कल कुछ मित्रों ने कहा कि राहत इंदौरी पर कुछ लिखिए। मैं सोच रहा हूँ क्या लिखूं। हमारे देश की नजर में वे एक बुद्धिजीवी व्यक्ति हैं, प्रशिद्ध और स्थापित शायर हैं। एक आम व्यक्ति के कुछ लिख देने से उनके स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा। पर मित्र की बात तो मित्र की ही बात है।
राहत इंदौरी के जिस पुराने शेर पर बवाल मचा हुआ है, मुझे व्यक्तिगत रूप से उस शेर से कोई परेशानी नहीं। अगर वे छाती ठोक कर कहते हैं कि,
सभी का खून है शामिल यहां की मिट्टी में,
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है......
तो मुझे दुःख नहीं। अगर उनके अंदर हिंदुस्तान के लिए पुस्तैनी ज्यादाद वाला लगाव होता तो इससे बेहतर और कोई बात ही नहीं होती। पर उनका यह शेर उतना ही झूठा है, जितने वे खुद। उनके झूठ का रंग उसी ग़ज़ल में खुल जाता है, जब वे कहते हैं-
लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में,
यहां सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है.......
अगर वे हिंदुस्तान को अपने बाप की सम्पति समझते, तो हिंदुस्तान के जलने को लेकर उनके अंदर यह विरक्ति न होती। इस देश के किसी छोटे दरिद्र किसान से भी उसके बाप की जमीन का इंच भर हिस्सा यदि कोई छेक ले, तो लाठियां निकल जाती हैं; खून हो जाता है, फिर इनके बाप का हिंदुस्तान कैसा है जो उसके जलने की बिलकुल भी फ़िक्र नहीं इन्हें? सच यह है कि राहत ने हिंदुस्तान को अपने बाप की जमीन समझी ही नहीं।
यदि हिंदुस्तान उनके बाप का होता, तो उनकी कलम कश्मीर छिनने की कोशिश करने वाले पाकिस्तान के विरुद्ध तोप की तरह बारूद उगलती।
हिंदुस्तान यदि उनके बाप का होता, तो उनकी गज़लों में मुंबई के हमलावरों के विरुद्ध आक्रोश होता।
हिंदुस्तान यदि उनके बाप का होता, तो हिंदुस्तान के खिलाफ हथियार उठाने वाले याकूब के जनाजे में जुटी भीड़ को उनकी कलम जरूर लानत भेजती।
यदि हिंदुस्तान उनके बाप का होता, तो दस लाख कश्मीरियों की पीड़ा पर उनकी कलम जरूर रोयी होती।
हिंदुस्तान यदि उनके बाप का होता, तो देश उन्हें जमीन का एक टुकड़ा नहीं; एक जीता जागता राष्ट्रपुरुष दिखाई देता।
पर सच यह है कि हिंदुस्तान को उन्होंने अपने बाप की जमीन समझी ही नहीं।
भारत उस रामनाथ अवस्थी के बाप का है, जिनकी कलम चीख कर कहती है-
जो आग जला दे भारत की ऊंचाई
वह आग न जलने देना मेरे भाई....
यह देश उस रामप्रसाद विस्मिल के बाप का है, जिन्होंने कलम पकड़ कर सिर्फ यही लिखा कि-
वह भक्ति दे कि बिस्मिल दुःख में तुझे न भूले,
वह शक्ति दे कि दुःख में कायर न यह हृदय हो..
यह देश उस रामावतार त्यागी के बाप का है, जिनकी कलम यह कह गयी, कि
स्वप्न अर्पित, प्रश्न अर्पित, आयु का क्षण क्षण समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती मैं तुझे कुछ और भी दूँ...
यह देश राहत इंदौरी के बाप का तो कतई नहीं हैं।
फिर भी मुझे उनसे कोई शिकायत नहीं, क्योंकि मैं उनका चरित्र जानता हूँ। वे एक शायर से ज्यादा एक जेहादी हैं, जिनके लिए भारत दारुल हरब है।
उन्होंने अपने आप को कभी छिपाया नहीं, बल्कि हर जगह वे अपनी मंशा बताते रहे हैं।
बहुत पहले ही वे अपने मन की बात कुछ इस तरह कह चुके हैं-
ये जो लाखों करोड़ों पांच वक्त के नमाजी हैं,
सच में अगर दहशतगर्द हो जाएं तो क्या होगा?
लाखों करोड़ों नमाजियों के दहशतगर्द होने की धमकी देने वाले व्यक्ति को आपने यदि शायर समझने की भूल की है तो कीजिये, पर सच यह है कि वे बौद्धिक हाफिज सईद हैं।
युगों युगों से पूरे विश्व के लिए बांह पसारे खड़ा यह देश अपने हृदय में सब के लिए बाप का स्नेह रखता है, पर आग लगने की बाट जोहने वालों के बाप का तो यह देश नहीं ही है।
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।