जब मैं न्यायिक व्यवस्था को सबसे करप्ट कहता हूँ तो उसके कारण हैं। आज झारखंड के उच्च न्यायालय में बारह डिस्ट्रिक्ट जजों को ज़बरदस्ती रिटायर करवा दिया। कारण था 'डूबियस कंडक्ट'।
ऐसे ही पता चलता है कि मोदी जी ने दो सौ प्रशासनिक अधिकारियों को ज़बरदस्ती रिटायरमेंट दिलवा दिया क्योंकि वो अपना काम ठीक से नहीं कर रहे थे।
बस काम ख़त्म। नेता लोग तो खैर कभी पकड़ में आते ही नहीं। उनसे तो 'नैतिकता के आधार पर' इस्तीफ़ा माँगा जाता रहा है। उससे आगे का कुछ न देखा, न सुना।
मुझे कोई ये बताए कि क्या यहाँ 'ऑल एनिमल्स आर इक्वल, बट सम एनिमल्स आर मोर इक्वल' का लॉजिक नहीं लगाया जा रहा? जब कानून की नज़र में सब बराबर हैं, और सरकारी मुलाजिम अपना काम ठीक से नहीं कर रहा तो क्या उसको सजा नहीं होनी चाहिए?
वोलेंटरी रिटायरमेंट और फोर्स्ड रिटायरमेंट से क्या मतलब है? इन जजों पर क़ानूनी कार्रवाई क्यों नहीं होनी चाहिए? क्या ये भगवान हैं? आईएएस लोगों पर क्यों क़ानूनी कार्रवाई नहीं होती जब उनके तीस साल की सर्विस में ख़ामियाँ पाई जाती हैं?
डिपार्टमेंटल इन्क्वायरी का मजाक बहुत भद्दा मजाक होता है। यही कारण है कि हर सरकार भ्रष्टाचार के मुद्दे पर ही चुनाव जीत रही है लेकिन पहले कौन भ्रष्ट था इसका पता कोई नहीं देता। मेरा देश इतना साफ सुथरा, सुव्यवस्थित और सुचारू रूप से चल रहा है तो गोरखपुर में बच्चे कैसे मरते हैं? लाखों करोड़ों के घोटाले कौन करता है?
अगर न्याय व्यवस्था इतनी झकास है तो बोफ़ोर्स केस अभी तक कैसे नहीं सुलझ पाया? आखिर जजों को अपने बेटे भतीजे ही क्यों चाहिए कॉलेजियम में? अगर सरकारी तंत्र इतना सुदृढ़ है तो फिर तमाम अफ़सरों के बच्चे सरकारी स्कूल में क्यों नहीं पढ़ते? तमाम जज साहिबान बीमार होने पर सरकारी अस्पताल क्यों नहीं जाते?
भ्रष्ट कौन है इस देश में? लॉ रिफॉर्म्स को लागू करने, या दोबारा इस पर बात करने वाला लॉ कमिशन क्या ट्रिपल तलाक पर ही अटका रहेगा? ये सुप्रीम कोर्ट के जज जो मठाधीशी में लगे हुए हैं, उनको मैरिट बेस्ड सलेक्शन में आपत्ति क्यों है? बिना जजशिप के अनुभव के सीधा कोई वक़ील इलाहाबाद हाइकोर्ट का जज कैसे बन जाता है, और फिर वो सुप्रीम कोर्ट की पीठ में कैसे पहुँच जाता है?
नेताओं ने खुद को बचाने के सिस्टम बना रखे हैं। जज तो खैर इस देश में भगवान ही हैं। ब्यूरोक्रेट्स ने दीमक की तरह देश को सड़ा रखा है, लेकिन आप उनको पकड़ नहीं सकते क्योंकि वो फ़ाइल मैनेजमेंट जानता है। इन सबका तंत्र इतना व्यापक है कि आप कुछ नहीं कर सकते।
संविधान एक पोथी है, जिसका कोई औचित्य नहीं। इसकी प्रस्तावना को स्कूलों में रटवाइए, वन्दे मातरम् कम्पल्सरी कराइए, सिनेमा हॉल में जन-गण-मन गवाइए... सांकेतिक चीज़ें कीजिए क्योंकि जनता को भी वही चाहिए। फिर ये जनता बवाल क्यों काटती है समझ में नहीं आता।
अजीत भारती