भाजपा सरकारें, चाहे केन्द्र में हों या राज्य में, शिक्षा बजट के मामले में नब्बे के लालू को कॉम्पटीशन दे रहे हैं।

Update: 2017-07-16 05:06 GMT
केन्द्र का बजट तो शिक्षा को लेकर उदासीन था ही, बची हुई कसर योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश में पूरी कर दी है। इनकी प्राथमिकताएँ कहाँ हैं, पता नहीं चल रहा। किस हिसाब से शिक्षा का बजट इतना कम है?

मान लेते हैं कि अखिलेश के बजट में फ़्री का लैपटॉप और मोबाइल, और पता नहीं क्या-क्या था, लेकिन इतने बड़े प्रदेश का शिक्षा बजट इतना कम? 

—ऊपर का हिस्सा मैंने कुछ अख़बारों के हेडलाइन पढ़कर लिखा है—

बुनियादी शिक्षा का बजट तो बेहतरीन है जो कि ₹5867 करोड़ से सीधा ₹21499 करोड़ तक पहुँच गया है। ये बात और है कि किसी भी अख़बार की हेडलाइन में ये हिस्सा नहीं दिखा। लेकिन सेकेण्डरी एजुकेशन का ₹9990 करोड़ से ₹576 करोड़, और उच्च शिक्षा का बजट ₹2472 करोड़ से ₹272 करोड़ कर दिया गया है। हर जगह यही दोनों बातें दिखीं। 

पूरा अगर जोड़ें तो ₹18329 से बढ़ाकर ₹22347 करोड़ कर दिया गया है, जो कि 21.92% की वृद्धि है। लेकिन मेरे हिसाब से इस वृद्धि को उच्च शिक्षा की तरफ मोड़ना चाहिए था। जहाँ तक मुझे पता है, मेरे उत्तर प्रदेश के दोस्त बताते हैं कि प्राथमिक शिक्षा की हालत बहुत अच्छी है। 

उच्च शिक्षा के लिए केन्द्र सरकार भी उदासीन है, और यहाँ प्रदेश भी। वैसे, अख़बारों की सुर्ख़ियाँ देखकर मेरा पारा ऊपर चला गया था, लेकिन जब खुद जोड़-घटाव किया तो पता चला कि हेडलाइन भ्रामक थी। ये बजट अभी भी दिल्ली के बजट से बहुत कम है, जनसंख्या और क्षेत्रफल के हिसाब से। दिल्ली सरकार शिक्षा में ठीक काम कर रही है, ऐसा प्रतीत होता है।


अजीत भारती

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