आया बनकर काल ।
मनहूस ये साल ।।
बरस रहे हैं ओले ।
मुसीबत की अंबार ।।
उफान पर नदियाँ ।
डूबा गया घर-द्वार ।।
चरम पर कोरोना ।
दो तरफा है मार ।।
बज्रपात से हो रहे ।
मौतें लगातार ।।
खौफ़ के साये में ।
मनोदशा कमजोर ।।
छट जायेंगें संकट ।
जीवन में नव सबेर ।।
आया बनकर काल ।
मनहूस ये साल ।।
बरस रहे हैं ओले ।
मुसीबत की अंबार ।।
उफान पर नदियाँ ।
डूबा गया घर-द्वार ।।
चरम पर कोरोना ।
दो तरफा है मार ।।
बज्रपात से हो रहे ।
मौतें लगातार ।।
खौफ़ के साये में ।
मनोदशा कमजोर ।।
छट जायेंगें संकट ।
जीवन में नव सबेर ।।