असमय विवाह पुण्य या पाप... : कौशल शुक्ल

Update: 2017-06-26 03:10 GMT
"पांडे जी आपका लड़का शादी-बियाह के लायक हो गया है, अब देर न करिये शादी कर ही दीजिये, जानते तो हैं जमाना कितना ख़राब है ।" 

बटुक तिवारी ने पारले बिस्कुट का दो पीस एक साथ मुँह डालकर कुर-कुराते हुवे आदित पांडे को समझाने वाली मुद्रा में कहा- "आप तो जानते ही हैं, आजकल ठाकुर-बाभन के लड़कों के लिए सरकारी नौकरी कहाँ रक्खी है, जिसके पास घूस-अखोर का पैसा और सोर्स है उसी को सरकारी नौकरी मिलती है"। 

उक्त बातें पूरी करते हुवे अंतिम दोनों बिस्कुट के पीस को उठाकर बटुक तिवारी ने स्टील के प्लेट को साफ़ कर दिया-

मेरी मानिये, तो शादी बहुत बढियाँ है आपके लिए, देख नहीं रहे हैं आजकल के लड़कों को ! कितना माहौल खराब है गाँव-देश का , कहीं संगत में पड़कर जुआरी शराबी बन गया तो फिर कौन अपनी लड़की बियाहेगा । गांव के बहुत से लड़कों की शादी की उमर बीत चली, देखुआर उनके दरवाजे पर कदम तक नहीं रख रहे।अरे कौन है जो अपनी बिटिया का बियाह भंगेड़ी-गंजेड़ी से कर दे !

बैठक के कमरे में बिछी 3 चारपाईयों पर बैठे सभी लोगों ने बटुक तिवारी की बात का समर्थन मुंडी हिलाकर किया -

"पांडे जी आपने समाज में जो इज्जत कमाई है यही वजह है कि लोग आपके घर अपनी लड़की आपके लड़के "बिस्सू" से बियाहना चाह रहे हैं।"

तभी बैठक का पर्दा एक ओर सरका - स्टील की छोटी गिलास में चाय लिए हुवे राकेश ने प्रवेश किया.. 

राकेश विश्वनाथ से 4 वर्ष छोटा था, विश्वनाथ को ही सब "बिस्सू" कहकर बुलाते थे। बैठक में बिस्सू की ही शादी की बात चल रही थी ।

बिस्सू के पिता आदित पांडे जी ने खड़े होकर चाय की तश्तरी राकेश के हाथ से ले ली और मेज पर रख दिया और राकेश से कहा, "बेटा जाओ कुछ नमकीन भी लेते आओ ।" 

राकेश बिना कुछ कहे तेजी से परदे के पीछे अंदर के कमरे में नमकीन लेने चला गया, चाय-नमकीन के कारण वहां बैठे लोगों में बातचीत का दौर थोड़ी देर के लिए ठहर सा गया था।

तभी इतने में लड़की के पिता ने भहराकर पांडे जी का पैर पकड़ लिया और कहा, "पांडे जी अब बस ना मत कीजियेगा मेरे सर पर हाँथ रख दीजिए मेरा उद्धार हो जाएगा।" 
पांडे जी को अपने से बड़े चौबे जी से इस प्रकार पैर में गिर पड़ने की उम्मीद नहीं थी..

सकपकाकर पांडे जी दो कदम दूर खड़े हो गए और कहा, "अरे चौबे जी ये क्या कर रहे हैं काहे नरक में भेज रहे हैं, आप हमसे उमर में दसियों साल बड़े हैं ऐसा मत कीजिये।"

अगुवा बटुक तिवारी ने तुरंत हर्ष से जय जयकार करते हुवे शादी पक्की होने की घोषणा कर दी। और हर्ष मिश्रित स्वर में ऊँची आवाज में कहा ,"तो पांडे जी अब बात लेन-देन की हो जाए ।"

अरे तिवारी जी कैसी बात करते हैं आप ! पांडे जी ने मुँह खोला ।
इतनी जल्दी फैसला नहीं कर पाउँगा मैं, घर वालों से भी तो बात करनी पड़ेगीं, और बिस्सू की उम्र ही कितनी है ग्यारहवीं की परीक्षा दी है उसने इस साल। 16 साल की उमर में बियाह कर देना ठीक भी तो नहीं है!

शादियां कराने का शतक लगा चुके घाघ बटुक तिवारी ने चुपके तीरथ चौबे जी को इशारा किया- 

चौबे जी ने दौड़कर पांडे जी के पैरों पर अपना सर पटक दिया और कहा, "महराज उद्धार करो, मुझे इसके बाद तीन और बेटियां ब्याहनी है, मेरी एक लड़की को अपने घर में शरण दो।" आदित पांडे ने भारी संकोच के साथ चौबे जी से कहा, "चौबे जी ईश्वर की अगर यही मर्जी है तो तो ठीक है मुझे रिश्ता मंजूर है ।"

इसी के साथ बटुक तिवारी ने 'पुन्न' के नाम पर एक और युवा के सपनों पर व्याह नाम की बेड़ी पहनाने का 'पाप' कर डाला।

कौशल शुक्ल

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