुम्हारी और सिर्फ तुम्हारी ही है।"
सारिपुत्र ने तब पूछा, "तो क्या आपका जीवन, आपकी बातें सब मानने लायक नहीं? क्या महापुरुषों का अनुकरण ज़रूरी नहीं है क्योंकि 'महाजनो येन गतः स पंथाः' कहा गया है?"
"महापुरूष अनुकरणीय होते हैं लेकिन अंधानुकरण ना मत करो। कोई महापुरूष क्यों है, उसने ऐसा क्या किया ये सुनिश्चित करना बहुत ज़रूरी है इससे पहले कि तुम बाल मुँडवा कर उसके पीछे हो लो। ये जो ट्रॉल होते हैं ना, वो 'महाजनो येन गतः स पंथाः' वाले नहीं है। उनको ना तो अपने महापुरूष का सत्य मालूम है, ना स्वयं अपना। वो अंधे हैं। उनके दोनों नेत्रों के साथ साथ, उनके ज्ञान चक्षु भी बंद पड़े हैं," बुद्ध लगातार बोल रहे थे। उनकी कॉफ़ी ठंढी हो रही थी।
"चूँकि मेरे इतने फ़ॉलोवर्स हैं ट्विटर पर इसका क़तई यह मतलब नहीं की मैं जो भी ट्वीट करूँ तुम उसे रीट्वीट कर दो। या फिर ये कि बुद्ध को सबसे बड़ा बनाना है तो सैकड़ों अनुयायियों के साथ एक ही ट्वीट, एक ही समय पर, एक ही मैटर के साथ ट्वीट करने लगो। पहले सुनिश्चित करो कि मैं जो कहता हूँ वो तुम्हारे जीवन की कसौटी पर सही उतरेगी, फिर फ़ॉलो करो, ट्वीट करो, रीट्वीट करो..." बुद्ध ने सहृदयता से कहा।
"लाइक तो किया जा ही सकता है, वैसे आपने बायो में लिखा है कि रीट्वीट्स आर नॉट इंडोर्समेंट्स। लाइक के बारे में ऐसी कोई बात नहीं लिखी है," सारिपुत्र ने झोले से बुद्ध का आइपैड निकाल कर दिखाते हुए कहा।
"वो सब तो ठीक है लेकिन तुम्हें मेरा पासवर्ड कैसे मालूम?"
"वो... दो तीन बार अनलॉक करते देखा था..." सारिपुत्र ने कहा।
अजीत भारती