शुकदेवजी महराज:- भो राजन्! यह अरभिंड नामक राक्षस बड़ा ही आततायी और दुर्बुद्धि था, यह समुद्र मंथन के समय मन्दराचल गिरि को ही प्रसन्न कर लेता है । यह राक्षस मन्दराचल जी से कहता है कि
हे गिरिराज; इस मन्थन से प्राप्त अमृतकलश में मेरा भी हिस्सा होना चाहिए , बाकी किसी राक्षस को मिले न मिले।
तब मन्दराचल जी ने अरभिंड को वह सत्य बताया जिसे इस लोक , पर लोक व् अन्य लोक में कोई नहीं जानता है, मन्दराचल कहते हैं- ए राक्षसाधिपति अरभिंड, तुम मन्थन से प्राप्त दिव्य सुवर्ण रत्नों से जड़ित अमृत कलश के लिए देवों से संग्राम करना, जिससे वह तुम्हें प्राप्त हो जाएगा।
राजन्:- महाराज, क्या वह अमृत कलश अरभिंड को प्राप्त होगा?!? अगर ऐसा हुआ तो देवों का क्या हुआ??!!!
शुकदेवजी महराज:- हे राजन्! ऐसा होना असम्भव था, परन्तु अरभिंड भी कम चतुर नहीं था, आगे की कथा में आपके प्रश्नों का उत्तर निहित है, ध्यान पूर्वक सुनो।
हे राजन्; जब मंथन के दौरान अमृत कलश निकला तो देवताओं ने पहले चखने की इक्षा प्रकट की जिसमें वे सफल भी हुए, परन्तु यह अरभिंड असफल रहा और देवताओं से महासंग्राम शुरू कर दिया, समस्त देव गण त्राहिमाम त्राहिमाम करते हुए भगवान कमलनयन विष्णु के पास पहुँचे, और अपनी पीड़ा प्रकट किए तब प्रभु ने उन्हें आश्वस्त किया और मोहिनी रूप धरण करके अमृत देवताओं को अमृत पान करवाया ततपश्चात अरभिंड राक्षस से मिले ।
हे राजन्! यह अरभिंड प्रभु के मोहिनी रूप को देखकर कामपीड़ा से दग्ध हो गया और मोहिनी से अमृत पीने की इक्षा प्रकट की तब प्रभु ने उससे कहा, हे महामूर्ख अरभिंड! मैं विष्णु हूँ , और यह कलश अब खाली हो चुका है यह कहकर प्रभु ने कलश को अरभिंड के सर पर दे मारा, और वह कलश अदृश्य हो गया ।!!
हे राजन्! उसी समय अरभिंड प्रभु कमलनयन से बोला , प्रभु अमृत न सही पर मुझे कोई और वरदान दे दीजिए।
विष्णु जी शीलता दिखाते हुए बोले:- हे अरभिंड कलिकाल में तू राक्षसों के कुलगुरु काने शुक्राचार्य उर्फ़ गन्ना हगारे के साथ हिंदुस्तान की पुण्य भूमि इंद्रप्रस्थ में एक फिरंगी मादा शाषक के पापकर्मों से ऊबकर धरने पर बैठेगा ।
जिसमें तुझे बिन अन्न जल का अनशन करने का ढोंग करना होगा , उसी समय इस दिव्यकलश की महत्ता तुझे पता चलेगी ।
हे असुर, उस समय तेरे पास एक ""स्टील का गिलास"" होगा जिसमें तू जो कुछ भी डालेगा वह तेरे लिए जीवनदायिनी हो जाएगा और जो भी उस गिलास में से पियेगा वह कुछ समय के लिए स्फूर्तिवान और अमर महसूस करेगा।
आगे की कहानी श्रोता एवम् पाठक गणों की अभिलाषा पर निर्भर होगी ।।
इतिश्रीअभिनवतुलविरचितोआपियाकथातृतीयोध्ध्यायः ।।
जो व्यक्ति इस कथा को सुनता है , सुनाता है, लाइक कमेंट शेयर मेंशन करता है उसके सभी पाप कट जाते हैं व् उसके सभी ग्रह दोष नष्ट हो जाते हैं ।।
अभिनव पाण्डेय'अतुल'